नई दिल्ली। केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा ने सार्वजनिक क्षेत्र की उर्वरक कंपनियों के काम-काज और आगामी तैयारियों की समीक्षा के लिए कंपनियों के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशकों के साथ बैठक की।
बैठक में श्री राउल, के अलावा नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक वीरेन्द्र नाथ दत्त, राष्ट्रीय रसायन एवं उर्वरक लिमिटेड के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक एस.सी मुदगिकर, फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स त्रावणकोर के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक किशोर रूंगटा, मद्रास फर्टिलाइजर्स लिमिटेड के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक यू सरवनन, ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक ए.के. घोष तथा एफसीआई अरावली जिप्सम एंड मिनरल्स इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक अमर सिंह राठौर ने भी हिस्सा लिया।
केन्द्रीय मंत्री ने इस अवसर पर कोविड लॉकडाउन के दौरान विभिन्न बाधाओं का सामना करने के बावजूद, अपनी विनिर्माण इकाइयां बेहतर तरीके से संचालित करते हुए देशभर में यूरिया और अन्य उर्वरकों का वितरण सुनिश्चित कर किसानों को उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए सरकारी उर्वरक कंपनियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि घरेलू कंपनियों के प्रयासों और उर्वरक विभाग के अधिकारियों की सक्रियता के कारण, देश में यूरिया की तब भी कोई कमी नहीं हुई जब अपेक्षित वर्षा के कारण यूरिया की मांग और खरीफ के मौसम में खेती के क्षेत्र में पर्याप्त वृद्धि हुई।
उन्होंने उर्वरक कंपनियों के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशकों को आगामी रबी सीजन के लिए सभी तैयारियां पूरी करने और किसानों के लिए समय पर पर्याप्त मात्रा में उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कहा। उन्होंने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की भविष्य की सोच के अनुरूप उर्वरकों की बिक्री तथा सब्सिडी में किसी भी तरह की अनियमितताओं को रोकने के लिए कैशलेस लेनदेन को प्रोत्साहित करने हेतु अध्यक्ष और प्रबंध निदेशकों को एक सक्षम रणनीति बनाने का निर्देश दिया।
श्री गौड़ा ने उर्वरक क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य में इन कंपनियों को भारत सरकार से मिलने वाली बजटीय सहायता पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि सरकारी कंपनियां भविष्य में अपना अस्तित्व बनाए रखना चाहती हैं और निजी क्षेत्र की कंपनियों और आयातित उर्वरकों के साथ प्रतिस्पर्धा में टिके रहना चाहती हैं तो उन्हें अपने उत्पाद में विविधता लाना तथा नैनो-उर्वरक और आवश्यकता के अनुरूप उर्वरक बनाना, प्रौद्योगिकी उन्नयन और यदि आवश्यक हो तो मौजूदा संयंत्रों के पुनरुद्धार के माध्यम से नए उत्पादों का विकास करना होगा। यह समय की सबसे बड़ी जरूरत है।
श्री गौड़ा ने कहा कि उर्वरक कंपनियों को पर्यावरण संबंधी चिंताओं के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए क्योंकि भविष्य में पर्यावरण संबंधी कोई भी नीति उनकी व्यवहार्यता को बाधित कर सकती है।
उर्वरक विभाग के सचिव श्री छबीलेंद्र राउल ने कहा कि उर्वरक कंपनियों को भी अपनी आपदा प्रबंधन योजना को मजबूत करने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए।
बैठक में उर्वरक कंपनियों के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशकों ने चालू वित्त वर्ष में अपने सार्वजनिक उपक्रमों के प्रदर्शन के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी और उनकी व्यवहार्यता को बनाए रखने के लिए उनमें तकनीकी उन्नयन के लिए किए गए निवेश और उनके संयंत्रों को पुनर्जीवित करने के प्रयासों पर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कंपनियों को मजबूत करने के लिए अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी।