गुरुग्राम व रेवाड़ी की सभी मजदूर युनियनों ने ईएसआई निदेशक को ज्ञापन सौंपा, पूरे वर्ष की पूरी सेलरी देने की मांग की

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गुरुग्राम। गुरुग्राम और रेवाड़ी की सभी मजदूर यूनियनों ने संयुक्त रूप से आज निदेशक एस आई गुरुग्राम को ज्ञापन सौंपकर नौकरी से बाहर किए गए सभी श्रमिकों को पूरे 1 साल का वेतन देने की मांग की। श्रमिक नेताओं ने ज्ञापन में केंद्र सरकार की ओर से घोषित 3 महीने की 50% राशि देने को अपर्याप्त बताया। वित्तीय वर्ष 2020-21 की पूरी सैलरी ईएसआई फंड से जारी करने और बेरोजगार श्रमिकों को नौकरी वापस दिलाने पर बल दिया ।

श्रमिक नेता कुलदीप जांघू ने बताया की गुरुग्राम एवं रेवाड़ी की सभी मजदूर यूनियनों ने आज ईएसआई निदेशक को सौपे ज्ञापन में कोरोना के चलते बेरोजगार हुए हजारों श्रमिकों की आजीविका की समस्या को लेकर विभाग का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि मजदूर संगठन यह मानता है कि कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम कीजिए देश में हुए लॉकडाउन और उससे उत्पन्न स्थिति के कारण लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए। लॉकडाउन समाप्त होने के बावजूद बड़ी संख्या में मजदूर फैक्ट्रियों से एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से नौकरी से निकाल दिए गए। उनके सामने आजीविका की गंभीर समस्या आ खड़ी हुई है।

उन्होंने कहा कि इससे पूर्व भी कई बार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की विभिन्न एजेंसियों के समक्ष मजदूर यूनियनों की ओर से ज्ञापन के माध्यम से श्रमिकों के मामले को उठाया गया। लेकिन सरकार की ओर से इस गंभीर विषय पर कोई भी संवेदनशील रुख अख्तियार नहीं किया जाना चिंता पैदा करने वाला है।

ज्ञापन में ईएसआई से उन सभी बेरोजगार हुए मजदूरों को पूरे वित्तीय वर्ष 2020-21 यानी अप्रैल 2020 से लेकर मार्च 2021 तक की अवधि की पूरी सैलरी देने की मांग की गई। ज्ञापन में कहा गया है कि पूर्णा महामारी के चलते श्रमिकों की नौकरी संकट में आने पर देश की तमाम मजदूर संगठनों सहित मारुति सुजुकी मजदूर संघ ने भी कई बार सरकार से सभी बेरोजगार हुए मजदूरों की नौकरी वापस कराने वह पूरी सैलरी देने का मुद्दा उठाया। यूनियन नेताओं ने दावा किया कि मजदूरों की समस्याओं को लेकर अब तक सैकड़ों ज्ञापन दिए गए लेकिन सरकार की तरफ से कोई राहत नहीं मिल रही है।

ज्ञापन में यह भी कहा गया कि इस संकट की घड़ी में एएसआई के अधिकारियों से भी बैठक में की गई और यह साई के फंड से सैलरी देकर राहत पहुंचाने का काम करने पर बल दिया गया। उनका तर्क है कि यह साईं के पास मजदूरों के खून पसीने की कमाई करोड़ों रुपए जमा है। उस फंड में से ही कुछ हिस्सा इस विषम परिस्थिति में जीवित रहने के लिए मजदूरों को दिया जाना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार के फंड आकस्मिक परिस्थितियों के लिए ही जमा कराए जाते हैं। आज हालात यह है कि हजारों मजदूरों की चूल्हे बुझे हुए हैं उनके सामने अपने परिवार व बच्चों का पालन पोषण करने की विधि समस्या आ गई है। सभी मजदूर अपने बच्चों के स्कूल की फीस नहीं दे पाने के कारण सभी घर बैठे हैं। बच्चों को स्कूल से ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा से भी फीस नहीं देने के कारण स्कूल प्रबंधन वंचित कर रहा है।

दूसरी तरफ केंद्र सरकार और राज्य सरकार को यह भी समझना चाहिए कि देश की आर्थिक स्थिति में अगर सुधार लाना है तो सबसे पहले मजदूरों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने की जरूरत है। उनकी क्रय शक्ति पूरी तरह चीन हो चुकी है यहां तक की खाद्य वस्तुओं की खरीदारी भी अब उनके लिए मुश्किल है। ऐसे में बाजार की हालत भी बदतर है क्योंकि दुकानदारों के व्यवसाय पूरी तरह ठप हो चुके हैं। इसलिए मजदूरों की हालत का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। यूनियन नेताओं की शिकायत है कि केंद्र और राज्य सरकार इसको लेकर बहुत गंभीर नहीं दिख रही। ज्ञापन में कहां है कि अगर अर्थव्यवस्था को ऑक्सीजन देना है तो पहले मजदूरों की बेरोजगारी दूर करनी होगी और उन्हें आर्थिक राहत पहुंचाने होंगे।

यूनियन नेताओं ने ज्ञापन में स्पष्ट तौर पर बेरोजगार हुए श्रमिकों को नौकरी दिलवाने की मांग की। उन्होंने कहा है कि हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से ऐसे मजदूरों के लिए 3 माह की 50% सैलरी देने की घोषणा की गई है जो किसी भी दृष्टि से तार्किक नहीं लगता बल्कि यह ऊंट के मुंह में जीरा का फोन जैसी स्थिति है। इससे मजदूरों को राहत नहीं मिलेगी। सरकार को वर्तमान वित्तीय वर्ष की पूरी सैलरी ईएसआई के माध्यम से देने की मांग की गई।

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