नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के नाम अपने संदेश में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि संविधान की उद्देशिका में रेखांकित न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के जीवन-मूल्य हम सबके लिए पुनीत आदर्श हैं। यह उम्मीद की जाती है कि केवल शासन की ज़िम्मेदारी निभाने वाले लोग ही नहीं, बल्कि हम सभी सामान्य नागरिक भी इन आदर्शों का दृढ़ता व निष्ठापूर्वक पालन करें।
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रीय त्योहारों को, सभी देशवासी, राष्ट्र-प्रेम की भावना के साथ मनाते हैं। गणतन्त्र दिवस का राष्ट्रीय पर्व भी, हम पूरे उत्साह के साथ मनाते हुए, अपने राष्ट्रीय ध्वज तथा संविधान के प्रति सम्मान व आस्था व्यक्त करते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता हमारे जीवन-दर्शन के शाश्वत सिद्धांत हैं। इनका अनवरत प्रवाह, हमारी सभ्यता के आरंभ से ही, हम सबके जीवन को समृद्ध करता रहा है। हर नई पीढ़ी का यह दायित्व है कि समय के अनुरूप, इन मूल्यों की सार्थकता स्थापित करे।
उनका कहना था कि विपरीत प्राकृतिक परिस्थितियों, अनेक चुनौतियों और कोविड की आपदा के बावजूद हमारे किसान भाई-बहनों ने कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं आने दी। यह कृतज्ञ देश हमारे अन्नदाता किसानों के कल्याण के लिए पूर्णतया प्रतिबद्ध है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमारे सैनिकों की बहादुरी, देशप्रेम और बलिदान पर हम सभी देशवासियों को गर्व है। उन्होंने कहा कि सियाचिन व गलवान घाटी में, माइनस 50 से 60 डिग्री तापमान में, सब कुछ जमा देने वाली सर्दी से लेकर, जैसलमर में, 50 डिग्री सेन्टीग्रेड से ऊपर के तापमान में, झुलसा देने वाली गर्मी में – धरती, आकाश और विशाल तटीय क्षेत्रों में – हमारे सेनानी भारत की सुरक्षा का दायित्व हर पल निभाते हैं।
उन्होंने कहा कि अन्तरिक्ष से लेकर खेत-खलिहानों तक, शिक्षण संस्थानों से लेकर अस्पतालों तक, वैज्ञानिक समुदाय ने हमारे जीवन और कामकाज को बेहतर बनाया है।दिन-रात परिश्रम करते हुए कोरोना-वायरस को डी-कोड करके तथा बहुत कम समय में ही वैक्सीन को विकसित करके, हमारे वैज्ञानिकों ने पूरी मानवता के कल्याण हेतु एक नया इतिहास रचा है।
मानवीय मूल्यों की रक्षा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हम भारतवासी, मानवता के लिए जीते भी हैं और मरते भी हैं। इसी आदर्श को महान कवि मैथिली शरण गुप्त ने इन शब्दों में व्यक्त किया है:
उसी उदार की सदा, सजीव कीर्ति कूजती;
तथा उसी उदार को, समस्त सृष्टि पूजती।
अखण्ड आत्मभाव जो, असीम विश्व में भरे¸
वही मनुष्य है कि जो, मनुष्य के लिये मरे।
राष्ट्रपति ने कहा कि नए भारत के समावेशी समाज का निर्माण करने के लिए हम शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषाहार, वंचित वर्गों के उत्थान और महिलाओं के कल्याण पर विशेष बल दे रहे हैं। हर परिवार को बुनियादी सुविधाओं से युक्त पक्का मकान दिलाने से लेकर, किसानों की आय को दोगुना करने तक, ऐसे महत्वपूर्ण लक्ष्यों की तरफ बढ़ते हुए हम अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक पड़ाव तक पहुंचेंगे।
उन्होंने कहा कि पूरी गति से आगे बढ़ रहे हमारे आर्थिक सुधारों के पूरक के रूप में, नए क़ानून बनाकर, कृषि और श्रम के क्षेत्रों में ऐसे सुधार किए गए हैं, जो लम्बे समय से अपेक्षित थे। आरम्भ में, इन सुधारों के विषय में आशंकाएं उत्पन्न हो सकती हैं। परंतु,किसानों के हित के लिए सरकार पूरी तरह समर्पित है।
उन्होंने कहा कि 2020 में घोषित ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ में प्रौद्योगिकी के साथ-साथ परंपरा पर भी ज़ोर दिया गया है। इसके द्वारा एक ऐसे नए भारत की आधारशिला रखी गई है जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ज्ञान-केंद्र के रूप में उभरने की आकांक्षा रखता है। उनका कहना था कि आत्म-निर्भर भारत ने, कोरोना-वायरस से बचाव के लिए अपनी खुद की वैक्सीन भी बना ली है। अब विशाल पैमाने पर, टीकाकरण का जो अभियान चल रहा है वह इतिहास में अपनी तरह का सबसे बड़ा प्रकल्प होगा।
उन्होंने कहा कि मैं देशवासियों से आग्रह करता हूं कि आप सब, दिशा-निर्देशों के अनुरूप, अपने स्वास्थ्य के हित में इस वैक्सीन रूपी संजीवनी का लाभ अवश्य उठाएं और इसे जरूर लगवाएं। आपका स्वास्थ्य ही आपकी उन्नति के रास्ते खोलता है।
उन्होंने कहा कि हम अनेक देशों के लोगों की पीड़ा को कम करने और महामारी पर क़ाबू पाने के लिए, दवाएं तथा स्वास्थ्य-सेवा के अन्य उपकरण, विश्व के कोने-कोने में उपलब्ध कराते रहे हैं। अब हम वैक्सीन भी अन्य देशों को उपलब्ध करा रहे हैं। हालांकि हम शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर अटल हैं, फिर भी हमारी थल सेना, वायु सेना और नौसेना – हमारी सुरक्षा के विरुद्ध किसी भी दुस्साहस को विफल करने के लिए पूरी तैयारी के साथ तैनात हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्रत्येक परिस्थिति में, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए हम पूरी तरह सक्षम हैं। जिस असाधारण समर्थन के साथ, इस वर्ष, भारत ने अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा-परिषद में प्रवेश किया है वह, इस बढ़ते प्रभाव का सूचक है। विश्व-स्तर पर, राजनेताओं के साथ, हमारे सम्बन्धों की गहराई कई गुना बढ़ी है।
उन्होंने कहा कि यह हम सबके हित में है कि, हम अपने संविधान में निहित आदर्शों को, सूत्र-वाक्य की तरह, सदैव याद रखें। मैंने यह पहले भी कहा है, और मैं आज पुनः इस बात को दोहराऊंगा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और विचारों पर मनन करना, हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम सबको ‘संवैधानिक नैतिकता’ के उस पथ पर निरंतर चलते रहना है जिसका उल्लेख बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने 4 नवंबर, 1948 को, संविधान सभा के अपने भाषण में किया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ‘संवैधानिक नैतिकता’ का अर्थ है – संविधान में निहित मूल्यों को सर्वोपरि मानना।