Modi Cabinet Decesion : नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल ने चंद्रयान-4 मिशन के लिए मंजूरी दी , चांद से धरती पर वापस आने का प्रोजेक्ट

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नई दिल्ली :   प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने चंद्रयान-4 नामक मिशन को मंजूरी दे दी है, जिसका मकसद चांद पर सफलतापूर्वक उतरने के बाद, पृथ्वी पर वापस आने में प्रयोग होने वाली प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन करना है, साथ ही चंद्रमा से नमूने लाकर, पृथ्वी पर उनका विश्लेषण करना है। चंद्रयान -4 मिशन दरअसल, चंद्रमा पर भारत की लैंडिंग (वर्ष 2040 तक नियोजित) और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस आने के लिए मूलभूत प्रौद्योगिकी क्षमताओं को प्राप्त करेगा।  डॉकिंग/अनडॉकिंग, लैंडिंग, पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी और चंद्रमा के नमूना संग्रह और उनके विश्लेषण को पूरा करने के लिए ज़रुरी प्रमुख प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया जाएगा। यह जानकारी केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज पत्रकार वार्ता में दी .

केबिनेट की बैठक के बाद मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों की जानकारी देने के क्रम में श्री वैष्णव ने बताया कि भारत सरकार ने अमृत काल के दौरान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक विस्तारित दृष्टिकोण का खाका तैयार किया है, जिसके तहत वर्ष 2035 तक एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन) और वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर भारत की लैंडिंग की परिकल्पना की गई है। इस परिकल्पना को साकार करने के लिए, गगनयान और चंद्रयान फॉलो-ऑन मिशनों की एक श्रृंखला की भी रुपरेखा तैयार की गई है, जिसमें संबंधित अंतरिक्ष परिवहन और बुनियादी ढांचे की क्षमताओं का विकास शामिल है। चंद्रयान -3 लैंडर की चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग के सफल प्रदर्शन ने कुछ अहम प्रौद्योगिकियों को स्थापित किया है और उन क्षमताओं का प्रदर्शन किया है जो केवल कुछ ही दूसरे देशों के पास है। चंद्रमा के नमूने एकत्र करने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की क्षमता के प्रदर्शन से ही सफल लैंडिंग मिशन का अगला कदम निर्धारित हो सकेगा।

अंतरिक्ष यान के विकास और प्रक्षेपण की जिम्मेदारी इसरो की होगी। इसरो में मौजूद स्थापित कार्यप्रणाली के माध्यम से परियोजना को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जाएगा और उसकी निगरानी की जाएगी। उद्योग और शिक्षाविदों की भागीदारी की मदद से, अनुमोदन के 36 महीनों के भीतर मिशन के पूरा होने की उम्मीद है।

सभी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को स्वदेशी रूप से विकसित करने की परिकल्पना की गई है। मिशन को विभिन्न उद्योगों के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है और उम्मीद की जा रही है कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी इससे रोजगार की उच्च संभावना पैदा होगी और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा।

प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन “चंद्रयान -4” के लिए कुल 2104.06 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। लागत में अंतरिक्ष यान का निर्माण,  एलवीएम 3 के दो लॉन्च वाहन मिशन,  बाह्य गहन अंतरिक्ष नेटवर्क का समर्थन और डिजाइन सत्यापन के लिए विशेष परीक्षण आयोजित करना,  और अंत में चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग के मिशन और चंद्रमा के नमूने एकत्रित कर उनकी पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी शामिल हैं।

यह मिशन भारत को मानवयुक्त मिशनों, चंद्रमा के नमूनों की वापसी और चंद्रमा के नमूनों के वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण मूलभूत प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भर होने में सक्षम बनाएगा। इसे साकार करने में भारतीय उद्योग की भी अहम भागीदारी होगी। चंद्रयान-4 विज्ञान बैठकों और कार्यशालाओं के माध्यम से भारतीय शिक्षा जगत को इससे जोड़ने की योजना पहले से ही तैयार है। यह मिशन पृथ्वी पर लाए गए नमूनों के क्यूरेशन और विश्लेषण के लिए बेहतर सुविधाएं भी सुनिश्चित करेगा, जोकि राष्ट्रीय संपत्ति होंगी।

