सुभाष चौधरी
नयी दिल्ली : प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मान की बात कार्यक्रम में एक ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र किया जो वास्तव में पद्म पुरस्कार के हक़दार कहे जा सकते हैं। देश में दो -चार – दस लोगों को खाने के पैकेट और कुछ कपड़े देकर समाज के मसीहा बनने का स्वाँग रचने वाले लोगों को तो खूब सराहा जाता है लेकिन लेकिन वास्तव में जनहित की दृष्टि से आने वाली पीढ़ियों के लिए अपना जीवन खपा देने वाले लोग गुमनामी का जीवन जीते रहते हैं । ऐसे व्यक्तियों की सुध न तो सरकार लेती है और न ही समाज लेता है ।
कौन हैं रामलोटन कुशवाहा ?
जो समाज के लिए वास्तविक हीरों हैं उनमें से ही एक मध्य प्रदेश के सतना जिले के उंचेहरा तहसील के ग्राम पिथौराबाद नई बस्ती में रहने वाले रामलोटन कुशवाहा हैं। रामलोटन कुशवाहा ने अपने खेत में एक देशी औषधीय म्यूज़ियम बनाया है। इस म्यूज़ियम में उन्होंने सैकड़ों औषधीय पौधों और बीजों का संग्रह किया है। इन्हें वो देश के अलग अलग राज्यों से दूर–सुदूर/पहाड़ी क्षेत्रों से यहाँ लेकर आए हैं । इसके अलावा वो हर साल कई तरह की भारतीय सब्जियाँ भी उगाते हैं। रामलोटन की इस बगिया, इस देशी म्यूज़ियम को बड़ी संख्या में लोग देखने भी आते हैं, और उससे बहुत कुछ सीखते भी हैं। उनका यह अनोखा प्रयोग लोगों के लिए अनुकरणीय है जिसे देश के अलग–अलग क्षेत्रों में भी दोहराया जा सकता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके इस काम को देश के अन्य लोगों से अपनाने का आह्वान किया है क्योंकि इससे आय के नए साधन भी खुल सकते हैं। दूसरी तरफ़ स्थानीय वनस्पतियों के माध्यम से उस क्षेत्र की पहचान भी बनेगी ।
लगभग 27 से 28 वर्षों में रामलोटन कुशवाहा ने अपनी अथक कोशिश के बाद लगभग 250 से भी अधिक ऐसी विलुप्त पौधे की प्रजातियों को संरक्षित करने में कामयाबी हासिल की है । उन्होंने आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों एवं औषधीय महत्त्व वाले पौधे का एक संग्रहालय तैयार किया है। उनके इस अनोखे हरे भरे संग्रहालय को देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।
रामलोटन कुशवाहा का मानना है अगर ये सभी औषधीय महत्व वाले पौधों की प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी तो हमारी आने वाली पीढ़ियां हमें गालियां देंगी। इसलिए उन्होंने जंगलों में घूम घूम कर अलग-अलग स्थानों से दुर्गम पहाड़ियों से इस प्रकार के पौधों की खोज की। दर्जनों दुर्लभ ऐसे कंद मूल भी खोज कर अपने बाग में ले आए और उसे विकसित करने की कोशिश की जिनके नाम वेदों और पौराणिक आयुर्वेदिक किताबों में हाई दर्ज रह गए हैं और जिनका उपयोग हमारे ऋषि मुनि और आयुर्वेदाचार्य करते थे ।
औषधीय पौधों को संरक्षित और संग्रह करने का जुनून :
