-बेटियों ने पेड़ों को राखी बांधकर मानवता की रक्षा के लिए दिया पेड़ बचाने का संदेश
-पर्यावरण संरक्षण के प्रति स्कूली बच्चों और लोगों को किया प्रेरित
गुरुग्राम। रक्षाबंधन पर्व पर गुरुग्राम की बेटियों ने एक बार फिर उत्तराखंड राज्य में चलाये गए चिपको आन्दोलन की याद ताजा कर दी. तब ठेकेदारों द्वारा पेड़ों की जा रही निर्मम कटाई को रोकने के लिए चिपको आंदोलन चला था और आज रक्षाबंधन पर्व पर गुरुग्राम शहर में पर्यावरण संरक्षण के लिए बुधवार को पेड़ों में कनिष्का, वंशिका, यशिका सहित कई बेटियों ने राखी बांधकर मानवता को बचाने का सन्देश दिया। अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों से पर्यावरण संरक्षण की नैतिक शिक्षा लेकर ये बच्चियां ऐसे ख़ास अवसरों पर घर के आसपास न केवल पौधा रोपण करती है बल्कि उसका आजीवन देखरेख करने का फर्ज भी निभाती हैं। इन बेटियों ने इस त्यौहार को अपनी संवेदनशीलता से आस पास पड़ोस को भी जागरूक बना दिया है.
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के रेनी गांव में 1973 में चिपको आंदोलन शुरू हुआ था . तब यह राज्य उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा था। चिपको आंदोलन को उत्तराखंड की पहाड़ियों में लकड़ी के ठेकेदारों द्वारा बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा रहे थे. इससे क्षेत्र की पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा था. स्थानीय लोग इस अन्याय के खिलाफ बोने से कतराते थे. प्रसिद्द पर्यावरण विद चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदर लाल बहुगुणा ने स्थानीय लोगों को जागरूक किया और क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चिपको आन्दोलन. इसमें लोग पेड़ से चिपक कर उसे काटने से बचाने का विरोध करते थे. इस आन्दोलन ने भारत ही नहीं विश्व में बड़ा मजबूत सन्देश दिया था जिससे तत्कालीन सरकार को भी अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा था .
कुछ ऐसा ही सन्देश आज गुरुग्राम की बेटियों ने शहरवासियों को इस अभियान की शुरुआत कर दिया है. कनिष्का, वंशिका, यशिका ने स्वयं को रक्षाबंधन पर घर-परिवार में सिर्फ भाइयों की कलाई पर ही राखी बांधने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि पेड़ों की टहनियों पर भी राखी बांधकर पेड़ों की रक्षा करने का संकल्प लिया। इन बेटियों के इस प्रेरक कदम ने उनके परिवारवालों की भी आखें खोल दी . समाज में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि अगर पर्यावरण संरक्षण के लिए पेड़ों की देखरेख की जिम्मेदारी हमारे बच्चे लेने लगे जिसका सकारात्मक असर देखने को मिलेगा.
गुरुग्राम में लम्बे समय से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले राज सैनी बिसरवाल व राजेश सैनी अपनी बेटियों को लेकर स्वयं के लगाए पेड़ों पर राखी बंधवाने पहुंचे। उन्होंने कहा कि पेड़ हमारे जीवनदायक है, इसलिए उनका हमारे जीवन में महत्व है। जब वे हमारे जीवन की रक्षा करते हैं तो पेड़ों का जीवन बचाना भी हमारा फर्ज है।
उन्होंने कहा कि हमें पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। पेड़ लगाकर उनका पालन-पोषण बच्चों की तरह किया जाता है, जब जाकर वे हमें अपनी छाया प्रदान करते हैं। पर्यावरण प्रेमियों ने कहा कि हर तीज-त्योहार पेड़ों के बिना अधूरा है। शहरीकरण से पेड़ों की कटाई धड़ल्ले से की जा रही है, लेकिन पेड़ लगाने का काम धीमा है। उन्होंने सरकार, प्रशासन से यह भी आग्रह किया है कि किसी भी सडक़, इमारत के निर्माण के समय राह में आने वाले पेड़ों की कटाई करने की बजाय उनका ट्रांसप्लांट कर दूसरी जगह लगाना चाहिए। क्योंकि एक पेड़ को बड़ा होने में समय भी लगता है और उसकी देखरेख में कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती है।
इस प्रकार की जागरूकता समाज की बेटियों में इस लिए भी आने लागी है क्योंकि हाल ही में एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह कहा गया है कि हरियाणा में पिछले वर्षों में पौधारोपण का कोई ख़ास अभियान नहीं चलाया गया. प्रदेश में कुल 3.9 प्रतिशत ही जंगल है जो कई दशक से यथास्थिति में है. अगर बात की जाय शहरी क्षेत्र की तो गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों में लोगों के रहने के लिए , व्यावसाय के लिए , सड़कों के लिए और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए जगह को विस्तार दो दिया गया लेकिन जीवन रक्षक पेड़- पौधे लगाने पर अपेक्षित बल नहीं दिया गया . आकलन बताता है कि इन शहरों में निर्ममता से हजारों पेड़ काटे गए जिसका विकल्प नहीं बनाया गया . परिणामतः सालों भर प्रदूषण स्तर खतरनाक स्थिति में रहता है और इस इलाके में रहने वाले लोगों की जिंदगी पर इसका सीधा असर पड़ रहा है.
ऐसे में गुरुग्राम की बेटियों की ओर से पेड़ों को रक्षा सूत्र बाँध कर लोगों को पर्यावरण संतुलन के प्रति जागरूक करने की शुरुआत मील का पत्थर साबित हो सकती है .