सुभाष चौधरी
नई दिल्ली : देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है जबकि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व इस दौरान लोगों को हुई असह्य तकलीफों से ख़राब हुई अपनी छवि को लेकर बेहद चिंतित है. अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना निर्धारित है. मिडिया में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि पार्टी की छवि को हुए नुकसान की भरपाई के लिए भाजपा नेतृत्व व संघ के बड़े पदाधिकारियों ने मंथन करना शुरू कर दिया है. इसको लेकर एक अहम बैठक का आयोजन किया गया जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और संघ के प्रतिनिधि भी शामिल थे. इसमें कुछ अहम निर्णय भी लिए गए.
आने वाला वर्ष 2022 भाजपा नेतृत्व के लिए राजनीतिक लिहाज से बेहद कठिन होने वाला है. इस वर्ष उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होना निर्धारित है. हालाँकि पिछले वर्ष 2020 में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना के पहले संक्रमण काल में आरम्भ की कुछ कठिनाइयों के बाद स्थिति को बिगड़ने से बचा लिया था लेकिन दूसरी वेव ने उनकी कार्यशैली और स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी को लेकर गंभीर सवाल खड़ा दिया है. जाहिर है देश के सबसे बड़े प्रदेश में कोरोना से बड़े पैमाने पर हुए आम जन को नुकसान ने योगी की छवि के साथ साथ भाजपा की छवि को धूमिल किया है. बात प्रदेश की राजधानी लखनऊ की हो या बनारस या फिर प्रयाग की पिछले एक माह में बिगड़ी स्थिति ने लोगों के मन में भाजपा का विकल्प ढूँढने का सवाल पैदा कर दिया है. कोरोना संक्रमण के भयावह रूप को झेलने वाली यूपी की जनता में योगी की कार्यशैली का विश्लेषण आम हो चुका है. स्वास्थ्य व्यवस्था में कमी के कारण हुई जनहानि ने उनके अब तक के प्रशासनिक असर को कमतर बना दिया है.
इस बात का भान भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को बखूबी है. पार्टी ने समय रहते जनता में पैदा हुए घाव को भरने की के तौर तरीके ढूढने शुरू कर दिए है. इसी कोशिश के तहत सरकार को नेतृत्व देने वाले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा, आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और यूपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल ने एक महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा लिया.
मिडिया में चल रही चर्चा के अनुसार इस बैठक में कोरोना की दूसरी वेव के कारण आम जन को हुए भारी नुकसान से उतपन्न राजनीतिक स्थिति पर गहन मंथन किया गया. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और संघ के बड़े लोग भाजपा की बिगड़ी छवि को लेकर चिंतित हैं. चाहे संगठन के माध्यम से हो या फिर सरकारी इंटेलिजेंस से उन्हें इस बात का पूरा अंदाजा हो चुका है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की जमीन खराब हो गई है. कोरोना संक्रमण के विकराल स्वरूप ने लोगों में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के प्रति अविश्वास का वातावरण बना दिया है. खबर है इस बैठक में इस स्थिति से निकलने के उपायों पर विस्तार से चर्चा हुई. इसलिए ही इसमें संघ और संगठन के लोगों को भी बुलाया गया था. अहम बात यह है कि इसमें प्रधानमंत्री स्वयं भी शामिल हुए.
कहा जा रहा है कि लम्बी चली बैठक में कुछ अहम निर्णय लिए गए. इसका असर आने वाले समय में पार्टी के संगठन और सरकार में भी देखने को मिल सकते हैं. संकेत है कि संघ की ओर से आरएसएस सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने बड़े फेरबदल का सुझाव दिया है. इसलिए ही उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री सुनील बंसल को बुलाया गया था. नेतृत्व की चिंता इस बात से और बढ़ गई है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी अब लोगों का सामना करने का साहस नहीं दिख रहा है. कार्यकर्ता भी कोरोना संक्रमण को मेनेज करने के मामले में सरकार की कमियों से निराश हैं. यहाँ तक कि पार्टी के कई विधायकों व सांसदों व केन्द्रीय मंत्रियों ने भी हालात बेकाबू होने और प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली को लेकर सरे आम नाराजगी जाहिर की है. ऑक्सीजन हो या आई सी यू बेड की कमी , एम्बुलेंस हो यह इंजेक्शन की ब्लेक्मार्केटिंग का मामला, अस्पताल में भर्ती करने की सिफारिश हो या फिर डाक्टरों की कमी का मामला सरकार की नाकामी को लेकर दर्जनों सवाल मुह बाए खड़े हैं. इसका संज्ञान संघ और केंद्र सरकार दोनों ने लिया है जिस पर चर्चा का दौर शुरू हो गया.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जनता के गुस्से को कम करने के लिए अक्सर वर्तमान नेताओं व विधायकों व सांसदों या मंत्रियों को बदलने का प्रधान मंत्री या भाजपा नेतृत्व का फार्मूला रहा है. संभव है इस बार के कठिन राजनीतिक दौर से बाहर निकलने के लिए बड़े पैमाने पर योगी सरकार में फेरबदल और भाजपा संगठन में भी बदलाव देखने को मिले सकते हैं. सवाल यह है कि यह फेरबदल कब और कैसे किया जाए इस पर अभी निर्णय लिया जाना बाकी है.
पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश बेहद अहम राज्य है. अगर 2022 विधानसभा चुनाव में पार्टी वापसी नहीं कर पाई तो आने वाले 2024 लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. किसी भी स्थिति में यहाँ की जमीन को भाजपा के लिए उपजाऊ बनाये रखना बड़ी चुनौती है. अभी हाल ही में विधायकों की नाराजगी के कारण उत्तराखंड में पार्टी को सीएम बदलने को मजबूर होना पड़ा. कयासों का बाजार गरम है कि कोरोना के बहाने यूपी में भी कहीं ऐसी ही कोशिश न देखने को मिले. लेकिन यहाँ योगी आदित्यनाथ को बदलने के प्रस्ताव को संघ मानने को तैयार नहीं होगा. इसलिए इस राज्य में कुछ और ही फार्मूले लागू किये जा सकते हैं जिसमें जनता के घाव को भरने के लिए एक के बदले कई नेताओं की बलि ली जा सकती है.