मिथिला के मनीषी सुप्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर मुरारि मधुसूदन ठाकुर नहीं रहे

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गुरुग्राम, 22 फ़रवरी : बिहार के दरभंगा जिला स्थित गांव सिंहवाड़ा उत्तरी के निवासी 89 वर्षीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, चिंतक, साहित्यकार, सुप्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर मुरारि मधुसूदन ठाकुर का आज गुरुग्राम में देहावसान हो गया।

प्रो. ठाकुर पिछले कुछ वर्षों से अपने भतीजे जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर के साथ गुरुग्राम मे रह रहे थे।

इनका जन्म दरभंगा जिला के सिंहवाड़ा गांव के उच्च कुलीन मैथिल ब्राह्मण परिवार में 17 अक्टूबर 1932 को हुआ था।

ये अंग्रेज़ी साहित्य के प्रकांड विद्वान गोल्ड मेडलिस्ट एवं पटना विश्वविद्यालय में बेहद ख्याति प्राप्त प्राध्यापक भी रहे। वे कनाडा के मैक्मास्टर विश्वविद्यालय तथा नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में विज़िटिंग प्रोफेसर के रूप मे भी कार्यरत रहे। उन्होंने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों का अंग्रेज़ी, हिन्दी और मैथिली में रचना, अनुवाद तथा सम्पादन किया।

उनके अनुवाद कार्यों में तुलसीदास की ‘विनय पत्रिका’ तथा ‘हनुमान बाहुक’, फणीश्वर नाथ रेणु की ‘परती परिकथा’ के अंग्रेज़ी अनुवाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की चयनित कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद (साहित्य अकादमी प्रकाशित) और नयनतारा सहगल के उपन्यास ‘रिच लाइक अस’ का मैथिली अनुवाद ‘हमरे सभ सन मातबर’ और ताराशंकर वंद्योपाध्याय के ‘आरोग्य निकेतन’ का मैथिली रूपांतर विशेष उल्लेखनीय हैं।

उनकी अपनी रचनाओं में भीष्म पितामह के जीवनचरित पर आधारित पुस्तक ‘दस स्पेक भीष्म’ (मोतीलाल बनारसीदास) महत्वपूर्ण है।

प्रो. ठाकुर गंभीर अस्वस्थता के बावजूद अपने अंतिम समय तक सरस्वती साधना करते रहे और जीवन के अंतिम वर्ष में कुछ ही सप्ताह पूर्व उनकी अपनी आत्मकथा ‘माइसेल्फ़ सरप्राइज़्ड!’ तथा साहित्य अकादमी से निराला व नेपाली कवि देवकोटा का तुलनात्मक अध्ययन प्रकाशित हुए हैं।

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