दो केंद्रीय मंत्री और दो राज्यमंत्री का पद मिल सकते हैं
सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक
नई दिल्ली : राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण राज्य बिहार में पिछले 17 घंटे में हुए सियासी उलट फेर के बाद नीतीश कुमार छठवीं बार मुख्यमंत्री बने और इसके साथ ही कयास यह भी लगाये जाने लगे हैं कि जनता दल यू अब केंद्र सरकार में भी शामिल हो सकता है. खबर है कि इसके लिए भी मोदी टीम ने फार्मूला तैयार कर लिया है. पार्टी को दो केंद्रीय मंत्री और दो राज्यमंत्री के पद मिल सकते हैं .
सूत्रों का कहना है कि भविष्य की दृष्टि से एनडीए को मजबूत करने के लिए मोदी टीम इस बात को तैयार है कि जद यू को सरकार में शामिल कर 2019 के लिए बिहार के गठबंधन को मुक्कमल कर लिया जाए. सत्ता किसको अच्छी नहीं लगती सो नीतीश कुमार और केंद्र की राजनीति करने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता के सी त्यागी एवं शरद यादव जैसे सांसदों को इसमें फिट किया जा सकता है. यही वे राजनेता हैं जो हमेशा भाजपा के खिलाफ मुखर रहे हैं. खबर है की इस बारे में भाजपा जल्द ही बैठक कर फैसला लेगी.
गौरतलब है कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बेटे और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर नीतीश ने बुधवार की शाम को इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कहा कि वह नैतिकता और बिहार की अस्मिता से कोई समझौता नहीं कर सकते हैं. राज्य में पिछले कुछ दिनों से जो हो रहा था, वह वैसी परिस्थिति में काम नहीं कर पा रहे थे.
इसके तत्काल बाद भाजपा ने बिना शर्त नीतीश कुमार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. कुछ ही घंटे में बदले सियासी समीकरण के बाद नीतीश कुमार जद यू के नेताओं के साथ राजभवन पहुंचे और नई सरकार बनाने की पेशकश की. गवर्नर केशरीनाथ त्रिपाठी ने उन्हें गुरुवार सुबह 10 बजे शपथ दिलाई. उनके साथ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
इस घटना ने आने वाले 2019 के लोक सभा चुनाव की कहानी का भी प्लाट तैयार कर दिया है. एक तरफ विपक्षी राजनीति को तगड़ा झटक लगा है जबकि दूसरी तरफ भाजपा को बिहार में अपना पुराना साथी मिला गया है जिससे अब आगामी लोक सभा चुनाव में राहें आसान हो सकती है. ऐसे में भाजपा अब कोई कोताही नहीं बरतना चाहती है.
सूत्र बताते हैं कि भजपा नेतृत्व इस बात को तैयार है कि जद यू को मोदी मंत्रिमंडल में जगह दी जाए. इस लिहाज से जद यू के कई नेता जिनमे पार्टी के महासचिव के सी त्यागी, शरद यादव व पवन वर्मा का नाम शामिल है को केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है. गौरतलब है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी अभी कई मंत्रालयों के काम अतिरिक्त प्रभार के रूप में दूसरे विभाग के मंत्रियों को दिए गए हैं. मसलन रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय एवं शहरी विकास मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में फुल टाइम मंत्री नहीं हैं. इसके अलावा मिनिमम गवमेंट और मेंक्सिमम गवर्नेंस की मोदी पालिसी के तहत कई मंत्रालय के काम एक ही मंत्री देख रहे हैं. मोदी सरकार के सामने 2019 से पूर्व जनता के सामने अपने परफॉरमेंस की रिपोर्ट कार्ड भी रखनी है इसलिए उन्हें सभी मंत्रालयों के काम काज को तेज करना होगा. ऐसे में कुछ महत्वपूर्ण विभाग जद यू के खाते में जा सकते हैं.
