सुभाष चौधरी
नई दिल्ली : मीडिया की खबरों के अनुसार केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के बीच राज्य के मुख्य सचिव अलप्प्न बंदोपाध्याय को लेकर तकरार बढ़ने के आसार हैं. खबर है कि केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशासनिक मंत्रालय की ओर से वरिष्ठ आईएएस अधिकारी बंदोपाध्याय को कारण बताओ नोटिस जारी किया जा रहा है. उन्हें यह नोटिस मंत्रालय की ओर से उनके तबादले संबंधी आदेश पर अमल नहीं करने के कारण जारी किया जा रहा है.
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चक्रवात प्रभावित इलाके का जायजा लेने के लिए उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए थे. पश्चिम बंगाल में तूफान प्रभावित क्षेत्र की स्थिति की समीक्षा करने के लिए प्रधानमंत्री की ओर से समीक्षा बैठक का आयोजन किया गया था. उक्त बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मुख्य सचिव अलपन बंधोपाध्याय लगभग आधे घंटे की देरी से पहुंचे थे. केंद्र सरकार ने मुख्य सचिव के इस व्यवहार को गंभीरता से लिया और उन्हें तत्काल प्रभाव से 31 मई तक केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशासनिक मंत्रालय में रिपोर्ट करने का आदेश जारी किया गया था. केंद्र सरकार ने केंद्रीय सर्विस आईएएस 1951 के नियम में प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए बंदोपाध्याय की सेवा केंद्र को सौंपने का आदेश जारी किया था.
उक्त आदेश पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हुए अमल करने से साफ इनकार कर दिया. इस प्रकार के संवैधानिक संकट की स्थिति भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में विरले ही देखने को मिलते हैं. अब जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी ने केंद्र के आदेश को मानने से इनकार कर दिया और मुख्य सचिव बंदोपाध्याय को रिलीव नहीं किया गया तब केंद्र सरकार के पास संबंधित अधिकारी के खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही करने के अलावा संभवतः कोई विकल्प नहीं बचता है. समझा जाता है कि केंद्र सरकार इस मसले को प्रशासनिक तरीके से निपटाने के मूड में है.
हालांकि इसमें प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे विशुद्ध रूप से राजनीतिक बदले की भावना से उठाया गया कदम बताया है लेकिन इस मामले में केंद्र की शक्तियां उन पर भारी पड़ेगी. किसी आईएएस अधिकारी को राज्य से केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर लेने का अधिकार केंद्र सरकार के पास निहित है क्योंकि आईएएस सर्विस केंद्रीय सेवा के रूप में उल्लेखित है. इस राजनीतिक रस्साकशी में प्रशासनिक तंत्र पर पड़ने वाला असर आने वाले समय के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. परंपरागत तरीके से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को मुख्य सचिव बंदोपाध्याय को केंद्र के लिए रिलीव कर देना चाहिए था लेकिन उन्होंने इसे अपनी राजनीतिक लड़ाई का हथियार बना लिया है. जबकि केंद्र सरकार भी इस मसले को लेकर अड़ी हुई दिखती है. नतीजा जो भी हो वह प्रशासनिक परंपराओं की दृष्टि से देश के हित में तो कतई नहीं होगा. मसले को अगर समझबूझ से हल किया जाए तो बेहतर होगा.
वैसे तो इस देश में पिछले 70 सालों में प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों में भी राजनीतिक गुटबाजी और राजनीतिक आकाओं के प्रति वफादारी प्रदर्शित करने का रोग बेहद विकृत रूप ले चुका है. सत्ता में आने वाली राजनीतिक पार्टियों के नेता अपने मनोनुकूल और विश्वसनीय अधिकारियों को मलाईदार पदों पर बैठाते रहे हैं. चाहे कोई भी राज्य हो या राजनीतिक दल इस संक्रमण से अछूता नहीं रहा है. कुछ ऐसे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी रहे हैं जिन्होंने राजनीतिक विश्वसनीयता सिद्ध करने के रोग से स्वयं को अलग रखा और प्रशासनिक सुधारीकरन की पुरजोर वकालत की. कई बार ऐसे वरिष्ठ पुलिस एवं आईएएस अधिकारियों ने सेवानिवृत्ति के बाद अपने अनुभवों के आधार पर देश की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा भी खटखटाया. इनमें आईपीएस अधिकारी प्रकास सिंह का नाम अग्रणी है. मामले में निर्णय भी आए, कमेटी भी बनी, सुधारीकरण के लिए रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को सौंपी गई लेकिन उस पर अमल आज भी या तो फाइलों तक सीमित है या फिर सांकेतिक रहा है. इस बीच सभी राजनितिक दलों की सरकारें केंद्र और राज्यों में सत्ता में आई. हमाम में सभी एक जैसे ही दिखे. सभी मंशा इस मसले को टालने की ही रही. अदालत के आदेश पर अमल में हिचकिचाहट राजनीतिक स्वार्थ के कारण बनी रही.
पश्चिम बंगाल में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अलपन बंधोपाध्याय का विवाद भी इन्हीं खामियों का नायाब उदाहरण है. अगर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति तबादले एवं प्रतिनियुक्ति के अधिकार को इंडिपेंडेंट कर दिया जाता तो शायद आज केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल राज सरकार के बीच में जो स्थिति उत्पन्न हुई है वह देखने को नहीं मिलती. ना तो केंद्र सरकार अपनी मनमानी कर पाती और ना ही राज्य सरकार संविधान प्रदत्त नियमों के तहत जारी आदेश का पालन करने से इनकार कर पाती.