नायब सिंह सैनी सरकार गिरेगी या कांग्रेस का केवल राजनीतिक स्टंट ?

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सुभाष चौधरी /The Public World 

चंडीगढ़ :  हरियाणा में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि भारतीय जनता पार्टी की नायब सिंह सैनी सरकार अल्पमत में आ गई है. कहा जा रहा है कि यह सरकार अब कुछ ही दिनों की मेहमान है क्योंकि प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों ने भाजपा सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. इससे विधानसभा में भाजपा सरकार के  बहुमत का गणित बिगड़ गया है. इससे पहले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सहयोगी दल जेजेपी ने भी समर्थन वापस ले लिया था. लगभग छह माह के बचे हुए अपने  कार्यकाल के लिए भाजपा के सामने सरकार बचाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है. नायब सैनी सरकार इस खतरे से कैसे निपटेगी इसको लेकर भाजपा और विपक्ष के साथ प्रदेश की जनता भी मंथन कर रही है. लगभग साढ़े नौ साल बाद हरियाणा की राजनीति में नया मोड़ आया है जिसका किसी को भी अंदाजा नहीं था. तकनीकि दृष्टि से फिलहाल कोई खतरा तबतक नहीं लगता जबतक कि प्रदेश के राज्यपाल, सीएम सैनी को विश्वास मत हासिल करने को न कहें. इसमें बाकी बचे निर्दलीय विधायकों और भाजपा के साथ सरकार में सहयोगी रही जेजेपी के विधायकों पर ही इस सरकार का भविष्य निर्भर करेगा.

 

सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के लिए सरकार बनाने की कोई संभावना है ?

 

गौर करने वाली बात यह है कि जेजेपी नेता और हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने नायब सिंह सैनी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस पार्टी का साथ देने का ऐलान कर दिया है. दुष्यंत चौटाला ने साफ़ शब्दों में कहा है कि अल्पमत में आई भाजपा सरकार को अगर गिराने की नौवत आई तो नई बनने वाली सरकार को वह बाहर से समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस को तय करना है कि वह भाजपा सरकार को गिराने के लिए कोई कदम उठाती है या नहीं. उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह बाहर से समर्थन देंगे. उन्होंने अपने विधायकों में टूट की आशंका के मद्देनजर यह कहते हुए भी साफ़ कर दिया है कि जब तक उनके पास व्हिप का प्रावधान है, तब तक सभी पार्टी विधायकों को व्हिप के अनुसार ही विधानसभा में वोट डालना पड़ेगा. ऐसे में कांग्रेस पार्टी अगर भाजपा सरकार को गिराने और अपनी सरकार बनाने की दिशा में आगे बढती है तो जेजेपी का साथ उन्हें मिला सकता है. यह एक तरफ कांग्रेस की ओर से शुरू की जाने वाली मुहीम पर निर्भर करेगा जबकि दूसरी तरफ विधायी प्रावधानों में मौजूद तकनीकि बाध्यतायें उनके आड़े आ सकती हैं.

विधानसभा में क्या है स्थिति ? 

वर्त्तमान हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस के 30 विधायक हैं जबकि सरकार बनाने के लिए 45 विधायक चाहिए . अगर दुष्यंत चौटाला का कांग्रेस को साथ मिलता है तो  जेजेपी के 10 विधायकों का बाहर से मिलने वाले समर्थन से यह आंकड़ा 40 तक पहुँच सकता है. फिर भी कांग्रेस को बहुमत हासिल करने के लिए पांच विधायकों की जरूरत पड़ेगी. अब तीन निर्दलीय विधायकों ने नायब सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान किया है उनको मिलाकर यह संख्या 43 हो सकती है. तीन अन्य निर्दलीय विधायक जो फिलहाल भाजपा के साथ हैं में अगर दो भी पाला बदलने को तैयार हो जाते हैं तो कांग्रेस सरकार बनाने के जादुई आंकड़े तक पहुँच सकती है. लेकिन यह संभावना है जिसे धरातल पर लाना टेढ़ी खीर है तब जबकि देश में ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स का भय व्याप्त है. हरियाणा में कई कांग्रेसी नेता भी इन एजेंसियों की कार्रवाई की चपेट में हैं फिर इस प्रकार का साहस जुटाना जोखिम भरा होगा जिसके लिए वे शायद ही तैयार हों . जिन निर्दलियों ने भाजपा का साथ छोड़ा है उनका भविष्य कितना सुरक्षित है इसका अंदाजा लोकसभा चुनाव के बाद आने वाले परिणाम के बाद लगेगा. राजनीतिक हालात बदलते देर नहीं लगती तब जबकि भारत जैसे देश में 24 घंटे में ही प्रदेश में दो सरकारें बदल जाने का अनोखा इतिहास रहा हो.

 

बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लेना केवल संभानाओं वाला जोड़तोड़ :

 

कांग्रेस के लिए बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लेना केवल संभानाओं वाला जोड़तोड़ लगता है जो वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में संभव नहीं है. इसके मजबूत कारण हैं. क्योंकि जो जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला प्रदेश में भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस को बाहर से समर्थन देने का ऑफर दे रहे हैं, उनकी अपनी पार्टी के विधायकों पर ही कमांड नहीं है. न तो पिछले वर्षों में उनके विधायक एकजुट थे और न आज हैं. जेजेपी में फूट किस कदर है इसका प्रमाण कई बार सामने आ चुका है. पार्टी के कई नेता उन्हें छोड़कर कांग्रेस और भाजपा में चले गए जबकि जेजेपी के छह विधायक असंतुष्ट और बागी बने हुए हैं. बड़ा सवाल है कि  दुष्यंत चौटाला पर कांग्रेस कैसे भरोसा करे जब उनके विधायक ही उनका नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं है. विधायक गौतम के सुर तो हमेशा विद्रोही रहे हैं जबकि देवेन्द्र बबली के कदम भी लड़खड़ा रहे हैं. इसके अलावा 20 19 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद दुष्यंत ने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की लाख कोशिश के बावजूद कांग्रेस के साथ जाने से इनकार कर दिया था.

 

दूसरी तरफ चर्चा जोरों पर है कि जेजेपी के 10 विधायकों में से 6 दुष्यंत चौटाला से संतुष्ट नहीं हैं. असंतुष्ट और बागी विधायकों में पूर्व पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली अब तक फैसला नहीं ले सके हैं कि वह भाजपा के साथ जाएंगे या कांग्रेस का साथ देंगे. बबली और गौतम का झुकाव बीजेपी की तरफ है. नरवाना के विधायक राम निवास सुरजाखेड़ा और बरवाला के जोगीराम सिहाग का बीजेपी के लिए प्रेम सबके सामने आ चुका है. दुष्यंत चौटाला अनूप धानक, नैना चौटाला और अमरजीत टांडा को छोड़कर बाकी के छह विधायक बागी माने जा रहे हैं. संभावना प्रबल है कि इनका साथ भाजपा को मिल सकता है.

यह कहना सही होगा कि जेजेपी नेता के दावे बालू की उस भीत की तरह है जिसके ढहने की दिशा न तो पार्टी के नेता को पता है और न ही उनके विधायकों को. ऐसे में कांग्रेस नंबर जुटा पाएगी, यह संदेह के दायरे में है.

 

हरियाणा की नायब सैनी सरकार को अल्पमत में क्यों बताया जा रहा है ?

 

दरअसल मंगलवार को उस वक्त हरियाणा में सियासी हलचल तेज हो गया जब मौजूदा नायब सिंह सैनी  सरकार से नाराजगी के चलते निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान (दादरी), रणधीर सिंह गोलन (पुंडरी) और धर्मपाल गोंदर (नीलोखेड़ी) ने अपना समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया . धर्मपाल गोंदर ने नायब सैनी सरकार को किसान और गरीब विरोधी बताया और समर्थन वापस लेने की घोषणा की.

क्या है बहुमत का आंकड़ा ?

 

हरियाणा में सत्ता में काबिज होने के लिए विधानसभा में किसी भी दल के पास 45 विधायक होने जरूरी हैं.  जेजेपी के समर्थन वापस लेने के बाद नायब सिंह सैनी सरकार के पास 43 विधायक थे. इनमें से 3 विधायकों ने मंगलवार को समर्थन वापस ले लिया . इसके बाद उनके पास अब 40 विधायक रह गए हैं.

हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की मौजूदा क्षमता 88 है. विधानसभा में बीजेपी के 40, कांग्रेस के 30 और जेजेपी के 10, 6 निर्दलीय, 1 विधायक इनोले के और 1 विधायक हरियाणा लोकहित पार्टी से है. विधानसभा में दो सीटें अभी खाली हैं, जिस पर 25 मई को उपचुनाव होना है. खाली सीट में से एक करनाल विधानसभा क्षेत्र है जहाँ से पूर्व सीएम मनोहर लाल के इस्तीफे के बाद नए सीएम नायब सिंह सैनी चुनाव लड़ आरहे हैं. नायब सिंह सैनी सरकार के पास बहुमत से दो विधायक कम हैं. वर्तमान में नायब सैनी सरकार को दो अन्य निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त था जिन्होंने अब समर्थन वापस लेते हुए सरकार का साथ छोड़ दिया है. इसके बाद से ही सैनी सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं .

 

नायब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बने रहने की क्यों है संभावना ?

 

अबतक की विधायी परम्पराओं के अनुसार नायब सिंह सैनी फिलहाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने रहेंगे. इसके कई कारण हैं. पहला तो यह कि जब तक सदन में सैनी सरकार की किसी भी विपक्षी दल द्वारा विधानसभा में लाये गए अविश्वास प्रस्ताव में हार नहीं हो जाती है. दूसरा यह कि जब तक सैनी सरकार को राज्यपाल अल्पमत में आने की स्थिति में सदन में विश्वास मत हासिल करने को न कहे और उस दौरान वोटिंग में उनकी हार न हो जाए.  उनकी सरकार के बहुमत या अल्पमत में आने का फैसला सदन के पटल पर ही होगा. इस मामले में कई बार देश के कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट फैलसा आ चुका है. चाहे वह हाल ही में महाराष्ट्र के मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला हो या इससे पूर्व उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार का मामला या पुराने जमाने में कर्नाटक में बोम्मई सरकार का मामला. सदन से बाहर किसी भी सरकार के अल्पमत में होने का फैसला नहीं हो सकता.

 

विपक्ष के पास कौन से विकल्प हैं ? 

अब इन दोनों स्थितियों के उत्पन्न होने के अलग –अलग तरीके हैं. समझना यह जरूरी है कि हरियाणा सरकार को अल्पमत में होना साबित करने के लिए विपक्षी दलों को विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाना होगा. इस बात पर गौर करना जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी इसी वर्ष मार्च में हरियाणा विधानसभा में भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी जो बड़े अंतर से गिर गई . हालांकि मतविभाजन की मांग करने से पहले ही कांग्रेस पार्टी सदन से वाक् आउट कर गई थी.

प्रावधान यह कहता है कि अभी विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव सरकार के खिलाफ नहीं लाया जा सकता,  क्योंकि दो अविश्वास प्रस्ताव के बीच कम से कम 180 दिन यानी छह माह का अंतर होना जरूरी होता है. ऐसे में विपक्ष के पास यह विधायी हथियार अभी नहीं है. यानी जून 2024 के बाद ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. दूसरी तरफ इस सरकार का कार्यकाल भी अब केवल छह माह यानी अक्टूबर तक बचा हुआ है. नियमतः अक्टूबर 2024 में विधानसभा चुनाव होना चाहिए.

अब दूसरा कारण राज्यपाल के हाथ में है. विपक्ष को राजनीतिक तौर पर राज्यपाल को ज्ञापन देकर यह समझाना पड़ेगा कि नायब सिंह सैनी सरकार अल्पमत में है. क्योंकि तीन निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया है, तो नायब सिंह सैनी सरकार अल्पमत में है.  इसलिए इस सरकार को सत्ता में बने रहने का अब कोई नैतिक आधार नहीं है. विपक्ष को अपने तर्क व तथ्य से राज्यपाल पर इतना दबाव बनाना पड़ेगा कि वे सैनी सरकार को सदन के पटल पर (floor of the house ) विश्वास मत हासिल करने को कहे. अगर इसमें कामयाबी मिली तो राज्यपाल भाजपा सरकार को सदन में विश्वास मत हासिल करने को कहेंगे और तब विपक्ष गणित में उसे हरा दे तो ही सरकार गिर सकती है. इस बात की संभावना नगण्य है कि राज्यपाल वर्तमान परिस्थिति में विपक्ष के दबाव में आयेंगे और सीएम सैनी से विश्वास मत हासिल करने को कहेंगे. राज्यपाल की भूमिका एनी राज्यों में कैसी रही है इससे हरियाणा के नेता अछी तरह वाकिफ हैं. इसलिए विपक्ष इस हथियार का इस्तेमाल केवल प्रदेश की जनता की नजरों में राजनीतिक बढ़त व सहानुभूति हासिल करने के लिए कर सकता है.

 

तीसरा कारण है अगर भाजपा सरकार विधानसभा के चुनाव की घोषणा करने से पूर्व सदन की बैठक आहूत करती है और कोई विधायी कार्य करना चाहे , कोई विधेयक पास करवाना चाहे तो उस समय साधारण बहुमत की आवश्यकता पड़ेगी. ऐसे में विपक्ष एकजुट होकर उक्त विधेयक को अगर मत विभाजन मांगते हुए गिरा दे तो भी सरकार पराजित मानी जायेगी और संसदीय परम्परा के अनुसार सैनी सरकार को इस्तीफा देना होगा. लेकिन इन तीनों ही परिस्थितियों के उत्पन्न होने की संभावना क्षीण है.

 

 

 

 

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