कोर्ट ने मामले की जल्द सुनवाई से किया इनकार
नई दिल्ली: वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की राम मंदिर विवाद की शीघ्र सुनवाई की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोनों पक्ष आपसी सुलह से कोई रास्ता खोजें तो बेहतर है. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सर्वसम्मति पर पहुंचने के लिए सभी संबंधित पक्ष एक साथ बैठें और इस मामले पर गंभीरता से विचार कर हल ढूढें . कोर्ट ने मामले की जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया. प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे धार्मिक मुद्दों को बातचीत से सुलझाया जा सकता है और उन्होंने सर्वसम्मति पर पहुंचने के लिए मध्यस्थता करने की पेशकश भी की. इस पीठ में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस के कौल भी शामिल हैं.
प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने साफ़ कह दिया कि ‘ये धर्म और भावनाओं से जुड़े मुद्दे हैं. ये ऐसे मुद्दे है जहां विवाद को खत्म करने के लिए सभी पक्षों को एक साथ बैठना चाहिये और सर्वसम्मति से कोई निर्णय लेना चाहिये. आप सभी साथ बैठ सकते हैं और सौहार्दपूर्ण बैठक कर सकते हैं.’’ उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी तब की जब सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सुब्रह्मणयम स्वामी ने इस मामले पर तत्काल सुनवाई करने की मांग की. उन्होंने कहा कि इस मामले को छह साल से भी ज्यादा समय हो गया है और इस पर जल्द से जल्द सुनवायी किये जाने की आवश्यकता है. सांसद ने न्यायालय को बताया कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों से बात की थी और उन्होंने कहा था कि इस मामले को हल करने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत है.
देश के प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इस विवाद मने सर्वसम्मति से किसी समाधान पर पहुंचने के लिए नये सिरे से प्रयास करने की जरूरत है. उन्होंने यहाँ तक कहा अगर जरुरत पड़ी तो आपको इस विवाद को खत्म करने के लिए कोई मध्यस्थ भी चुनना चाहिये. अगर दोनों पक्ष चाहते हैं कि मैं उनके द्वारा चुने गये मध्यस्थों के साथ बैठूं तो मैं इसके लिए तैयार हूं. यहां तक कि इस उद्देश्य के लिए मेरे साथी न्यायाधीशों की सेवाएं भी ली जा सकती हैं.’शीर्ष न्यायालय ने कहा कि अगर दोनों पक्ष चाहे तो वह प्रधान वार्ताकार भी नियुक्त कर सकता है. इसके बाद पीठ ने स्वामी से कहा कि वे दोनों पक्षों से सलाह करें और 31 मार्च तक फैसले के बारे में सूचित करें.
गत वर्ष 26 फरवरी को उच्चतम न्यायालय ने ध्वस्त किये गये विवादित ढांचे के स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की मांग करने वाली स्वामी की याचिका के साथ उन्हें अयोध्या विवाद से संबंधित लंबित मामलों में बीच बचाव करने की अनुमति दी थी.इससे पहले भाजपा नेता ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति देने का निर्देश देने के लिए एक याचिका दायर की थी और तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अगुवायी वाली पीठ के समक्ष उस पर तत्काल सुनवायी करने का अनुरोध किया था. अपनी याचिका में स्वामी ने दावा किया था कि इस्लामी देशों में प्रचलित प्रथाओं के तहत किसी मस्जिद को सार्वजनिक उद्देश्यों जैसे कि सड़क निर्माण के लिए किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जा सकता है जबकि किसी मंदिर का निर्माण होने के बाद उसे हाथ नहीं लगाया जा सकता.
उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के निस्तारण में तेजी लाने के निर्देश देने की भी मांग की थी जिसमें 30 सितंबर 2010 को अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल को तीन तरीके से विभाजित करने का फैसला दिया था.राम मंदिर मुद्दा 1989 के बाद अपने उफान पर था.