देश और दुनिया के हित में औषधीय पौधों को संरक्षित और संग्रह करने का जुनून उस पर इस कदर चढ़ा रहा कि वे कई पौधों की खोज में हिमालय तक भी पहुंचे और वहां से मनुष्य को शारीरिक ताकत देने वाली पौधे ब्राह्मी भी खोज कर ले आए। हालांकि लोग उन्हें इस बात के लिए हतोत्साहित कर रहे थे कि ब्राह्मी जैसे पौधे तो हिमालय पहाड़ या उन्हीं क्षेत्रों में ही उगाए जा सकते हैं मैदानी इलाके में संभव नहीं है। लेकिन उन्होंने कहा की हम कुशवाहा समाज के लोग हैं और हमारी खानदानी परंपरा और संस्कृति ही हमें पौधों के विकास और संरक्षण का अनुभव देती है। हम ब्राह्मी जैसे पौधे को भी मध्य प्रदेश से क्षेत्र में तैयार करके दिखाएंगे और इसमें उन्हें कामयाबी मिली। कई लोगों ने उनसे कहा कि ब्राह्मी यहां तैयार नहीं हो सकता वह तो हिमालय की चीज है लेकिन उनके जज़्बे ने उन्हें कामयाबी दिलाई ।
पौधों से उनको इस कदर लगाव है कि सुबह से शाम तक अगर वह एक दो बार अपने इस हरे भरे संग्रहालय में आकर पौधों की गिनती ना कर ले या उसके हालात को न देख लें तब तक उन्हें चैन नहीं मिलती है।
यह जानकर किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि बेहद गरीब परिवार से आने वाले राम लोटन कुशवाहा के पास खेती की केवल एक बीघा जमीन है। यह जमीन भी कभी बाढ़ की चपेट में तो कभी सूखाग्रस्त होने से उनकी आजीविका के लिए बहुत सहायक नहीं थी। कभी अनाज उपज जाते हैं तो कभी नहीं। उनकी आजीविका अब केवल इसी औषधीय पौधे के संग्रहालय के सहारे चलती है। उनका जीवन इन्हीं में समर्पित है ।अब पौधे ही उनके परिवार हैं ।
सरकार व समाज से कोई सहायता नहीं :
सरकार और समाज से कोई सहायता लिए बिना खुद के बल पर औषधीय बाग तैयार करने वाले रामलोटन कुशवाहा से मिलने और उनकी बगिया को देखने तो सैकड़ों लोग आते हैं और उन्हें आर्थिक सहायता देने या दिलवाने का आश्वासन भी दिए जाते हैं लेकिन कभी किसी ने लौट कर उनकी सुधि नहीं ली।सैकड़ों सालों की औषधीय धरोहर को संजोने और फिर से विकसित कर देश के लिए उपलब्ध करवाने वाले इस सरल इंसान को उनके प्रयास में योगदान देने वाला आज तक कोई नहीं मिला ।
राजनीतिक हस्तियाँ और प्रशासनिक। अमल अक्सर बाबा रामदेव की सराहना करते तो थकते नहीं हैं लेकिन इस गरीब इंसान की अतुलनीय उपलब्धि को पहचानने में कितना लंबा वक्त लग गया इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अब उनकी इच्छा है कि इस औषधीय बाग या जंगल को उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से तैयार किया है उसकी मुकम्मल घेराबंदी हो जाए। तार की जाली से उसकी फेंसिंग हो जाए जिससे इसे सुरक्षित रखा जा सके। उनकी चिंता है कि आसपास के जानवर उनके इस बाग में प्रवेश कर बहुत सारे महत्वपूर्ण पौधों को खा जाते हैं। उन्हें नुकसान पहुंचा जाते हैं। यहां तक की जमीन के अंदर होने वाले कंदमूल जो कभी हमारे ऋषि-मुनियों के भोजन का अहम भाग होते थे को भी निकाल कर खा जाते हैं। इससे उस प्रजाति के नुकसान होने का भय इन्हें सताता रहता है।
दो दर्जन प्रकार के कंदमूल भी :
कुशवाहा बताते हैं कि उनके पास कम से कम 2 दर्जन प्रकार की प्रजातियों के कंदमूल लगे हुए हैं जिसे बाहर से जानवर आकर जमीन से खोदकर खा लेते हैं। इससे उनकी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाता है। इसलिए उन्हें इस बाग की फेंसिंग नहीं होने की चिंता रहती है।
