माईकल सैनी ने भाजपा की 14 जून को होने वाली वर्चुअल रैली को लेकर उठाये सवाल

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गुरुग्राम। कोरोना जैसी घातक बीमारी से पिछले ढाई माह से परेशानियों में डूबी जनता त्रस्त है। प्रदेश के उद्योग, काम धंधे ,मजदूरी सब चौपट हो गए। खाने के लिए खाना नहीं है। बच्चों के लिए जरूरी सामान नहीं , दर दर की ठोकरें खाते लोग अब भाजपा का वर्चुअल रैली देखेंगे। यह कहना है समाजसेवी माईकल सैनी का। उन्होंने कहा कि जिस रैली की धूम मचायी हुई है उसके बहाने भाजपा सरकार के मंत्रियों, पार्टी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने लोगों को भ्रमित करने के मुहिम शुरू कर दी है। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि वर्चुअल रैली जिसमें मोदी जी के कार्यो का प्रचार किया जाना है योजनाओं से छपे पर्चो को बांटकर , लोगों में सेनेटाइजर , मास्क बांटकर शोशल मीडिया द्वारा रैली में शामिल होने के लिए कहा जाएगा लोगों के लिए खतरा बढाने वाली साबित हो सकती है ।


माईकल सैनी ने सवाल किया कि लोगों में आज संक्रमण को लेकर इतना भय घर कर चुका है कि वह नोटों को हाथ लगाने से भी डरने लगे हैं तो क्या वह भाजपा के पर्चों को लेने के लिए दरवाजों तक भी आएंगे ? उनका कहना है कि कमोवेश यही सूरतेहाल भाजपा के कार्यकर्ताओं का भी है। वह भी हिचक रहे हैं ,उनके परिजन भी संक्रमण काल में परेशान है। सैनी ने कहा कि जहां पड़ोसी राज्य दिल्ली में फोर्स लगानी पड़ गई महामारी की रोकथाम के लिए लोगों को घरों में ही रखने के लिए तो क्या इस प्रकार की रैली हरियाणा में आयोजित करने स्वीकार्य होनी चाहिये ?

उन्होंने कटाक्ष करते हुये कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं की मजबूरी भी बन गई है क्योंकि पार्टी में पद उसी को मिलेगा जो कार्य करेगा लेकिन जीयेगा याँ मरेगा उसकी परवाह पार्टी को नहीं। उसे रैली को सफल बनाना है तो मजबूरी में मन मारकर कार्यकर्ताओं को तो निकलना ही पड़ेगा। आने वाले संगठन के चुनावों में अपने आप को सिद्ध करने के लिए , प्रमाणित करने के लिए – क्योंकि भाजपा का प्रचार तंत्र इतना मजबूत है कि वह अपनी असफलता को भी सफलता बता कर प्रचारित करते हैं।

माईकल सैनी ने याद दिलाया कि भाजपा नेताओं द्वारा पहले मुख्यमंत्री की जनआशीर्वाद रैली की सफलता के झंडे चारो ओर गाड़े गए। 75 पार के स्थान पर महज चालीस पर ही सिमट गए। दूसरे दल का सहयोग लेकर सत्ता हासिल की मगर इस असफलता को भी अपनी सफलता बता कर लोगों को बरगलाते हैं। उन्होंने कहा कि जनता अब भाजपा की नीति और नियत को समझने लगी है और इनके झांसे में नहीं आने वाली।


जनवरी माह में संगठन के चुनाव होने थे मगर संगठन में अपनी पसंद के प्रदेश अध्यक्ष को लाना चाहते हैं खट्टर साहब जब्कि भाजपा का रास्ट्रीय संगठन अपनी पसंद के व्यक्ति को स्थापित करना चाहते हैं ताकि भाजपा के बिखरे कुनबे को फिर से जोड़ सके जिसपर मनन चल रहा है और इधर मनोहर लाल खट्टर एवं बराला साहब अपनी पकड़ जनता में आज भी उतनी ही है यह सिद्ध करने पर तुले हैं कारण उनके अस्तित्व का जो सवाल आ गया है ।


खट्टर साहब यह बात भली भांति जानते हैं कि उनके पक्ष के प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनते हैं तो उनके नीचे से कुर्सी छीन सकती है जिसके लिएँ पासे डालने वालों में रस्साकशी पहले से शुरू हो चुकी थी और चल भी रही है , भीतरखाने विरोध जबरदस्त चल रहा है और आरोप भी लग रहे हैं कि मुख्यमंत्री सिर्फ अपनी ही चलाते हैं किसी और की तो वह सलाह तक नहीं लेते हैं , खैर यह भाजपा का अंदरूनी मामला है इससे जनता को क्या ।


बात वर्चुअल रैली की हो रही है जिसमे मोदी जी की योजनाओं के विषयों को प्रचारित किया जाएगा ।
सवाल यह है कि कोरोनाकाल में होने वाली ईस रैली से लोगों का भय उनके मन से निकल जाएगा , सेनेटाइजर- मास्क मानवता के नाम पर पहले बांटने का फर्ज नहीं बनता था क्या इनका ? व्यापार और लोगों की स्तिथियाँ सुधर जाएंगी , हस्पतालों की हालात सुधर जाएंगे ?
प्रदेश की जनता से इन्हें कुछ लेना देना नहीं समस्याओं के समाधान पर इनका कोई ध्यान नहीं , जनता के लिए क्या बेहतर कर सकते हैं इनकी सोच में ही शामिल नहीं ।
यहाँ इनके लिए सिर्फ एक ही बात निकल रही है लोगों के मुँह से कि जनता परेशान -पीड़ित और पस्त , और सरकार उसके अधिकारी और पदाधिकारी हैं मस्त ।

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