परिवार का एक मात्र सहारा था जुम्मेखां

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गांव और आसपास में शोक की लहर

खुश मिजाज और मिलनसार भी था वो

 
 

यूनुस अलवी

मेवात: गांव भूरियाकि निवासी मरहूम जुम्मेखां परिवार का एक मात्र सहारा था। चह घर से यह कहकर निकला था कि बस बुजुर्गो कि पैंशन बांट कर दो घंटे मे आता है लेकिन वह आया भी तो सफेद कपडों की चादर में। जैसे ही बुधवार कि शाम करीब 6 बजे जुम्मेखां का पोस्टमार्टम कराकर गांव भूरियाकी लाया गया तो परिवार और गांव के लोगों में कोहराम मच गया और लोगों के आंखों से असहाय ही आंखों से आंसू टपकने लगे।  
 
    करीब 45 वर्षीय जुम्मेखां पुन्हाना खंड के गांव भूरियाकी का रहने वाला है। उसके तीन लडका और एक लडकी है। लडकी सबीला की दो साल पहले ही उसने शादी की थी जबकी उसके 16 वर्षीय मुकीम, 14 वर्षीय मुस्तकीम और 6 साल का मुज्मिल जो सभी नाबालिग है। पूरे परिवार के कमाने का वो ही एक मात्र सहारा था। जुम्मेखां ने करीब पांच साल पहले गांव भूरियाकी के मोड पर उसने चाय, कोलड्रिंक कि दुकान खोल रखी थी। पढालिखा होने कि वजह से वह कई वर्षो से सिंगार स्थित सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक में बतौर बैंक मित्र काम करता है। बैंक कि ओर से जुम्मेखां को आंधाकी, लफूरी सहित तीन गावों के बुजुर्गो कि बुढापा, विधवा और विलांग पैंशन बांटने का कमिशन मिलता था। दुकान और बैंक से मिलने वाले कमिशन से परिवार का गुजारा चलता था।
 
   गांव भूरियाकी निवासी हाजी मम्मन, दीन मोहम्मद, शमशुद्दीन और इसु मोहम्मद का कहना है कि मरहूम जुम्मेखां एक मिलनसार और खुश मिजाज आदमी था। वह गांव के सभी लोगों का सम्मान करता था। उसका कभी गांव में किसी से कोई झगडा नहीं हुआ। 

  

परिवार को मौत कि सूचना नहीं दी गई थी

 
जुम्मेखां कि मौत दिन के करीब 2 बजे हो गई थी लेकिन उसकी पत्नि और बच्चों को इसकी सूचना नहीं दी गई थी। परिवार वालों को बस यही बताया गया था कि जुम्मेखां को चोट लगी है जिसकी इलाज शहीद हसनखां मेडिकल कॉलेज में चल रहा है। जुम्मेखां कि पत्नि रहीसन को भी उस समय पता चला जब गांव के लोग उसके शव को लेकर गांव पहुंचे। उसके बाद रहीशन के मुख से अहसाय ही निकल पडा कि या अल्लाह मैं तो उजड गई और छोटे-छोटे बच्चों का क्या होगा।

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