वह कहते हैं कि अभी तो हमने पूरे देश का भ्रमण करके अपनी छोटी सी जमीन रूपी गागर में सागर भरने की कोशिश की है। इसे अगर सुरक्षा नहीं मिलेगी तो फिर यह बर्बाद हो जाएगा।।
उनके बाग में ऐसी औषधि भी है जिनके पत्ते को पीसकर लगाने से किसी भी प्रकार के चर्म रोग से छुटकारा मिल सकती है जबकि सुई धागा के नाम से भी अनोखा पौधा मौजूद है जिससे शरीर के किसी भी अंग में अगर तेज धार तलवार से भी घाव हो गए हो तो उसे 1 घंटे से भी कम समय में ठीक किए जा सकते हैं।
यहां उनके द्वारा लगाए पौधे के बारे में उनको किसी भी वनस्पति शास्त्र के ज्ञाता से भी अधिक ज्ञान है। उनका कहना है कि उक्त पौधे से ही पुराने जमाने में राजा महाराजा लड़ाई के दौरान तलवारों से घायल होने के बाद अपना इलाज तत्काल करते थे और फिर कुछ हाई समय बाद लड़ाई के मैदान में उतर जाते थे। इस प्रकार के पौधे आज विलुप्त हो चुके हैं और लोगों को इसकी उपयोगिता का ज्ञान भी कम ही रह गया है।
विलुप्त हो रही प्रजातियाँ ?
उनके बाग में एक देसी पालक के भी पौधे हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है जबकि हाथी पंजा नामक पौधे हैं जिनसे हाथी पांव रोग ग्रस्त व्यक्तियों को तत्काल राहत मिलती है। इसे पीसकर हाथी पाव ग्रस्त भाग पर देसी घी के साथ लगाने से वह ठीक हो जाता है।
अश्वगंधा जिसे आयुर्वेद में बेहद महत्वपूर्ण पौधा माना जाता है भी कुशवाहा के बाग में मौजूद है जबकि सफेद गुंची नामक पेड़ भी है जिनके उपयोग से खांसी दमा जैसे रोग भी रफूचक्कर हो जाते हैं।
कांवर का शह नामक छोटा पौधा अनार की जूस की ताकत प्रदान करता है। साथ ही प्राकृतिक अजवाइन के पौधे भी उन्होंने विकसित किए हैं जिनसे गैस की बीमारी से किसी को भी राहत मिल सकती है। बेहतरीन परफ्यूम तैयार करने वाले केवड़ा के पौधे भी उनके संग्रहालय में लगाए गए हैं। बेशकीमती सफेद पलाश के पौधे को देखकर किसी भी आयुर्वेदाचार्य का मन झूम सकता है जबकि मलेरिया जैसी बीमारियों को भी जड़ से समाप्त करने वाले पौधे उपलब्ध हैं।
यहां तक की सिंदूर जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है इसके भी पौधे उन्होंने विकसित किए हैं। उन्होंने दहीमन नामक एक पेड़ भी लगाया है जिनके पत्तों पर लकड़ी से भी लिखने पर स्याही से लिखा हुआ महसूस होता है। दहीमन का पौधा आयुर्वेद के अनुसार 10 प्रमुख रोगों को हरने वाला माना जाता है। इनके पत्तों पर लिखने पर कम से कम तीन रंगों में लिखावट दिखती है। उनकी चिंता यह है कि इस प्रकार के पौधे अब देश में देखने को नहीं मिल रहे हैं जिन्हें उन्होंने बमुश्किल खोज निकाला है।
उनके बाग में कम से कम एक दर्जन प्रकार की प्रजातियों के आम के पौधे भी हैं जबकि जल केशर नींबू भी हैं जिनमें लगने वाले फल कम से कम 5 से 6 किलो के होते हैं। यहां गंध प्रसारण के भी छोटे-छोटे पौधे हैं जो वात रोग के लिए बेहद उपयोगी माने जाते हैं।
