नुक्कड़ नाटक से राहगिरी में मानसिक रोगों की जागरुकता

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मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह दिवस पर येाग से दिया संदेश

गुरुग्राम :  विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस सप्ताह के दौरान संबध हैल्थ फाउंडेशन के द्वारा रविवार को गलेरिया मार्केट क्षेत्र में राहगिरी में मानसिक रोगों की जागरुकता पर सुबह 7 से 10 बजे तक नुक्कड़ नाटक, रोल प्ले सहित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कर मानसिक रोगों से संबधित पर जानकारियां दी गई वंही भारत व विदेशों में मानसिक रोगों की भिन्नता पर भी जानकारी प्रदान की गई।
संबध हैल्थ फाउंडेशन की मुख्य कार्यकर्ता ऋता सेठ ने बताया कि मानसिक रोगों की जागरुकता पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन संस्थान के द्वारा विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस सप्ताह के दौरान किया जा रहा है। जिसमें आज मानसिक स्वास्थ्य दिवस सप्ताह mansik-2-aके तहत संस्थान के द्वारा मनोरोग के बारे में योगा व नुक्कड़ नाटक से जानकारी दी, और किस प्रकार से मानसिक रोगों में राहत पाई जाये इस पर जानकारी दी। इससे सबंधित प्रचार सामग्री का वितरण किया गया। 
कनाडा स्थित अंर्तराष्ट्रीय संगठन कनैक्शन की मानसिक रोग विशेषज्ञ नैंसी बेक ने कहा है कि कनाडा में मानसिक रोगियेां के लिए समुदाय आधारित केंद्र है जंहा पर उन्हे रिकवरी कार्यक्रम के तहत सामान्य जीवन की शुरुआत की जाती है इसी तरह के समुुदाय आधारित केंद्रों की भारत में महती आवश्यकता है। 
नैंसी बेक ने कहा कि वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर सही उपचार, परिवार और समाज के समर्थन और साथ से मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति अपने समुदाय में एक सार्थक जीवन जीने का आनंद ले सकते है। वे बताती है कि मानसिक बीमारी के बारे में बातचीत करने से उसके प्रति जो कलंक और शर्म की भावनाऐं जुडी हैं वे कम हो सकती हैं। मानसिक बीमारियों के साथ जीने वाले व्यक्ति यह बताते हैं कि समाज की अस्वीकृति उनके विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। बहुत से लोग जो मानसिक बीमारी को समझते नहीं हैं वे इस से पीड़ित लोगों से डरे हुये हैं। आम तौर पर इस बारे मैं लोगों की समझ मास मीडिया पर ही आधारित होती है। अक्सर आमजन में यह धारणा बनी रहती है कि मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति अजीब, खतरनाक , हिंसक और मंद बुद्धि वाले होते हैं। यह गलत और अनुचित वर्णन एक ऐसी सोच को बढ़ावा देते हैं जो समाज में मानसिक बिमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों और उनके परिवारों की अस्वीकृति और अपेक्षा का कारण है। 
उन्हांेने बताया कि स्किजोफ्रेनिया एंड बाइपोलर जैसे गंभीर मानसिक रोग से रिकवरी का अर्थ यह नहीं है की दवा जरूरी बंद ही हो जायेगी। दवाइयों  के साथ साथ ही रिकवरी का मार्ग  निकलता है।
 
रिकवरी का अर्थ है की व्यक्ति सामाज का उपयुक्त अंग  बन सके। इसके साथ ही वे हम सब की तरह समाज में सम्मान पूर्वक अपने जीवन का निर्वहन कर सकतें है। उन्होने बताया कि प्रदेशभर में मनोरोगियों की संख्या में इजाफा हो रहा है, इनमें सिजोफ्रेनियां, डिप्रेशन और अनियंत्रित व्यवहार प्रमुख है। मनोरागी उचित परामर्श से ठीक हो सकते है। मनोरोगियेां में से अधिकांश को दवा की ही नही बल्कि व्यवहार संबधी समस्या को ठीक करने के लिए सिर्फ उचित मार्गदर्शन की जरुरत हेाती है। मनोरोग संबधी दिक्कत को स्वास्थ्य संबधी हमारी अज्ञानता और आम धारणा बढ़ाने का काम करता है। भारतीय समाज में मनोरोग का मतलब आमतौर पर पागलपन लगाया जाता है। जबकि मनोचिकित्सकेंा की माने तो यह सोच निहायत अवैज्ञानिक है।
 जवाब आधुनिक जीवनशेली ने करीब 10 से 12 प्रतिशत लोगों को नजर नही आने वाले मनोरोग का शिकार बना दिया है। इनमें सिजोफ्रेनिया, अवसाद, बार्डर लाइन पर्सनेलिटी डिसार्डर शामिल है मनेारोग संबधी गड़बड़ियों में समाज के हर तबके के लोग शामिल है। ऐसे लोगों में बड़े बड़े पेशेवर और समाज में मान प्रतिष्ठा वाले लोग भी इसमें शामिल है। चिंताजनक बात यह है कि ऐसे अधिकांश लोग मनोरोग विशेषज्ञों तक पहंुचने से पहले दूसरे विशेषज्ञों से इलाज करवाते रहतें है। 

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