श्रमिकों ने कृषि बिल का किया विरोध, मंडी व्यबस्था ध्वस्त करने की आशंका जताई
गुरुग्राम। शुक्रवार को ट्रेड यूनियन कॉउंसिल ने एआईयूटीयूसी के प्रधान श्रवण कुमार की अध्यक्षता में किसानों की माँगो के समर्थन में शहर में जोरदार प्रदर्शन किया। पैदल मार्च व जुलुश की शक्ल में यूनियन नेताओं व श्रमिकों ने सिविल अस्पताल से सदर बाज़ार होते हुए कमला नहेरू पार्क के सामने से गुज़रते हुए अग्रवाल धर्मशाला तक नारेबाजी की और केंद्र सरकार द्वारा संसद के दोनों सदनों से पारित 3 कृषि बिलों पर रोक लगाने की मांग की। केंद्र सरकार की कथित किसान विरोधी पैदल मार्च में आशा वर्कर्स यूनियन और अखिल भारतीय जनवादी महिला संघर्ष समिति के दर्जनों सदस्य भी शामिल हुए।
इस अवसर पर एटक से अनिल पंवार ने बताया कि टीयूसी ने देश के राष्ट्रपति से माँग की है कि किसानों के खिलाफ़ पास किये क़ानूनों पर हस्ताक्षर नहीं करें। इसे संसद के विचारार्थ वापस भेज दें क्योंकि ये बिल किसानों के हित में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इन बिलों को तैयार करने मैं संबंधित सभी पक्षों से केंद्र सरकार ने बातचीत नहीं की यहां तक की किसानों से भी इस मामले में सुझाव नहीं लिए गए और ना ही किसान संगठनों के मंत्रियों पर ध्यान दिया गया । उनका कहना था कि सरकार किसान संगठनों के साथ बैठकर अध्यादेश तैयार करे।
वरिष्ठ श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने कहा कि श्रम सुधार के नाम पर मजदूर विरोधी बिलों को निरस्त करने की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा आज पूरे देश के किसान इस बात को लेकर आशंकित हैं कि आने वाले समय में केंद्र सरकार अप्रत्यक्ष तौर पर मंडी व्यवस्था को ध्वस्त करने की कोशिश करेगी दूसरी तरफ एमएसपी को लेकर भी उनकी आशंकाएं हैं। उन्होंने बल देते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार की मनसा किसानों के हित में है और मंडी व्यवस्था को बरकरार रखना चाहती है तो फिर में इन्हीं बिलों में निजी व्यवसायियों द्वारा फसलों की खरीद के मामले में भी एमएससी का बेंच मार्क नितांत आवश्यक करने का प्रावधान भी शामिल करना चाहिए था। मौखिक आश्वासन कभी भी सरकार की नीतियां नहीं होती उसमें किसी भी वक्त संबंधित मंत्रालय या अधिकारी बदलाव कर सकते हैं।
श्री जांगू ने कहा कि अब अगर यह कानून देश में लागू हो गए तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की आड़ में किसानों की जमीन बड़े व्यवसायियों के हाथों में चली जाएगी और किसान दयनीय अवस्था में होंगे। किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दावा ठोकने वाली सरकार यह समझने को तैयार नहीं है कि कोई भी व्यवसाय आखिर सरकारी रेट से अधिक कीमत पर फसल क्यों खरीदेंगे । उन्हें तो हमेशा अपने लाभ की चिंता रहेगी किसानों के हित की चिंता वह क्यों करेंगे। उन्होंने इस बात की आशंका जताई कि जिस तरह जमीन अधिग्रहण कानून बनाकर किसानों को उद्योग धंधों के नाम पर बड़े व्यवसायियों को जमीन कम कीमत में मुहैया कराने के लिए निहत्था किया गया उसी तरह अब खेती से भी किसानों को अलग करने की साजिश रची गई।
यूनियन नेता का कहना है कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत और बदतर होगी रोजगार के साधन बुरी तरह प्रभावित होंगी और किसान और अधिक संख्या में आत्महत्या करने को मजबूर होंगे। उन्होंने मांग की कि कृषि संबंधित तीनों ही बिलो पर राष्ट्रपति को गंभीरता से विचार करना चाहिए और किसान हित में इसे दोबारा संसद को विचार करने के लिए वापस भेजने का ऐतिहासिक निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने सवाल खड़ा किया जब 18 पार्टियां इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की मांग कर रही थी तो सरकार को आखिर इसमें इतनी जल्दी क्यों थी।
प्रदर्शन में मंच का संचालन आशा वर्कर की प्रधान उषा सरोहा ने की तस्थ प्रदर्शन करने वालों में मीरा, रानी, पूनम, बेलसोनिका यूनियन से अतुल कुमार, अजित सिंह, जसबीर सिंह, महेंद्र, मुकेश, राजेश, अरविंद, एआईयूटीयूसी से श्रवण कुमार, वजीर सिंह, बलवान सिंह आदि सैंकड़ो की संख्या में कर्मचारी मौजूद थे।