हमारे पास 93000 युद्ध बंदी( POW ) थे अगर हम चाहते तो उनको छोड़ने के बदले में हम पीओके ले सकते थे
यह बहुत बड़ी भूल थी जिसे हम आज तक भुगत रहे हैं
चंडीगढ़, 16 दिसम्बर : हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने आज कहा कि 1971 की जंग में पकड़े गए सैनिकों के बदले में हम पीओके को ले सकते थे, लेकिन हमारे उस समय के नेताओं ने अच्छी प्रकार से शिमला समझौते पर ऐसी कोई पैरवी नही की।
विज ने ट्वीट करके कहा कि “1971 में युद्ध के मैदान में सैनिकों द्वारा जीती गई जंग राजनेताओं ने शिमला एग्रीमेंट में टेबल पर हारी । हमारे पास 93000 युद्ध बंदी( POW ) थे अगर हम चाहते तो उनको छोड़ने के बदले में हम पीओके ले सकते थे लेकिन हमने कोई बारगेन नहीं की । यह बहुत बड़ी भूल थी जिसे हम आज तक भुगत रहे हैं।”
उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी को सैन्य समर्थन देने का फैसला किया था, इस फैसले से पाकिस्तान इस कदर बौखला गया था कि उसने 3 दिसंबर 1971 को पश्चिमी मोर्चे (राजस्थान बार्डर) से भारत पर हमला बोल दिया। उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के इस हमलों का जवाब देने का फैसला किया और इसी के साथ भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध की शुरूआत हो गई।
भारत और पाकिस्तान के बीच महज 13 दिन चले इस युद्ध में पाकिस्तान अपने घुटनों पर आ गया और आज से ठीक 50 साल पहले यानी 16दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने बिना शर्त समर्पण किया था। इसी के साथ, 1947 में चलाई गई साजिश का अंत हुआ और बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का उदय हो गया।
गौरतलब है कि 16 दिसंबर 1971 की शाम करीब 4 बजाकर 31 मिनट पर पाकिस्तानी सेना के पूर्वी कमान के कमांड लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने आधिकारिक रूप से 93 हजार सैन्य कर्मियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। यह आत्मसमर्पण ढाका के रमणा रेसकोर्स पर हुआ था, जहां पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने सरेंडर के कागजातों पर हस्ताक्षर किए थे। माना जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी देश की सेना द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था।
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