उनके औषधीय बाग में अंबारी के पौधे हैं जिनके पत्तों की चटनी और रोटी खाकर आप स्वस्थ रह सकते हैं। 42 प्रजातियों के अमरुद भी इन्होंने लगा रखे हैं। लक्ष्मण कंद जो कम से कम 4 किलो के होते हैं जमीन के अंदर उगाए जाते हैं जिनका उपयोग कभी ऋषि मुनि कच्चे फल के रूप में करते थे जो स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक दोनों हैं।
उनके बाग में आपको सर्पगंधा, देसी हल्दी, देसी अदरक, पीला धतूर, शनी, गूगल, पपीते, मीठा एलोवेरा, समृद्ध कंद, चितवन, हल्दी और कैंसर की दवाई के रूप में उपयोग किए जाने वाले केयर कंद, तीखुर कंद, सिंदूर के पौधे, सतावर, पीली कंद और सतोय जैसे अनगिनत वेशक़ीमती औषधीय पौधे भी उपलब्ध हैं।
अगर आपको काली हल्दी, सफ़ेद मूसली और शक्कर पत्ती का स्वाद लेना है तो रामलोटन कुशवाहा के बाग का दर्शन करना होगा। क्या कभी आपने 6 से 7 फुट की लम्बाई का लौकी देखा है ? शायद नहीं, लेकिन आप उनके बाग में देख सकते हैं। सत फूटी लौकी से लेकर अजगर लौकी तक एक दर्जन प्रकार की लौकी उनके पास है। जैविक खेती को अपना आधार बना चुके कुशवाहा के पास गौमुख बैगन जैसे आश्चर्य करने वाले पौधे भी हैं।
केवल राजा महराजाओं के खाने में उपयोग किए जाने वाले राजमकोवा के पौधे , चंदन, आँधी , क़रोल, सिर दर्द ठीक करने वाले मचकूंद के फूल, अगरबत्ती बनाने वाले मेगा के पौधे, बगैन ,
ख़ास बात यह है की अपने बाग के इन पौधों की सुरक्षा के लिए वे प्राकृतिक कीटनाशक भी स्वयं तैयार करते हैं। उनका यह खेत पहाड़ से घिरा हुआ है जिसे जंगली जानवरों का भय बना रहता है। पानी की कमी रहती है लेकिन कम पानी के प्रयोग का इन्होंने स्वयं हो तरीक़ा ईजाद कर लिया है। पौधे में पानी डालने के बजाय पास में घड़े में पानी रख कर ज़मीन की नमी बनाए रखते हैं ।
ऐसे मेहनतकश व्यक्ति को अब तक मध्यप्रदेश सरकार से कोई मदद नहीं मिली है। सम्भव है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम उच्चारण के बाद इनकी क़िस्मत अब खुल जाए ।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह क्या बोले ?
प्रधानमंत्री के सम्बोधन से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की आँखें खुली और उन्होंने रामलोटन के देशी म्यूज़ियम के प्रयोग अद्भुत बताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने #MannKiBaat कार्यक्रम में इसकी सराहना की है, जिसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ।इस प्रयोग को प्रधानमंत्री जी ने पूरे देश में पहुँचा दिया है। इससे इसको अलग-अलग क्षेत्रों में दोहराया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा है कि इससे जैव विविधता बढ़ाने का काम भी आपने किया है। इस देशी म्यूज़ियम से लोगों की आय के नए साधन भी खुल सकते हैं और स्थानीय वनस्पतियों के माध्यम से उनके क्षेत्र की पहचान भी बढ़ेगी।हालाँकि उन्होंने इनके इस प्रयास को और व्यवस्थित करने के लिए किसी प्रकार के सरकारी प्रोत्साहन का कोई आश्वासन नहीं दिया।