नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने कहा है कि दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है . केंद्रीय कानून मंत्री ने लोगों को हिंसा में शामिल नहीं होने और शांति बनाए रखने की अपील की। विपक्ष को दलित विरोधी बताते हुए कहा, उन्होंने दलित अधिकारों के प्रणेता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को उनके योगदान के मुताबिक नहीं दिया महत्व।
केंद्र ने कहा है कि दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी- एसटी एक्ट में किए बदलाव के बाद केंद्र सरकार ने कल इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर की। इस पुनर्विचार याचिका में सरकार ने अपनी तरफ से तर्क दिए है। सरकार का कहना है कि एससी- एसटी के कथित उत्पीड़न को लेकर तुरंत होने वाली गिरफ्तारी और मामले दर्ज किए जाने को प्रतिबंधित करने का शीर्ष न्यायालय का आदेश इस कानून को कमजोर करेगा। याचिकाकर्ता ने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की, लेकिन कोर्ट ने इससे इंकार करते हुए कहा है कि इस पर नियमित प्रकिया के तहत ही सुनवाई होगी।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम-1989 यानी एससी एसटी एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की तरफ से सर्वोच्च अदालत में पुनरीक्षण की याचिका दाखिल की गयी है । केंद्र ने अपनी याचिका में देश की सबसे बड़ी अदालत से हाल में दिये गये उस निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है जिससे एससी एसटी अधिनियम के तहत गिरफ्तारी से पहले जांच करने का निर्देश दिया गया था। केंद्र ने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अधिनियम के उन प्रावधानों को बहाल करने का आग्रह किया है जो कुछ अपराधों को संग्येय और गैर-जमानती बनाते हैं। इससे आरोपी पीड़ित को धमकाने डराने के लिए आज़ाद हो जाएगा । याचिका में केंद्र ने कहा है कि कोर्ट के फैसले से 1989 में बने इस कानून के कुछ कड़े प्रावधान हल्के हो जाते हैं जिसका व्यापक असर पड़ रहा है । अनुसूचित जाति और जनजाति की बड़ी आबादी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा । इस फैसले में कुछ तथ्यात्मक गलतियां हैं । इसलिए 20 मार्च के फैसले पर फिर से विचार करने या फिर इसे वापस लेने की जरुरत है।
केंद्र के अलावा ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ एससी/ एसटी आर्गेनाईजेशन ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है जिसमें अदालत के हाल ही में दिए गए फैसले पर रोक और मामले को विचार के लिए पांच जजों की बेंच को सौंपने की मांग की गई है.।.याचिका कर्ता ने देश मामले की जल्द सुनवाई की मांग की लेकिन कोर्ट ने इससे इंकार करते हुए कहा कि इस पर नियमित प्रकिया के तहत सुनवाई होगी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल में अपने आदेश में इस अधिनियम के अंतर्गत अग्रिम जमानत का प्रावधान शुरू करते हुए निर्देश दिया था कि इस कानून के तहत किसी शिकायत के आधार पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी लोक सेवक पर केस दर्ज करने से पहले DSP स्तर का पुलिस अधिकारी प्रारंभिक जांच करेगा। किसी सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी से पहले उसके वरिष्ठ अधिकारी से अनुमति लेना जरूरी होगा। इन्हीं फैसलों के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। केंद्र सरकार का कहना है कि वो पिछड़े और दलितों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और विपक्ष को इसमें राजनीति नहीं करनी चाहिए क्योंकि वो खुद दलित विरोधी है।
सरकार के सहयोगी दलों और दलित नेताओं ने भी इस मामले में खास तौर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि वो दलित विरोधी है और उसने अपने शासन में दलितों और खासकर उनके मसीहा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के लिए कुछ नहीं किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कहा है कि एससीएसटी एक्ट का कडाई से पालन होना चाहिए । संघ के सरकार्यवाह, भैया जी जोशी ने कहा – “जाति के आधार पर किसी भी भेदभाव अथवा अत्याचार का संघ सदा से विरोध करता है। इस प्रकार के अत्याचारों को रोकने के लिए बनाये गये क़ानूनों का कठोरता से परिपालन होना चाहिए। ”
इस बीच इस मामले को लेकर कुछ संगठनों ने भारत बंद बुलाया। कुछ राज्यों में बंद का मिला जुला असर रहा जबकि कुछ राज्यों में इसका असर नहीं दिखा। विपक्षी दलों ने भी इस मामले में लोगों से शांति की अपील करते हुए सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का इंतजार करने को कहा है। फिलहाल ये मामला दोबारा से सुप्रीम कोर्ट के हवाले है और सबको देश की सबसे बडी अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए ।