पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा के विरोध में वनवासी कल्याण आश्रम हरियाणा ने राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा

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गुरुग्राम। 30 जून :  वनवासी कल्याण आश्रम हरियाणा की गुरुग्राम शाखा ने पश्चिम बंगाल में हाल में संपन्न चुनाव परिणाम के बाद की बर्बर, निंदनीय और लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली हिंसा का विरोध करते हुए आज बुधवार को जिला उपायुक्त यश गर्ग के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा।

वनवासी कल्याण आश्रम हरियाणा द्वारा भेजे गए ज्ञापन को आर्य समाज, भारत विकास परिषद् के अलावा और भी कई सामाजिक संस्थाओं का समर्थन प्राप्त हुआ। वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से आश्रम जिला महासचिव जगदीश कुकरेजा, प्रान्त उपाध्यक्ष महिंदर नरेश, आश्रम सदस्य अशोक पाल व महेश शर्मा उपस्थित रहे।

वनवासी कल्याण आश्रम के जिला महासचिव जगदीश कुकरेजा ने ज्ञापन में बताया गया कि चुनाव परिणाम के बाद पचासों लोग मारे गए, सैकड़ों लोग घायल हुए, हज़ारों लोगों को अपना घर परिवार छोड़कर पलायन करना पड़ा और करोड़ों की संपत्ति लूट ली गई या आगजनी में नष्ट हो गई। महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हुए, महिलाओं के साथ प्रताड़नाओं की 150 से भी अधिक घटनाएँ हुई, बच्चों और बूढ़ों को भी नहीं बख़्शा गया।

उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र के चुनावी इतिहास पर हमेशा के लिए यह काला धब्बा लग गया। इसका सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि इसका सर्वाधिक शिकार समाज के सबसे दुर्बल, निर्धन व शांतिप्रिय वर्ग – SC व ST समुदाय के लोग हुए जिन्हें भारतीय संविधान से सर्वाधिक संरक्षण प्राप्त है। राज्य में नागरिकों के मानवाधिकारों पर खुले हमले हुए। ऐसा छिटपुट कोई 1-2 स्थानों पर नहीं बल्कि राज्य के जिलों के 3700 से भी अधिक गाँवों में हुआ।

प्रान्त उपाध्यक्ष महिंदर नरेश ने कहा कि प॰ बंगाल राज्य सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने में पूरी तरह विफल रही हैं। वहाँ डराने-धमकाने, मारपीट का सिलसिला अभी तक रुका नहीं हैं। यह एकमात्र कारण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य सरकार को बर्खास्त करने के लिए पर्याप्त हैं। परंतु यह बहुत ही आश्चर्य व खेद का विषय हैं कि इस दिशा में अभी तक कोई विचार तक नहीं हुआ हैं।

उन्होंने कहा कि हम इन घटनाओं और इसमें राज्य सरकार की उदासीनता तथा परोक्ष-अपरोक्ष रूप से संलिप्तता की घोर निंदा करते हैं। दुख की इस घड़ी में हम बंगाल के सभी पीड़ित नागरिकों विशेषकर SC-ST समुदाय के लोगों के साथ खड़े हैं, पूरा देश उनके साथ खड़ा हैं।

कुकरेजा ने बताया कि ज्ञापन के माध्यम से देश के राष्ट्रपति और केंद्र सरकार के समक्ष ज्ञापन के माध्यम से 10 मांग रखी गई हैं:-

1. सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में विशेष जाँच दल (SIT) का गठन कर घटनाओं की जाँच हो और उसके ज़रिए आपराधिक न्यायिक प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाए।

2. इन घटनाओं से संबंधित आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों का गठन हो, ये विशेष न्यायालय बंगाल के बाहर बिहार एवं असम के सीमावर्ती ज़िलों में गठित किए जाएं।

3. शिकायतकर्ता, गंवाहों और उनके वकीलों को केंद्रीय सुरक्षा बलों की सुरक्षा प्रदान की जाए। यह सुरक्षा उनके घरों, आवागमन-प्रवास सभी जगह मिले।

4. हिंसा में जिनके मकान जला दिए गए या नष्ट हो गए उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना में विशेष अभियान चलाकर निश्चित समय सीमा में मकान दिए जाएं। जिनके घरों को क्षति पहुँचाई गई उन्हें केंद्र/राज्य सरकार द्वारा मरम्मत कराने हेतु क्षतिपूर्ति दी जाए। इसका आकलन करने हेतु राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और रामकृष्ण मिशन/ विवेकानंद केंद्र या किसी अन्य विश्वस्त-सक्षम-तटस्थ एजेंसी को अधिकृत किया जाए।

5. न्यायिक एवं रिलीफ़ प्रक्रिया पूरी होने तक इसकी निगरानी हेतु राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग/ उसके क्षेत्रीय कार्यालय और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग/उसके क्षेत्रीय कार्यालय का 1-1 कैंप कार्यालय बंगाल में बनाया जाए।

6. इन हिंसक घटनाओं में मारे गए SC-ST व्यक्तियों के परिवारों में से 1-1 सदस्य को केंद्र सरकार या उसके उपक्रमों की स्थाई नौकरी में लिया जाए। साथ ही उनके बच्चों को उच्च स्तर तक नि:शुल्क शिक्षा दी जाए व उनके माँ-बाप को, जब तक वे जीवित रहे तब तक न्यूनतम 15000/- रुपये मासिक पेंशन दी जाए।

7. इसी प्रकार हिंसा में घायल और स्थाई रूप से अपंग हुए व्यक्तियों को राज्य सरकार एकमुश्त समुचित क्षतिपूर्ति दें और केंद्र सरकार उन्हें न्यूनतम 10000/- रुपये मासिक पेंशन दें।

8. बंगाल के सुदूर इलाकों में हिंसा-डराने-धमकाने का क्रम अभी तक चल रहा हैं, इसमें हस्तक्षेप कर इसे तुरंत रोका जाए।

9. चुनाव परिणाम बाद कि इन हिंसक घटनाओं की निष्पक्ष जाँच हेतु सर्वोच्च न्यायालय के सेवारत या रिटायर्ड न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग बनाया जाए जिसमें DGP स्तर का एक ख्यातनाम- सक्षम पुलिस अधिकारी वह एक-एक व्यक्ति SC-ST-General समुदाय के प्रख्यात सामाजिक नेता भी लिया जाए जिन्हें समुचित प्रशासनिक अनुभव भी हो।

10. वैसे तो ये व्यापक हिंसक घटनाएँ राज्य में संवैधानिक शासन की विफलता के साफ प्रमाण हैं जिसके कारण संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य सरकार को बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का प्रावधान है।

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 356 (1) (A) एवं (C) के अधीन राज्य सरकार के अधिकारों में कटौती कर उन अधिकारों को केंद्र अपने हाथों में ले सकता हैं- यह प्रावधान भी हैं। विकल्प के रूप में इस पर भी विचार किया जा सकता हैं ताकि राज्य में संवैधानिक सर्वोच्चता और क़ानून व्यवस्था की स्थिति को बहाल किया जा सके। उन्होंने बल देते हुए कहा कि ऐसा करने से ही घटनाओं की निष्पक्ष जाँच संभव हो सकेगी और तभी पीड़ित लोगों को न्याय मिलना और अपराधियों को दंडित करना संभव हो सकेगा।

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