गुरुग्राम : देश भर की आस्था के प्रतीक श्री कृष्ण जन्माष्टमी महापर्व मनाए जाने की तिथियों को स्पष्ट करते हुए आचार्य पुरोहित संघ के अध्यक्ष एवं श्री माता शीतला देवी श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर व्रत रखने और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करने का शुभ मुहूर्त 12 अगस्त को ही है।
उन्होंने कहा कि पंचांग के अनुसार इस वर्ष 11 अगस्त को भी अष्टमी पड़ रही है लेकिन वह सूर्योदय के समय नहीं है। हमारे शास्त्र संगत तिथि को उदया तिथि में ही अच्छा मानते हैं। उदया तिथि में 12 अगस्त को अष्टमी पड़ने के कारण सभी गुरुग्राम में मंदिरों पर इस पर्व को 12 अगस्त को ही मना रहे हैं।
वेदज्ञ पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि किसी भी व्रत को करने का विधान उदया तिथि से संबंधित होता है। ऐसे में 12 अगस्त को ही जन्माष्टमी मनाना प्रबुद्ध वर्ग में पूर्ण फलदाई माना जा रहा है। पंचांग के अनुसार 12 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत धारण करने के फलस्वरूप सुख-समृद्धि की प्राप्ति के योग हैं।
पंडित अमर चंद ने कहा कि विद्वत समाज के साथ चिंतन और मंथन करने के बाद 12 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व मनाना आध्यात्मिक माना गया है। सनातन धर्म सभा गुरुग्राम से जुड़े सभी मंदिरों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त को ही मनाया जाएगा।
पंडित भारद्वाज ने नागरिकों को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए शुभ मुहूर्त में जन्माष्टमी पर्व मनाने का आह्वान किया है। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा वृंदावन में भी यह जन्माष्टमी का पर्व 12 अगस्त को ही मनाया जा रहा है। कोरोना जैसी महामारी के कारण मंदिरों के मुख्य प्रवेश द्वार नहीं खुलेंगे।
उनका कहना है कि केवल मंदिरों में मंदिर के पुजारी द्वारा भगवान की पूजा अर्चना की जाएगी। पिछली बार गलती से जिन मंदिर समिति ने मंदिरों को शिवरात्रि के समय खोल हुआ था उन मंदिरों के चालान कटने के कारण सभी मंदिर समिति व पुजारी इस चालान कटने से भयभीत होने के कारण मंदिर के कपाट नहीं खोलेंगे।
पंडित भारद्वाज ने स्पष्ट किया कि आम जनों को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं हो पाएंगे। केवल पुजारी ही उनका अभिषेक कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि जब-जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है, तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया था।
चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, अतः इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। मंदिरों में खास तौर से झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है। उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
उन्होंने बताया कि उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। इसके पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें। मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकी जी के लिए सूतिकागृह नियत करें। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए। फिर ” प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः वसुदेवात” तथा ‘ कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः’ मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें। ” सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते ” का उच्चारण कर अंत में प्रसाद वितरण कर भजन-कीर्तन करें।