चंद्रमा और मंगल के बाद, भारत ने शुक्र ग्रह के संबंध में विज्ञान के लक्ष्य निर्धारित किए

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वीनस ऑर्बिटर मिशन (वीओएमके विकास को मंजूरी प्रदान की हैजो चंद्रमा और मंगल से परे शुक्र ग्रह के अन्वेषण और अध्ययन के सरकार के विजन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। शुक्रपृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह है और माना जाता है कि इसका निर्माण पृथ्वी जैसी ही परिस्थितियों में हुआ हैयह इस बात को समझने का अनूठा अवसर प्रदान करता है कि ग्रहों का वातावरण किस प्रकार बहुत अलग तरीके से विकसित हो सकता है।

अंतरिक्ष विभाग द्वारा पूरा किया जाने वाला वीनस ऑर्बिटर मिशन’ शुक्र ग्रह की कक्षा में एक वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान की परिक्रमा करने के लिए परिकल्पित हैताकि शुक्र की सतह और उपसतहवायुमंडलीय प्रक्रियाओं और शुक्र के वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझा जा सके। शुक्रजिसके बारे में माना जाता है कि यह कभी रहने योग्य हुआ करता था और काफी हद तक  पृथ्वी के समान थाऐसे में शुक्र के परिवर्तन के अंतर्निहित कारणों का अध्ययन शुक्र और पृथ्वी दोनों बहन ग्रहों के विकास को समझने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक होगा।

इसरो इस अंतरिक्ष यान के विकास और प्रक्षेपण के लिए उत्तरदायी होगा। इस परियोजना का प्रबंधन और निगरानी इसरो में स्थापित प्रचलित प्रथाओं के माध्यम से प्रभावी ढंग से की जाएगी। इस मिशन से उत्पन्न डेटा को मौजूदा तंत्रों के माध्यम से वैज्ञानिक समुदाय तक पहुंचाया जाएगा।

इस मिशन के मार्च 2028 के दौरान उपलब्ध अवसर पर पूरा होने की संभावना है। भारतीय शुक्र मिशन से कुछ अनसुलझे वैज्ञानिक प्रश्नों के उत्तर मिलने की संभावना हैजिनकी परिणति विभिन्न वैज्ञानिक परिणामों में होगी। अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण यान का निर्माण विभिन्न उद्योगों के माध्यम से किया जा रहा है और इस बात की परिकल्पना की गई है कि इससे बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन होगा और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी का प्रसार होगा।

वीनस ऑर्बिटर मिशन” (वीओएमके लिए स्वीकृत कुल निधि 1236 करोड़ रुपये हैजिसमें से 824.00 करोड़ रुपये अंतरिक्ष यान पर खर्च किए जाएंगे। इस लागत में अंतरिक्ष यान का विकास और प्राप्तिइसके विशिष्ट पेलोड और प्रौद्योगिकी तत्वनेविगेशन और नेटवर्क के लिए ग्लोबल ग्राउंड स्टेशन सपोर्ट की लागत और प्रक्षेपण यान की लागत शामिल है।

शुक्र की ओर यात्रा

यह मिशन भारत को विशालतम पेलोडइष्टतम ऑर्बिट इन्सर्शन अप्रोच सहित भविष्य के ग्रह संबंधी मिशनों में सक्षम बनाएगा। अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण यान के विकास के दौरान भारतीय उद्योग की महत्वपूर्ण भागीदारी होगी। प्रक्षेपण से पहले के चरणजिसमें डिजाइनविकासपरीक्षणटेस्ट डेटा रिडक्शनकैलीब्रेशन आदि शामिल हैंमें विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी और छात्रों के प्रशिक्षण की भी परिकल्पना की गई है। अपने अनूठे उपकरणों के माध्यम से यह मिशन भारतीय विज्ञान समुदाय को नए और महत्वपूर्ण  विज्ञान डेटा प्रदान करता है और इस प्रकार उभरते हुए और नवीन अवसर प्रदान करता है।

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