सुभाष चौधरी
नई दिल्ली : केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नोट्बंदी के दो साल पूरे होने पर देश के नाम एक लिखे अपने आलेख में कहा है कि “आज हमने विमुद्रीकरण ( नोट्बंदी ) के दो साल पूरे कर लिए हैं। अर्थव्यवस्था को औपचारिक स्वरूप प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों की कड़ी में विमुद्रीकरण ( नोट्बंदी )एक महत्वपूर्ण कदम है।
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने सबसे पहले भारत से बाहर छिपा कर रखे गये काले धन पर प्रहार किया। इन संपत्ति धारकों से दंडात्मक कर का भुगतान कर इस धन को स्वदेश वापस लाने के लिए कहा गया। जो लोग ऐसा करने में विफल रहे उन पर काला धन अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा चलाया जा रहा है। सरकार को प्राप्त सभी विदेशी खातों और संपत्तियों के विवरण पर गौर करने के बाद संबंधित नियम-कायदों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
रिटर्न दाखिल करने में सुविधा और कर आधार बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के करों के लिए किया गया है।
उन्होंने कहा कि कमजोर तबकों को भी औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाया जा सके, इसके लिए वित्तीय समावेशन दूसरा महत्वपूर्ण कदम था। जन-धन खातों की बदौलत ज्यादातर लोग बैंकिंग प्रणाली से जुड़ गए हैं। ‘आधार कानून’ के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया है कि सरकारी सहायता प्रणाली का प्रत्यक्ष लाभ सीधे बैंक खातों में पहुंचे। अप्रत्यक्ष करों के मामले में जीएसटी ने यह सुनिश्चित किया है कि कर प्रक्रियाएं आसान बनें। अब कर प्रणाली के दायरे में आने से बचना निरंतर और अधिक मुश्किल होता जा रहा है।
नकदी की भूमिका
वित्त मंत्री ने तर्क दिया कि भारत की अर्थव्यवस्था में नकदी का चलन बेहद ज्यादा था। नकद में किए जाने वाले सौदों से लेन-देन करने वालों के बारे में पता नहीं चल पाता है। इससे बैंकिंग प्रणाली की अनदेखी होती है और कैश में सौदे करने वाले लोग कर चोरी करने में सक्षम हो जाते हैं। विमुद्रीकरण ने कैश रखने वाले लोगों को बैंकों में नकद राशि जमा करने के लिए विवश किया। भारी-भरकम नकद राशि जमा की गई और इसके साथ ही यह रकम जमा करने वाले लोगों की पहचान भी हो गई जिसके परिणामस्वरूप 17.42 लाख खाताधारक संदिग्ध पाए गए। इनसे गैर-बाधक तरीके से ऑनलाइन जानकारियां प्राप्त की गई हैं। नियम-कायदों का उल्लंघन करने वाले लोगों को दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा। बैंकों में बड़ी मात्रा में राशि जमा होने से बैंकों की उधार देने की क्षमता में सुधार हुआ। इस धन का एक बड़ा हिस्सा म्यूचुअल फंडों में डाल दिया गया, ताकि इसका आगे समुचित निवेश किया जा सके। यह राशि औपचारिक प्रणाली का हिस्सा बन गई।
अविवेकपूर्ण दलील
उनका कहना है कि गलत जानकारियों के आधार पर यह कहते हुए विमुद्रीकरण की आलोचना की जा रही है कि लगभग पूरी नकद राशि बैंकों में जमा कर दी गई है। मुद्रा को जब्त करना विमुद्रीकरण का उद्देश्य नहीं था। इस राशि को औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाना और यह रकम रखने वाले लोगों द्वारा कर चुकाना इसका व्यापक उद्देश्य था। भारत को नकद लेन-देन से डिजिटल लेन-देन की ओर अग्रसर करने के लिए प्रणाली में व्यापक बदलाव की आवश्यकता थी। इसका उच्च कर राजस्व और उच्च कर आधार के रूप में स्पष्ट रूप से असर पड़ेगा।
डिजिटलीकरण पर प्रभाव
वित्त मंत्री ने बताया कि यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) की शुरुआत वर्ष 2016 में की गई थी जिसमें दो मोबाइल धारकों के बीच वास्तविक समय पर भुगतान शामिल था। इसके जरिये लेन-देन अक्टूबर, 2016 की 0.5 अरब रुपये से बढ़कर सितंबर, 2018 में 598 अरब रुपये हो गया है। यूपीआई के उपयोग से त्वरित भुगतान लेन-देन के लिए एनपीसीआई द्वारा भारत इंटरफेस फॉर मनी (भीम) एप विकसित किया गया है। वर्तमान में इसका उपयोग 1.25 करोड़ लोगों द्वारा किया जाता है। भीम एप से लेन-देन का कुल मूल्य सितंबर, 2016 के 0.02 अरब रुपये से बढ़कर सितंबर, 2018 में 70.6 अरब रुपये हो गया है। जून, 2017 में यूपीआई के कुल लेन-देन में भीम एप से लेन-देन का योगदान लगभग 48 प्रतिशत था।
उनके अनुसार रुपे कार्ड का उपयोग प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) और ई-कॉमर्स दोनों के लिए किया जाता है। इसके जरिये विमुद्रीकरण से पहले पीओएस के लिए लेन-देन 8 अरब रुपये था जबकि सितंबर 2018 में यह बढ़कर 57.3 अरब रुपये तथा इसके जरिये विमुद्रीकरण से पहले ई-कॉमर्स के तहत लेन-देन 3 अरब रुपये का था, जबकि सितंबर 2018 में यह बढ़कर 27 अरब रुपये हो गया है।
