सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले पर मोहर लगा दी

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नई दिल्ली :   सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में केंद्र सरकार के 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को अचानक बंद करने के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि रिज़र्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच नोटबंदी को लेकर छह महीने तक विचार-विमर्श किया गया था । नोटबंदी के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए एक दर्जन से अधिक  याचिकाएं दायर की गई थी । इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस.ए. नजीर और जस्टिस बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन और बी.वी. नागरत्ना वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया जबकि  न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस फैसले पर असहमति जताई ।

न्यायमूर्ति गवई ने बहुमत का फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी फैसले को इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वो सरकार ने लिया था । फैसले में कहा है कि रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि नोटबंदी को लेकर आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच 6 महीने तक विचार-विमर्श किया गया । नोटबंदी के दौरान उर्जित आर. पटेल आरबीआई के गवर्नर थे और उनसे पहले रघुराम राजन थे, जिनका कार्यकाल 4 सितंबर 2013 से 4 सितंबर 2016 तक था ।

शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि यह माना गया है कि आर्थिक नीति से संबंधित मामलों में दखल देने के मामले में बहुत संयम बरतना पड़ता है. न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना वैध थी और समानता की कसौटी पर खरी उतरती है. उन्होंने साफ़ कर दिया कि इस अधिसूचना को निर्णय लेने की प्रक्रिया के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है।

दूसरी तरफ पीठ की सदस्य न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि धारा 26 (2) की जांच का मतलब नोटबंदी के गुण-दोषों पर चर्चा नहीं है और इसलिए यह इस अदालत द्वारा खींची गई ‘लक्ष्मण रेखा’ के भीतर है।

सुनवाई के दौरान, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों के वैध नोटों को वापस लेने का निर्णय परिवर्तनकारी आर्थिक नीति कदमों की सीरीज में महत्वपूर्ण कदमों में से एक था. सरकार ने कोर्ट ने बताया था कि यह निर्णय आरबीआई के साथ विचार-विमर्श के बाद लिया गया था।

वित्त मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा था कि कुल करेंसी वेल्यू के एक महत्वपूर्ण हिस्से के टेंडर एक सोचा-समझा निर्णय था । यह आरबीआई के साथ विचार-विमर्श और अग्रिम तैयारियों के बाद लिया गया था। इसमें आगे कहा गया कि नकली पैसे, टेरर फाइनेंसिंग, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए विमुद्रीकरण भी एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था।

सरकार ने कहा था कि 08 नवम्बर 2016 को जारी अधिसूचना नकली नोटों के खतरे से लड़ने, बेहिसाब संपत्ति के भंडारण और विध्वंसक गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए एक बड़ा कदम था।

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