नई दिल्ली। पिछले 10-15 वर्षों से समाज में खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है। युवाओं में खास तौर से जिम में जाना एक फैशन सा बन गया हैं। इस लोकप्रियता के साथ-साथ खेलों के दौरान होने वाली स्पोर्ट्स इंजरी भी बढ़ती जा रही है। उनसे बचाव के लिए हमें सभी संभव उपाय समझने बेहद जरुरी है। खेलते या एक्सरसाइज करते वक़्त किसी एथलीट या आम आदमी को स्पोर्ट्स इंजरी होना आम बात है। खेलते वक़्त गलतियां होना कोई बड़ी बात नहीं हैं। कई बार छोटी इंजरी या मोच का आ जाना स्वाभाविक है लेकिन इस इंजरी को लोग अक्सर इग्नोर कर देते है और सोचते है कि एक दो दिन में ठीक हो जायेगा पर इसे इग्नोर करना आपके लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
यही नहीं बल्कि कई बार मामूली नजर आने वाली इंजरी किसी एथलीट का करियर भी खत्म कर सकती हैं। चिकित्सकों की मानें तो खेल के दौरान होने वाली इंजरी के चलते खिलाड़ी टेनिस एल्बो, गोल्फर एल्बो, रोटेटर कफ टियर, मेनिसकस टीयर, टेंडीनाइटिस और टीनोसाइनोवाइटिस, लिगामेंट इंजरी, वजन नहीं उठा पाना, घुटने और टखने में मोच, घुटने में लचक और मांसपेशियों में खिंचाव आदि जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
वार्मअप के समय अधिक ध्यान दें खिलाड़ी
पेगासस इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेन मैनेजमेंट एंड स्पोर्ट्स इंजरी के डायरेक्टर डॉ. अखिल भार्गव के मुताबिक खेलने में पहले वार्मअप और स्ट्रेचिंग व्यायाम बहुत ही आवश्यक है। स्ट्रेचिंग व्यायाम से हम अपने सभी जोड़ों व उनके लिंगामेंट्स और मांसपेशियों को पूर्णतः संचालित करते है और उनकी पूरी रेंज ऑफ़ मोशन को अभ्यास करते है। उनका कहना है कि वार्मअप में हम अपने दिल और फेफड़े के साथ-साथ खून संचार की गतिविधि को खेलने के लिए पर्याप्त स्तर पर चालू कर लेते है। इनके करने से खेलने के वक़्त जोड़ों के या लिंगामेंट के स्ट्रेन स्प्रेन होने का खतरा खत्म हो जाता है और शरीर के रेफ्लेक्ट् बेहतर काम करते है।
डॉ भार्गव का अनुभव यह बताता है कि सबसे ज्यादा स्पोर्ट्स इंजरी की वजह खेलने या जिम करने के पहले पर्याप्त वार्मअप या स्ट्रेचिंग का ना करना है। स्ट्रेचिंग या वार्मअप व्यायाम कितना करना चाहिए यह उन बात पर निर्भर करता है कि यह हम किस स्तर पर और कितने वक़्त खेलने की योजना रखते हैं। कभी कभी खेलना स्पोर्ट्स इंजरी होने की खास वजह है। विभिन्न कारणों से काफी लोग कभी कभी ही खेलते हैं जैसे की वीकेंड पर या महीने दो महीने में एकाध बार। ऐसे लोगों को कम से कम स्ट्रेचिंग व्यायाम तो नियमित तौर पर जरूर करना चाहिए।
उनका कहना है कि खेलने से पहले वार्म अप और स्ट्रेचिंग जितनी जरुरी है खेलने के बाद कूल डाउन भी उतना ही जरुरी है। खेलने के बाद कूल डाउन केज में हलके व्यायाम के जरिये हम हार्ट रेट और रेस्पेरेटरी रेट को धीरे धीरे कुछ मिनटों में कम होने देते है और खून संचार को भी एक दम कम नहीं होने देते जिससे की मांसपेशियों में इक्कठा वेस्ट मेटाबोलाइट्स (खेलने से उत्पन्न होने वाले अनावश्यक केमिकल) खून के प्रवाह से फेफड़े व किडनी के जरिये शारीर से बहार हो जाते हैं।
मामूली चोटों पर प्राइस थेरेपी का करें इस्तेमाल
डॉक्टर अखिल कहते हैं कि किसी भी किस्म की स्पोर्ट्स इंजरी की प्राथिमिक चिकत्सा का सिद्धांत प्राइस थेरेपी है। प्राइस थैरेपी अंग्रेजी के शब्द (पीआरआईसीई) से बना है। फिजियोथैरेपी में पी का मतलब प्रोटेक्शन, आर (रेस्ट), आई (आईस), सी (कम्प्रेशन) और ई (एलीवेशन) है। स्पोर्ट्स इंजरी में इस फॉर्मूले के आधार पर इलाज करते हैं। चोट लगने के समय मौके पर पी-प्रोटेक्शन के तहत इलाज करते हैं। आर में रोगी को तुरंत रेस्ट देते हैं। आई में चोटिल जगह पर आईस थैरेपी देते हैं। बर्फ को कपड़े में लपेटकर सिकाई करें। सी में चोट वाले स्थान को एक्सपर्ट अपने हिसाब से कम्प्रेशन (दबाकर) देते हैं जबकि ई में चोटिल जगह पर सूजन न आए इसके लिए एलीवेशन टेक्नीक अपनाते हैं। चोट लगे पैर को हार्ट लेवल से ऊपर रखते हैं ताकि रक्तप्रवाह तेजी से न पहुंचे। साथ ही वहां दर्द व सूजन न आए।
कभी ना करें लापरवाही
स्पोर्ट्स इंजरी सर्जन डॉ भार्गव मानते हैं कि खेल के दौरान चोट लगना आम है, व्यायाम करते हुए भी आपको चोट लग सकती हैं। कभी-कभी एक छोटी सी चोट भी हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या बन जाती है जिसकी वजह से आने वाले समय में परेशानी उठानी पड़ सकती है इसलिए कभी किसी तरह की लगने वाली चोट के प्रति लापरवाही ना करें, तुरंत स्पोर्ट्स इंजरी विशेषज्ञ से इलाज़ कराएं डॉक्टर की सलाह से पहले खेलना पुन: प्रारंभ ना करे।
बर्फ का करें इस्तेमाल
चोट लगने पर अक्सर हम गर्म पानी से उस स्थान की सिंकाई करते हैं। लेकिन, डॉक्टर्स का मानना हैं कि बर्फ का उपयोग करना अधिक लाभकारी होता है। चोट लगने के बाद जितनी जल्दी हो सके बर्फ से सिंकाई करनी चाहिए। इसके अलावा चोट लगने के 24 घंटे के अंदर हर 10 से 15 मिनट में बर्फ की सिंकाई फायदेमंद होती है। बर्फ के टुकड़े का इस्तेमाल करने से चोट वाली जगह पर सूजन होने की संभावना, ब्लड फ्लो, थोड़ी-थोड़ी देर में होने वाले दर्द इत्यादि कम हो जाते हैं।