स्वदेश में विकसित भुगतान प्रणाली यूपीआई और रुपे कार्ड के आने से अब वीजा और मास्टरकार्ड भारत के बाजार में अपनी हिस्सेदारी गंवा रहे हैं। डेबिट और क्रेडिट कार्डों के जरिये किये गये कुल भुगतान में यूपीआई और रुपे कार्ड हिस्सेदारी बढ़कर 65 प्रतिशत हो गई है।
प्रत्यक्ष कर पर प्रभाव
केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि व्यक्तिगत आयकर के संग्रह पर विमुद्रीकरण का प्रभाव महसूस किया जा रहा है। पिछले वर्ष की तुलना में वित्तीय वर्ष 2018-19 (31-10-2018 तक) इसमें 20.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। कॉर्पोरेट कर में भी संग्रह 19.5 प्रतिशत अधिक है। विमुद्रीकरण के पहले दो सालों में प्रत्यक्ष कर संग्रह में क्रमशः 6.6 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। अगले दो वर्षों में, विमुद्रीकरण के बाद 14.6 प्रतिशत की वृद्धि (2016-17 में विमुद्रीकरण के प्रभाव से पहले वर्ष का हिस्सा) और वर्ष 2017-18 में 18 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है।
इसी प्रकार, वर्ष 2017-18 में टैक्स रिटर्न भरने वालों की संख्या 6.86 करोड़ तक पहुंच गई, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है। इस वर्ष, 31-10-2018 तक, 5.99 करोड़ लोगों ने रिटर्न जमा किया है जो कि पिछले वर्ष इस तिथि की तुलना में 54.33 प्रतिशत अधिक है। इस वर्ष 86.35 लाख नए करदाता जुड़े हैं।
मई 2014 में, जब वर्तमान सरकार चुनी गयी थी तब आयकर रिटर्न जमा करनेवालों की कुल संख्या 3.8 करोड़ थी। इस सरकार के पहले चार वर्षों में यह संख्या 6.86 करोड़ हो गयी है। इस सरकार के पहले पांच वर्षों के खत्म होने तक टैक्स रिटर्न भरने वालों की संख्या दोगुनी हो जाएगी।
अप्रत्यक्ष कर पर प्रभाव
अपने आलेख में उन्होंने आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि विमुद्रीकरण और जीएसटी लागू होने से नकद के लेनदेन पर बड़े पैमाने पर लगाम लगी है। डिजिटल लेनदेन में वृद्धि दिखाई दे रही है। अर्थव्यवस्था के इस औपचारिकरण ने करदाताओं की संख्या जीएसटी पूर्व शासन में 6.4 मिलियन से बढ़ाकर जीएसटी के बाद के शासन में 12 मिलियन कर दी है। अब कर मूल्य के हिस्से के रूप में दर्ज वस्तुओं और सेवाओं की वास्तविक खपत बढ़ी है। इसने अर्थव्यवस्था में अप्रत्यक्ष कर वृद्धि को बढ़ावा दिया है। इससे केंद्र और राज्य दोनों को फायदा हुआ है। प्रत्येक राज्य में, जीएसटी के बाद, प्रत्येक वर्ष कराधान में 14% की अनिवार्य वृद्धि हो रही है। वास्तविकता यह है कि निर्धारकों के लिए अब अपने व्यापार के टर्नओवर की घोषणा करना जरूरी है, जो न केवल अप्रत्यक्ष कर की गणना को प्रभावित करता है बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि उनसे प्राप्त आयकर का खुलासा भी कर आकलन में किया गया है। 2014-15 में, जीडीपी में अप्रत्यक्ष कर का अनुपात 4.4 प्रतिशत था। जीएसटी लागू होने के बाद यह कम से कम 1 प्रतिशत बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गया है। छोटे करदाताओं को 97,000 करोड़ रुपये की वार्षिक आयकर राहत देने और जीएसटी दाताओं को लिए 80,000 करोड़ रुपये की राहत देने के बावजूद कर संग्रह बढ़ा है। प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर की दर घटी है लेकिन कर संग्रह बढ़ा है। टैक्स आधार का विस्तार किया जा रहा है। 334 वस्तुओं पर टैक्स की दरें जो पहले 31 प्रतिशत थी जीएसटी लागू होने के बाद उनकी टैक्स दरों में कटौती देखी गई है। सरकार ने इन संसाधनों का उपयोग बुनियादी ढांचा निर्माण, सामाजिक क्षेत्र और ग्रामीण भारत को बेहतर बनाने के लिए किया है। हम सड़क से जुड़े हर घर में बिजली वाले ग्रामीण स्वच्छता की 92 प्रतिशत कवरेज, सफल आवास योजना और 8 करोड़ गरीबों के घरों में खाना पकाने के लिए गैस कनेक्शन वाले गांवों को देख सकते हैं। आयुष्मान भारत के अंतर्गत दस करोड़ परिवार शामिल हैं, सब्सिडी वाले भोजन पर 1,62,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में 50 प्रतिशत की वृद्धि की गई है और एक सफल फसल बीमा योजना चल रही है। यह अर्थव्यवस्था का औपचारिकरण ही है जिसके कारण 13 करोड़ उद्यमियों को मुद्रा ऋण प्राप्त हुआ है। कुछ हफ्तों में सातवें वेतन आयोग को लागू किया गया और अंततः ओआरओपी लागू की गयी।
अधिक औपचारिकरण, अधिक राजस्व, गरीबों के लिए अधिक संसाधन, बेहतर बुनियादी ढांचा और हमारे नागरिकों के लिए बेहतर जीवन स्तर”।