नई दिल्ली : सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीडीआरआई), लखनऊ ने एक आभासी कार्यक्रम में दवाओं की खोज एवं विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए युवा शोधकर्ताओं को सीडीआरआई पुरस्कार से सम्मानित किया। डॉ. बुशरा अतीक, डॉ. सुरजीत घोष और डॉ. रवि मंजीथ्या को प्रतिष्ठित सीडीआरआई पुरस्कार- 2020 मिला। इन वैज्ञानिकों ने कैंसर की गांठ को खोलने में उत्कृष्ट योगदान दिया है। सीडीआरआई के निदेशक प्रोफेसर तापस कुंडू तथा पूर्व निदेशक डॉ. वी. पी. कंबोज ने पुरस्कार विजताओं को बधाई दी।
देश में वैज्ञानिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और औषधि अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने के लिए सीडीआरआई पुरस्कार की स्थापना 2004 में की गई थी। ये प्रतिष्ठित पुरस्कार 45 वर्ष से कम आयु के उन भारतीय नागरिकों को दिये जाते हैं, जिन्होंने औषधि अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में सीधा असर डालने वाला उत्कृष्ट शोध कार्य किया है। रासायनिक विज्ञान एवं जैविक विज्ञान के क्षेत्र में दो अलग-अलग पुरस्कार हैं। प्रत्येक पुरस्कार में 20,000 रूपए नकद और एक प्रशस्ति पत्र दिये जाते है।
आमतौर पर इन पुरस्कार विजेताओं को संस्थानों / संगठन / विश्वविद्यालयों / उद्योगों के प्रमुख, भटनागर पुरस्कार विजेता, राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों के अध्येताओं द्वारा नामित किया जाता है।प्रख्यात वैज्ञानिकों की एक समिति नामांकनों / आवेदनों की जांच करती है और सीडीआरआई पुरस्कारविजेताओं का चयन करती है।
वर्ष 2004 से लेकर अबतक, कुल 34 वैज्ञानिकों (रासायनिक विज्ञान में 17 और जैविक विज्ञान में 17 उत्कृष्ट वैज्ञानिक) को भारत में दवा की खोज एवं विकास अनुसंधान में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुका है। इन 34 सीडीआरआई पुरस्कार विजेताओं में से डॉ. शांतनु चौधरी, डॉ.सथीस सी राघवन, डॉ. बालासुब्रमण्यम गोपाल, डॉ. सुवेंद्र नाथ भट्टाचार्य, डॉ. डी. श्रीनिवास रेड्डी, डॉ. सौविक मैती, डॉ. गोविंदसामी मुगेश, डॉ. गंगाधर जे संजयन, प्रो. संदीप वर्मा, प्रो. संतनु भट्टाचार्य, प्रो. उदय मैत्र को प्रतिष्ठित शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, जिसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय नोबेल पुरस्कार माना जाता है, भी मिला है। सीडीआरआई पुरस्कार विजेताओं में से एक डॉ. बुशरा अतीक को चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इस साल का शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार भी मिला है।
प्रोस्टेट कैंसर के नए चिकित्सीय उपायों की खोज नेडॉ. बुशरा अतीक को सीडीआरआई अवार्ड – 2020 दिलाया
जैविक विज्ञान के क्षेत्र में सीडीआरआई पुरस्कार – 2020 की विजेता,डॉ. बुशरा अतीक वर्तमान में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर के जैविक विज्ञान एवं बायो इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर हैं और वेलकम ट्रस्ट / डीबीटी इंडिया एलायंस के एक वरिष्ठ फेलो के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने पुरस्कार प्राप्त करने के दौरान अपने उल्लेखनीय योगदान को साझा किया, जिसका शीर्षक था “मैकेनिस्टिक इनसाइट्स इन्टू एटियोलॉजी ऑफ़ एग्रेसिव एसपीआईएनके1-पॉजिटिव प्रोस्टेट कैंसर: ए क्वेस्ट फॉर न्यू थ्रेप्टीक एवेन्यूज”। उन्होंने एसपीआईएनके1 [(एक अग्नाशयी स्रावी ट्रिप्सिन इनहिबिटर (पीएसटीआई)] में शामिल अंतर्निहित आण्विक तंत्रकी खोज की, जिसे सेरीन प्रोटीज इनहिबिटर कज़ल-टाइप 1 के रूप में भी जाना जाता है। सामूहिक रूप से, उनके निष्कर्ष एंड्रोजेन डिप्रेशन थेरेपी (एडीटी) के बाद विरोधाभासी नैदानिक परिणामों, संभवतः एसपीआईएनके1 अपचयन के कारण, के लिए एक स्पष्टीकरण प्रदान करते हैं और प्रोस्टेट कैंसर के उपचार की रणनीति के रूप में सीके1 इनहिबिशन का रास्ता देते हैं।
कैंसर -प्रतिरोधक दवा के लिए न्यूक्लियर लोकलाइजिंग सेल पेनेट्रेटिंग पेप्टाइड (सीपीपी) की खोज में डॉ. सुरजीत घोष के योगदान ने सीडीआरआई पुरस्कार – 2020 के लिए उनका मार्ग प्रशस्त किया
डॉ. घोष को कारगर सेल पेनेट्रेटिंग पेप्टाइड्स (सीपीपी), जिसका दवा के क्षेत्र में जबरदस्त प्रभाव है, के विकास के लिए जैविक विज्ञान में सीडीआरआई पुरस्कार 2020 मिला है। डॉ. घोष वर्तमान में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, जोधपुर में बायोसाइंस एवं बायोइंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उनका व्यापक शोध कार्य सेल पेनेट्रीशान में दो एमिनो एसिड, आर्जिनिन एवं ट्रिप्टोफैन, के महत्व पर प्रकाश डालता है। उनके अध्ययन से अगली पीढ़ी की सेल पेनेट्रेटिंग पेप्टाइड्स (सीपीपी) और प्रमुख ग्रूव विशिष्ट कैंसर प्रतिरोधी दवाओं के विकास की दिशा में नए रास्ते खुल गए हैं।
डॉ. रवि मंजीथ्या की रासायनिक अनुवांशिकता पर आधारित आटोफैगी-मॉड्यूलेटिंग छोटे अणुओं की पहचान पर उत्कृष्ट कार्य, जोकि यांत्रिक अंतर्दृष्टि और चिकित्सीय क्षमता प्रदान करता है, ने सीडीआरआई पुरस्कार 2020 के लिए उनका मार्ग प्रशस्त किया
डॉ. रवि मंजीथ्या को रासायनिक विज्ञान में सीडीआरआई पुरस्कार 2020 मिला है। वो वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, बैंगलोर में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। पुरस्कार प्राप्त करने के समय अपने संबोधन में उन्होंने ऑटोफैगी के बारे में बताया, जोकि एक सेलुलर अपशिष्ट रीसाइक्लिंग प्रक्रिया है और ऑर्गेनेल, सेलुलर एवं ऑर्गैनीज़्मल होमोस्टैसिस को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। निष्क्रिय ऑटोफैगी के कारण स्नायुशोथ, इंट्रासेल्युलर संक्रमण, और कैंसर सहित कई किस्म की बीमारियां होती हैं। उन्होंने कई आटोफैगी-मॉड्यूलेटिंग छोटे अणुओं की पहचान और विशेषता बतायी है। उन्होंने इस बात की भी चर्चा की कि कैसे पार्किंसंस के सेलुलर एवं प्रीक्लिनिकल माउस मॉडल का उपयोग करते हुए, इनमें से कुछ अणुओं में चिकित्सीय क्षमता हो सकती है। इस प्रकार बुनियादी कोशिकीय सिद्धांतों पर प्रकाश डालते हुए रासायनिक आनुवांशिकी दृष्टिकोण उन रोगों के संभावित चिकित्सीय उपायों को भी प्रकट करता है, जिनका वर्तमान में कोई इलाज नहीं है।