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खास खबर : हरियाणा को ‘कलंक’ से बचा रहा है
: जुनैद के गांव में लिंग अनुपात एक हज़ार पर 1200 बालिकाएं हैं
: पंचायत को सम्मानित करने के लिए कभी प्रशासन ने सोचा ही नहीं
यूनुस अलवी
मेवात : चलती ट्रेन में पीट-पीटकर मारा गया जुनैद खान उस गांव का था जो हरियाणा में बेटियों को कोख में मारने का कलंक दूर कर रहा है। राष्ट्रीय राजधानी से महज 40 किलोमीटर दूर बल्लभगढ़ कस्बे के पास नेशनल हाईवे-2 से चंद कदम की दूरी पर स्थित है जुनैद का खंदावली गांव. जहां प्रति हजार लड़कों पर करीब 1200 लड़कियां हैं। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में प्रति हजार पुरुषों पर 879 महिलाएं हैं. कई जिलों में यह संख्या 850 तक है।
बेटियों को कोख में मारने के लिए प्रशिद्ध हरियाणा के इस गांव ने जो काम किया, उसके लिए उसे सरकार पुरस्कृत कर सकती थी. लेकिन गांव के सरपंच निसार अहमद बताते हैं कि ‘कभी इसे सरकार ने इस लायक समझा ही नहीं. जबकि हम बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को जोरदार तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं।
निसार कहते हैं कि मेरा गांव प्रधानमंत्री के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का आइकॉन बन सकता है, लेकिन न तो इस पर कभी केंद्र सरकार की नजर पड़ी और न ही राज्य सरकार की. निसार का आरोप है कि यदि यह मुस्लिम बहुल गांव नहीं होता तो अधिकारी यह बात केंद्र सरकार तक पहुंचा देते।
इस उपलब्धि के पीछे गांव की पूर्व सरपंच नूर निशा का सबसे बड़ा हाथ बताया जाता है. उन्होंने सरपंच रहते हुए घर-घर इस स्लोगन को लिखवाया कि ‘बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहां से लाओगे.’ बेटियों के प्रति भेदभाव न करने के लिए उन्होंने अलख जगाई. इसके लिए उन्हें 2012 में जिला प्रशासन ने सर्टिफिकेट दिया था. लेकिन बात आगे नहीं बढ़ाई गई.
निसार अहमद कहते हैं कि ‘मुस्लिम गांव होने की वजह से उनके साथ भेदभाव हुआ. वरना सेक्स रेशियो के मामले में इसे अवॉर्ड मिल चुका होता.’
यहां रहने वाले मुबीन खान कहते हैं कि यह गांव अल्ट्रासाउंड जांच करवाकर लड़के-लड़की में भेदभाव करने की बीमारी से दूर है। बुजुर्गों ने इसे गर्भपात की कुप्रथा से बचाने के लिए लोगों को शरियत का हवाला दिया. यह बड़ी वजह है कि यहां लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले अधिक है। उनका कहना है कि इस्लाम धर्म के पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने 1450 साल पहले भ्रूण हत्या को हराम करार दे दिया था। दुनिया के मुसलमान उनके आदेश की पालना करते आ रहे है