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यूनुुस अलवी
मेवात : रमजान माह का आखरी जुमा यानि विदातुल जुमा की नमाज मेवात के हजारों मस्जिदों में अदा की गई। आखरी जुमा होने से मस्जिद और मदरसे भी नमाजियों की वजह से छोटा पड गऐ। मस्जिदों में जगह की कमी होने पर लोगों ने मुख्य रास्ते, मस्जिदों की छतों और सडकों पर ही नामज अदा की। जिस कारण कुछ समय के लिए वाहन चालकों को इंतजार करना पडा। शुक्रवार को पुन्हाना, पिनगवां, शिकरावा, लुंहिगाकलां, शाहचौखा, सिंगार आदि गांवो में अलविदा या रमजान माह के आखरी जुमा की नमाज अदा की गई।
विदातुल जुमा को देखते हुऐ गर्मी से बचने के लिए सामयानों का इंतजाम किया गया था। वहीं मस्जिदों में जगह कम होने पर मस्जिद के सामने वाली सडक की सफाई करवाई गई वहीं मस्जिद के आसपास लगने वाली रहेडियों को जुमा के दिन मस्जिद से दूर लगाने लगाने के कल ही आदेश दे दिऐ गए थे।
पुन्हाना की जामा मस्जिद अड्डा वाली के इमाम मोलाना मोहम्म्द यूनुस ने बताया कि रमजान माह का आखरी जुमा होने की वजह से नमाजियों की संख्या बढ जाती है। नमाजियों की संख्या को ध्यान में रखते हुऐ सफ और सिवनों का इंजाम किया गया। इस बार रमजान में पांच जुमा पडे अकसर चार ही जुमा होते।
ईद से पहले फितरा अदा करने का हुक्म
मोलाना याहया करीमी ने बताया कि जिस तरह जकात मालदारों पर फर्ज है उसी तरह फितरा भी उन पर फर्ज है। फितरा देने से गरीब और बेसहारा लोगों के घरो मे ंभी ईद की खुशी मनती है। इसके अलावा फितरा रमजान माह के अंदर रखे गये रोजे और पढी गई नमाज में हुई कमियों को भी पूरा करता है। प्रत्येक आदमी को पौने दो सेर अनाज या इसके बराबर कीमत गरीबों को ईद की नमाज पढने से पहले अदा कर देनी चाहिये।
: 30 साल पहले दिल्ली पढने जाते थे नमाज
पहले बुजुर्गो को यकीन था कि जितनी दूर जुमा की नमाज अदा करने आऐगें उसको उतना ही सवाब मिलेगा। इसलिए करीब 30 साल पहले तक मेवात करीब दस फीसदी बुजुर्ग मर्द औरत दिल्ली की जामा मस्जिद में रमजान माह के आखरी जुमा यानि अलविदा का जुमा पढने जाया करते थे लेकिन धीरे-धीरे अब लोगों ने जाना बंद कर दिया है।
र ईद हावी हो गई है, इसी वजह से लोग जमकर खरीददारी कर रहे हैं।