उल्लेखनीय है कि के सी त्यागी वरिष्ठ वकील और अनुभवी नेता हैं जबकि शरद यादव पूर्व की वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं जबकि पवन वर्मा जो नीतीश कुमार के कट्टर समर्थकों में से एक हैं राजनयिक हैं. दूसरी तरफ नीतीश कुमार के समक्ष भाजपा से हाथ मिलाने के खिलाफ पार्टी में उभर रहे स्वर को कम करने के लिए भी केंद्र सरकार में शामिल होने की मजबूरी है. शरद यादव अब तक मिडिया से मुखातिव नहीं हुए हैं. इससे समझा जा रहा है कि वे नीतीश कुमार के इस फैसले से नाराज हैं और पार्टी के नेता अनवर अली ने भी इस पर नाराजगी जाहिर की है.
तेजी से बदलते राजनीतिक हालत का दोनों ही पार्टियों के नेता फायदा उठाने को आतुर हैं इसलिए संभावना प्रबल है कि जल्दी ही नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल होंगे और जद यू कोटे से भी कुछ चेहरे शामिल किये जायंगे .
जाहिर है लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव पर इस घटना से सांप लोटना लाजिमी है. हालाँकि दोनों पिता-पुत्र कहते थक नहीं रहे हैं कि नीतीश ने उन्हें धोखा दिया है. लालू यादव यह समझाने में लगे है कि उन्होंने तेजस्वी के इस्तीफे पर कोई बात नहीं की थी. दूसरी तरफ तेजस्वी का आरोप है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद गवर्नर ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित नहीं किया, यह जनता के साथ धोखा है. लेकिन उनका यह तर्क अब बिहार की जनता के गले नहीं उतर रहा है क्योंकि यह प्रकरण पिछले दो माह से भी अधिक समय से चल रहा था. नीतीश कुमार ने लालू परिवार को सफाई का मौका दिया और अपनी आलोचना झेलने के बावजूद इंताजर किया कि लालू यादव अपने बचाव के लिए कुछ मजबूत तर्क व तथ्य रख्नेगे लेकिन लालू ऐसा करने में समर्थ नहीं दिखे और बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई की आवाज उठाने वाले नीतीश कुमार को उनसे अलग होने का निर्णय लेना पड़ा.
दूसरी तरफ राज्यपाल के पास सीमित विकल्प थे. इनमे से एक था कि वे राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करें जबकि दूसरा कि उस पार्टी को सरकार के लिए अम्नात्रित करे जो स्थायी सरकार दे सके. इस समय किसी बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की बाध्यता नहीं थी और वह भी तब जब उसी बड़ी पार्टी के साथ चल रही सरकार के सीएम ने सैधांतिक मतभेद के कारण इस्तीफा दिया हो. इसलिए तेजस्वी के ये बचकाने तर्क संविधान के प्रावधानों में वर्णित नहीं हैं.
यह राजनितिक विडम्बना ही है कि जिस कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से पिछले सप्ताह दिल्ली में मुलाक़ात कर नीतीश कुमार ने सारी स्थिति स्पष्ट की और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की गुजारिश की उन्होंने भी आज दिल्ली में कहा कि नीतीश ने महागठबंधन के साथ गद्दारी की है. उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया कि नीतीश कुमार ने उनसे इस सम्बन्ध में कोई बात की थी. उन्होंने कहा कि वह जब मिले थे तो इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी. राहुल ने आरोप लगा दिया कि नीतीश कुमार पिछले तीन-चार महीने से इसके लिए प्लानिंग कर रहे थे, जिसकी उन्हें जानकारी थी. सुविधा की राजनीति करने वाले कांग्रेस नेता को लगातार बन रही विषम परिस्थिति से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है और हर बार भ्रष्टाचार के आरोपियों के साथ खड़े होना उनकी नियति बन गयी है. बिहार की जनता इस बात से वाकिफ है कि राहुल गाँधी क्यों लालू यादव के साथ खड़े हैं . उन्हें भी फॉर खड़ा हो उठा बोफोर्स घोटाला व समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट जैसे कांड का अध्याय खुलने की चिंता सता रही है और इसमें उन्हें कुछ ऐसे लोगों का ही साथ चाहिए जो इसी प्रकार खेल में संलिप्त रहे हों .