मेदांता अस्पताल के मालिक व अन्य के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराने के मामले में 182 का पर्चा दायर
भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का लगाया था आरोप , अदालत के आदेश पर हुई थी ऍफ़ आई आर दर्ज
पुलिस जाँच में निकला झूठ का पुलिंदा , अदालत ने पुलिस जाँच के आधार पर शिकायत रद्द करने का निर्णय सुनाया
अब होगी कार्रवाई, हो सकती है छह माह की जेल और आर्थिक दंड का भी है प्रावधान
सुभाष चौधरी
गुरुग्राम : गुरुग्राम में पिछले कुछ वर्षों से नामी गिरामी व्यावसायियों व उद्यमियों व बड़े अधिकारियों एवं सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्ट बताकर टार्गेट करने का धंधा जोरों से चल रहा है. व्यवस्था में बैठे अधिकारी ऐसे अनैतिक मंशा वाले लोगों की नाक में नकेल डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं. लेकिन लगता है अब इनके दिन लदने लगे हैं क्योंकि झूठे मुकदमे दर्ज कराकर पुलिस एवं न्यायालय का समय खराब करने वालों की अब खैर नहीं है। इसी तरह के एक मामले में गुरुग्राम पुलिस की ओर से एक तथाकथित आर टी ई एक्टिविस्ट रमन शर्मा के खिलाफ आईपीसी की धारा 182 के तहत सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करने के सम्बन्ध में एक चार्जशीट गुरुग्राम के अदालत में दायर की गई है. इस मामले में आरोपी को छह साल की सजा और आर्थिक दंड या दोनों भी भुगतना पड़ सकता है.
गुरुग्राम पुलिस के पीआरओ सुभाष बोकन ने बताया कि रमन शर्मा, पुत्र नरेंद्र नाथ शर्मा, निवासी मकान नंबर सी डब्ल्यू /58 ऍफ़ ऍफ़, मलिबु टाउन, गुरुग्राम ने गुरुग्राम में एडिशनल सेशन जज की अदालत में मेदांता अस्पताल के मालिक डॉक्टर नरेश त्रेहान एवं अन्य लोगों के खिलाफ एक शिकायत दायर कर धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कर जांच कराने की मांग की थी। उन्होंने बताया कि उनकी याचिका पर अदालत के आदेशानुसार मेदांता अस्पताल के मालिक डॉक्टर नरेश त्रेहान एवं अन्य के विरुद्ध धोखाधड़ी व भ्रष्टाचार करने के आरोप की जांच के लिए 6 जून 2020 को आईपीसी की धारा 406 463 467 468 471 120 बी और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 11 13 2 1312 के तहत थाना सदर गुरुग्राम में एक एफ आई आर संख्या 335 दर्ज की गई थी।
गुरुग्राम पुलिस का क्या कहना है ?
गुरुग्राम पुलिस के पीआरओ के अनुसार इस मामले की जांच पुलिस आयुक्त गुरुग्राम के आदेशानुसार करण गोयल एसीपी डीएलएफ गुरुग्राम के नेतृत्व में गठित एसआईटी ने की। जांच में पाया गया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप निराधार थे. पुलिस जांच में सभी तथ्य झूठे पाए गए। रमन शर्मा के द्वारा मेदांता अस्पताल के मालिक डॉक्टर नरेश त्रेहान और अन्य पर लगाए गए आरोप की पुष्टि नहीं हो पाई। इसलिए गत 21 अक्टूबर 2020 को जांच अधिकारी की ओर से मुकदमा रद्द करने की मांग करते हुए अदालत में अफराज रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। एडीशनल सेशन जज सुधीर परमार की अदालत ने पुलिस की ओर से दायर जांच रिपोर्ट गत 12 मार्च 2021 को स्वीकार कर ली।
गुरुग्राम पुलिस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अदालत ने अपने निर्णय में उल्लेख किया कि ” शिकायतकर्ता द्वारा दायर प्रोटेस्ट पिटिशन अस्पष्ट है इसलिए पुलिस की ओर से दायर मामला रद्द करने संबंधी रिपोर्ट को स्वीकृत करते हुए शिकायतकर्ता की याचिका को अयोग्य मानते हुए रद्द किया जाता है।” In light of the above said discussion this Court is of the firm and considered view that the instant protest petition filed by by the complainant is vague and the same stands dismissed being devoid of any merit and the cancellation report filed by the police is hereby accepted ” अदालत ने शिकायतकर्ता की याचिका को रद्द करने का निर्णय सुनाया।
इस संबंध में गुरुग्राम पुलिस ने संज्ञान लेते हुए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने संबंधी चार्जशीट उक्त शिकायतकर्ता तथाकथित आरटीआई एक्टिविस्ट रमन शर्मा के खिलाफ दायर करने का निर्णय लिया। थाना सदर गुरुग्राम पुलिस द्वारा इस मामले में 10 मई 2021 यानी सोमवार को आईपीसी की धारा 182 के तहत अदालत गुरुग्राम में चार्जशीट फाइल कर दी। उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की कार्रवाई पुलिस ऐसे मामले में करती है जहां सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का तथ्य सामने आता है और अनावश्यक एवं अनर्गल तरीके से एवं अनैतिक मानसिकता से किसी व्यक्ति को परेशान करने के लिए झूठा मुकदमा पुलिस थाने में या फिर अदालत में दर्ज कराता है। पुलिस मानती है कि इस मामले मे भी शिकायतकर्ता के कारण पुलिस और अदालत दोनों का समय जाया हुआ जो सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग है.
बात अगर गुरुग्राम की, की जाए तो यहां पिछले कई वर्षों से बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों एवं उद्यमियों व व्यवसायियों को टारगेट करने के लिए इस प्रकार की घटनाएं बेतहाशा बढ़ गई है। पहले आरटीआई डालते हैं, फिर उस आरटीआई के नाम पर संबंधित व्यक्ति या संस्था के प्रमुख को अनैतिक मानसिकता के तहत धमकाते हैं, और जब बात नहीं बनती है तब अदालत का रुख कर उनकी प्रतिष्ठा का भी हनन करने की कोशिश करते हैं।
गौरतलब है कि गुरुग्राम पुलिस की ओर से इस प्रकार के मामले में धारा 182 के तहत मुकदमा दायर करने का संभवतया यह अनोखा मामला है जो आने वाले समय में पुलिस व प्रशासन के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। अगर इसमें पुलिस की ओर से उठाये गये कदम सही साबित हुए तो इस मामले में शिकायतकर्ता तथाकथित आर टी आई एक्टिविस्ट को छह माह की सजा व आर्थिक दण्डं भी भुगतना पड़ सकता है.
क्या है प्रावधान ?
किसी व्यक्ति की ओर से झूठा मुकदमा दर्ज कराने पर धारा 182/ 211 भादंसं में इस्तगासा पेश करने का प्रावधान पहले से ही है। धारा 182 के तहत किसी ने झूठी गवाही दी हो तथा धारा 211 के तहत किसी ने गलत सूचना दर्ज कराई हो तो कार्रवाई होती है। इस्तगासा पेश होने के बाद ऐसे मामलों में न्यायालय में 6 माह की सजा का प्रावधान भी है।
पुलिस थानों में व्यक्ति कई बार झूठे मामले दर्ज करा देते हैं। इससे पुलिस का काम बढ़ जाता है। न्यायालय में भी सुनवाई के दौरान झूठे प्रकरणों में समय जाया होता है। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति या संस्था के प्रमुख की छवि खराब करने या अनैतिक वसूली के लिए झूठे प्रकरण दर्ज कराने की प्रवृत्ति पर रोक लग सकेगी।