नरेंद्र मोदी सरकार और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की रस्साकसी के बीच मुख्य सचिव बंदोपाध्याय दिल्ली तलब, पीएम की बैठक में जानबूझ कर देरी से पहुँचने का मामला

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नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच पिछले विधानसभा चुनाव में शुरू हुई रस्साकशी अब विकृत रूप लेती जा रही है. इसका असर राज्य के  नौकरशाहों पर भी पड़ने लगा है. केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अलप्प्न बंधोपाध्याय को केंद्र सरकार की सेवा में रिपोर्ट करने का आदेश जारी कर दिया है. समझा जाता है कि उनका यह तबादला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुक्रवार को हुए पश्चिम बंगाल के दौरे में उनकी अप्रत्याशित अनुपस्थिति एवं देरी से पहुँचने को लेकर किया गया है। उन्हें केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशासनिक विभाग में 31 मई 2021 तक सीधे रिपोर्ट करने को कहा गया है।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को पश्चिम बंगाल में यस चक्रवात से प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण करने पहुंचे थे. पहले से ही प्रदेश के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ स्थिति की समीक्षा करने के लिए बैठक भी निर्धारित की गई थी. लेकिन प्रधानमंत्री समय से पहुंचे और उन्हें समीक्षा बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एवं मुख्य सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अलप्प्न बंधोपाध्याय के पहुंचने का लगभग आधा घंटा इंतजार करना पड़ा।

मीडिया की खबरों के अनुसार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मुख्य सचिव बंधोपाध्याय जानबूझकर लगभग आधे घंटे की देरी से वहां पहुंचे. देश के प्रधानमंत्री के साथ यह अप्रत्याशित घटना थी। हालांकि ममता बनर्जी देरी से पहुंची और प्रधानमंत्री को अपना पत्र सौंप कर वहां से निकल गई. बैठक में प्रदेश के राज्यपाल जगदीप धनकर शामिल हुए।

इस अप्रत्याशित प्रशासनिक खामी को लेकर केंद्र सरकार बेहद गंभीर है. केंद्र सरकार की और से पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के ट्रांसफर का एक पत्र उन्हें भेजा गया है। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि नियुक्ति मामलों की कैबिनेट समिति ने 1987 कैडर के आईएएस अलप्प्न बंधोपाध्याय को तत्काल प्रभाव से भारत सरकार की सेवा में वापस लेने का फैसला किया है. साथ ही बंगाल सरकार से उन्हें तत्काल प्रभाव से रिलीज करने को कहा गया है।

इसको लेकर देश में राजनीति गरमा गई है. एक तरफ भारतीय जनता पार्टी इस घटना को देश के प्रधानमंत्री पद का अपमान बता रही है तो दूसरी तरफ टीएमसी मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए बुलाए जाने पर सवाल खड़े कर रही है। हालांकि देश के लोकतांत्रिक इतिहास में प्रधानमंत्री पद के साथ किसी राज्य के मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव की ओर से इस प्रकार के व्यवहार किए जाने की संभवतया यह पहली घटना है। अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार के इस आदेश पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री क्या निर्णय लेती है।

आमतौर पर प्रशासनिक प्रोटोकॉल के अनुसार प्रदेश का मुख्य सचिव मुख्यमंत्री के आदेश पर ही अमल करता है, लेकिन केंद्र सरकार के पास आई ए एस रूल 1954 के नियम 6 (एक) के तहत किसी भी आईएएस या आईपीएस अधिकारी को केंद्र सरकार की सेवा में राज्यों से वापस बुलाने का अधिकार है. आई ए एस व आई पी एस अधिकारी केंद्र सरकार की और से नियुक्त अधिकारी होते हैं जबकि इनके राज्यों के कैडर का आवंटन भी केंद्र से होता है. इनके कैडर बदलने के अधिकार केवल प्रधानमंत्री के पास निहित है. इस मामले में राज्य सरकारों के हाथ बंधे हुए हैं.

सीमित विकल्प होने के कारण इस मामले में भी उम्मीद जताई जा रही है कि ममता बनर्जी सरकार को अपने मुख्य सचिव अलप्प्न बंधोपाध्याय को पश्चिम बंगाल से दिल्ली के लिए रवाना करना ही होगा. इसी तरह का मामला एक बार और पश्चिम बंगाल में ही देखने को तब मिला था जब शारदा घोटाला सीबीआई जांच के मामले में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर आई पी एस राजीव कुमार से पूछताछ को लेकर विवाद पैदा हुआ था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उनसे सीबीआई ने पूछताछ की थी और राजीव कुमार 21 दिनों की छुट्टी पर चले गए थे. तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके समर्थन में धरने पर बैठ गई थी.

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