नगर निगम अफसर व दो भाजपा नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की शिकायत निकली फर्ज़ी

Font Size

– तमाम प्रयासों के बावजूद शिकायतकर्ता नहीं मिला, पता भी ग़लत दिया गया है

– मुख्य सचिव के फ़रवरी 2021 के आदेशानुसार बेनामी और फ़र्ज़ी शिकायतों की जाँच नहीं हो सकती

– जिला प्रशासन के सुस्त और संदेहास्पद रवैये के कारण हुई भाजपा नेताओं की किरकिरी 

-तथ्यहीन कारणों से सरकार और पार्टी दोनों पर उठे बेतुके सवाल

सुभाष चौधरी 

गुरुग्राम 14 मार्च। जिला प्रशासन द्वारा नगर निगम के अफसर तथा दो भाजपा नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की शिकायत फ़र्ज़ी निकली और मुख्यसचिव के आदेश के अनुसार बेनामी और फ़र्जी शिकायतों की जाँच नहीं की जा सकती । अतः इस शिकायत को प्रशासन ने दफ़्तर दाखिल, फ़ाइल कर दिया है। जाहिर है पिछले 14 फ़रवरी से गुरुग्राम शहर में चल रही भ्रष्टाचार सम्बन्धी कयासबाजी को अब विराम लग गया है. इससे भाजपा नेत्री जिनका नाम इस फर्जी शिकायत में उधृत किया गया था को बड़ी राहत मिली है. इस पूरे घटनाक्रम में जिला प्रशासन के सुस्त और संदेहास्पद रवैये के कारण एक तरफ भाजपा नेताओं को मिडिया के सामने अनावश्यक स्पष्टीकरण देना पड़ा जबकि प्रदेश सरकार और भाजपा की भी जमकर छीछालेदार हुई .

 

जिला लोक संपर्क विभाग गुरुग्राम की ओर से सोमवार को जिला प्रशासन गुरुग्राम के हवाले से इस मामले पर जारी बयान में कहा गया है कि “ गुरुग्राम  जिला प्रशासन के फील्ड स्टाफ से मिली रिपोर्ट में पाया गया है कि प्राप्त शिकायत में शिकायतकर्ता द्वारा जो मकान नंबर दिया गया है, वह गलत पाया गया है. बयान में यह भी कहा गया है कि फील्ड टीम द्वारा मौके पर जाकर वर्णित मकान नंबर के बारे में जब पूछताछ की गई तो वहां के स्थानीय निवासियों द्वारा बताया गया कि इस नंबर का कोई भी मकान उनके क्षेत्र में नहीं है और ना ही इस नाम का कोई व्यक्ति उनके क्षेत्र में रहता है.”

जिला प्रशासन ने कहा है कि “ शिकायतकर्ता द्वारा केवल अपना पता ही गलत नहीं दिया गया बल्कि अपना मोबाइल नंबर भी शिकायत में नहीं दिया गया। जिला प्रशासन द्वारा तमाम प्रयासों के बावजूद भी शिकायतकर्ता से संपर्क नहीं किया जा सका.”

“यहाँ तक कि इतने दिन बाद भी शिकायतकर्ता ने भी जिला प्रशासन से मामले की जांच को लेकर किसी प्रकार का संपर्क नहीं किया जिसके चलते शिकायत को फर्जी मानते हुए जिला प्रशासन द्वारा इसे फाइल कर दिया गया है.”

उल्लेखनीय है कि हरियाणा के तत्कालीन मुख्यसचिव की ओर से 1 फ़रवरी 2021 को जारी आदेश में प्रदेश के सभी विभागों के अतिरिक्त मुख्य सचिवों और विभाग प्रमुखों, सभी बोर्ड व निगमों, सभी जिला के जिला उपायुक्तों एवं सभी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार से किसी भी बेनामी या फर्जी नाम व पता वाली शिकायतों पर कोई भी कार्रवाई करने से साफ़ मना कर दिया है . उक्त आदेश में फर्जी शिकायतों में लगाए गए आरोपों की जांच तक करने से मना किया गया है. बावजूद इसके भाजपा नेत्री पर लगाये गए आरोप इस शहर में लगातार तैरते रहे और उनको इस अपराधबोध से नाहक ही झूझना पड़ा.

इस पूरे घटना क्रम में सवाल इस बात को लेकर उठ रहा है कि क्या सरकारी तन्त्र में ही कुछ भेड़िये छिपे हुए हैं जो कुछ नेताओं की छवि तो ख़राब करने का षड्यंत्र रचते ही हैं साथ ही सरकार और पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुँचाने की साजिश रच रहे हैं. ऐसा गुरुग्राम जिला प्रशासन की जांच से ही संकेत मिला रह है. अगर ऐसा है तो यह प्रदेश सरकार के लिए गंभीरता से गौर करने वाली बात है.

यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि फर्जी आरोप वाला यह पत्र सोशल मिडिया में पिछले 14 फ़रवरी से ही तैरता रहा. विना यह जाने कि यह शिकायतकर्ता सही है या नहीं इस खबर को प्रकाशित करते रहे और भाजपा नेताओं की छवि को दागदार बताते रहे और उनसे स्पष्टीकरण मांगते रहे. इस शहर में यह एकतरफा मिडिया ट्रायल लगातार चलता रहा. प्रशासन का बयान जारी होने के बाद इस पूरे प्रकरण में शामिल अलग अलग किरदार निभाने वाले आशंका के घेरे में हैं क्योंकि सभी विना कारण के चीर हरन करने की कोशिश में जुटे हुए थे.

दूसरी तरफ जिला प्रशासन की ओर से भी इसको लेकर सुस्ती और लापरवाही दिखी जिसने इस सवाल को भी जन्म दिया कि क्या प्रशासन के ही कुछ लोग इस फर्जी आरोप वाली शिकायत को जानबूझ कर हवा देते रहे ?  हालांकि मुख्य सचिव के 1 फ़रवरी 2021 को जारी आदेश में ऐसी शिकायतों के निपटारे के लिए 15 दिनों की अवधि निर्धारित की गई है. लेकिन यह तो तब जबकि उक्त पत्र में कोई मोबाइल या टेलीफोन नम्बर नहीं दिया हुआ हो. माकूल सवाल यह है कि जब सोशल मिडिया पर तैरने वाले उक्त पत्र में मोबाइल नम्बर था तो इसके असली और नकली होने की जांच में इतना समय क्यों लगा ? यह स्थिति  प्रशासनिक अमले के प्रति संदेह पैदा करता है.

दूसरा सवाल यह भी उठ रहा है कि फर्जी शिकायत पत्र कहीं प्रशासन के ही किसी अधिकारी या कर्मचारी ने तो लीक नहीं की ? इसका जवाब भी ढूँढा जाना चाहिए और इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए . इस सवाल पर भी सरकार को सख्ती दिखाने की जरूरत है क्योंकि इस षड्यंत्र से सरकार और पार्टी दोनों की छवि खराब करने की कुत्सित कोशिश की गई . इस फर्जी शिकायत से नगर निगम के अधिकारी के कामकाज को सवालों के घेरे में लाने के साथ साथ गुरुग्राम भाजपा जिला अध्यक्ष गार्गी कक्कर का नाम घसीट कर इस पूरे मामले को राजनीतिक रंग देने की भी सोची समझी रणनीति पर कम किया गया. सरकार और पार्टी को नीचा दिखाने के इस खेल में कितने लोगों ने भूमिका अदा की यह सरकार के लिए यक्ष प्रश्न है.

गौर करने वाली बात यह भी है कि जिला उपायुक्त के आदेश पर उक्त फर्जी पत्र के शिकायतकर्ता के नाम व पते के वेरिफिकेशन की प्रक्रिया चल रही थी न कि मामले की जांच. फिर भी इसे जांच का नाम क्यों दिया गया ? अधिकतर खबरों में यह ध्यान नहीं रखा गया कि इससे अधिकारी व नेता दोनों की मानहानि हो सकती है. तथ्यों को खंगाले विना मामले की जांच शुरू करने का दावा किया जाता रहा. अभी शिकायतकर्ता के असली या फर्जी होने की पुष्टि भी नहीं हुई और आरोप को सही मानते हुए अधिकारी व नेता दोनों को दोषी ठहरा दिया गया. शायद इस बात का ख़याल न तो जिला प्रशासन के अधिकारियों ने रखा और न ही खबर नवीशों ने. भयभीत करने वाली बात है कि हरियाणा में  फर्जी और बेनामी शिकायत करने की परम्परा वर्षों से चल रही है. ऐसी शिकायतों का हरियाणा में अम्बार लगने लगा था जिसके कारण मुख्य सचिव ने उक्त आदेश जारी कर इस विकृत संस्कृति पर रोक लगा दी है .

शिकायत कर्ता की खोज न तो मिडिया ने करने की जहमत उठाई और न ही प्रशासन ने इस मामले में त्वरित और संजीदगी भरा कदम उठाया जबकि प्रशासन को जांच के आदेश देने की बात कहकर उधृत किया जाता रहा. इस प्रकरण में कुल मिला कर ” खोदा पहाड़ और निकली चुहिया वाली ” कहावत चरितार्थ हो गई . लेकिन जिन लोगों पर आरोप लगाए गये उनकी मानहानि की भरपाई कैसे होगी यह बड़ा सवाल है ?

You cannot copy content of this page