-फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दबंगों ने जमीन करा ली अपने नाम
-गांव छोडऩे का फरमान कर दिया है जारी
गुडग़ांव, 7 जुलाई : भारतीय सेना के जवान दिन-रात सीमाओं की चौकसी के लिए पहरा दे रहे हैं, ताकि देशवासी सुरक्षित रहकर सुकून की जिंदगी जी सकें, लेकिन इन्हीं सैनिकों के परिवारों को दबंगों द्वारा उत्पन्न की गई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय सेना से सूबेदार मेजर सेवानिवृत हुए जगदीश कुमार ने अपने गांव के दबंगों से परेशान होकर महामहिम राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की मांग की है। क्योंकि प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन तो उनकी कोई सहायता नहीं कर रहा है और दबंग उन्हें व उनके परिवार को गांव में रहने नहीं दे रहे हैं।
मंगलवार को जिले के गांव बलियाबास के जगदीश पुत्र परभाती ने अपने अधिवक्ता दुर्गेश बोकन के माध्यम से बुलाई गई प्रैस कां्रफ्रेंस में जानकारी दी है कि वह भारतीय सेना से सेवानिवृत है। उसका परिवार गांव में ही रहता है। उसके पिता का वर्ष 2016 की 13 मई को निधन हो गया था। इसी दौरान गांव के कुछ दबंगों ने जमीन की एक रजिस्ट्री दिखाई और कहा कि यह जमीन उनकी है। जब मामले की जांच की गई तो
पता चला कि वर्ष 1991 में इन दबंगों ने फर्जी व गैर कानूनी तरीके से उसके हस्ताक्षर कर जमीन अपने नाम करा ली थी। जबकि वह वर्ष 1991 में भारतीय सेना में डयूटी पर तैनात था।
इस संबंध में जिला अदालत व एसडीएम न्यायालय में भी गुहार लगाई थी। दोनों न्यायालय में उसकी गुहार अभी विचाराधीन है। जगदीश कुमार के अधिवक्ता दुर्गेश बोकन का कहना है कि गत दिसम्बर माह में इन दबंगों ने गेंहू व सरसों की 10 एकड़ फसल को बर्बाद कर डाला और उसे धमकी दी कि वह गांव छोडक़र चला जाए। पीडि़त ने इस संबंध में सीएम विण्डो, पुलिस आयुक्त व उप मुख्यमंत्री तक को भी शिकायत की है, लेकिन कहीं से भी उसे न्याय नहीं मिल पाया है। वह अपनी जमीन पर फसल उगाना चाहता है, लेकिन दबंगों ने उसे गांव छोडऩे का फरमान जारी किया हुआ है।
अधिवक्ता का कहना है कि पीडि़त पुलिस व जिला प्रशासन के चक्कर लगाता परेशान हो गया है। उसने 28 वर्ष भारतीय सेना में नौकरी की है। महामहिम राष्ट्रपति ने उसे जूनियर कमीशन का अवार्ड भी दिया था। अब पीडि़त व उसका परिवार दबंगों के कारण बड़ा परेशान है और पुलिस उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। जगदीश कुमार का कहना है कि इन सब हालातों को देखते हुए उसके व उसके परिवार के पास आत्त्महत्या के सिवा अब और कोई रास्ता नहीं बचा है। इसलिए उसे मजबूर होकर महामहिम राष्ष्ट्रपति से अनुरोध करना पड़ रहा है कि उसे व उसके परिवार को इच्छामृत्यु की अनुमति दी जाए।