विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे सभी शुभ कार्य इस दिन से ही हो जाते हैं आरम्भ
भगवान विष्णु की शालीग्राम रूप में तुलसी से विवाह की परम्परा
दोपहर 12 बजकर 15 मिनट के बाद विवाह के नक्षत्र
गुरुग्राम/फरीदाबाद : देवउठनी एकादशी को महान धार्मिक ग्रन्थ पुरानों में बहुत महत्वपूर्ण दिन बताया गया है. देश के सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं वी के शास्त्री के अनुसार सनातन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु जी चार महीने तक शयन करने के बाद इस दिन ही जागते है। हिन्दू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को तुलसी विवाह से शुभ कार्यो की शुरुआत हो जाती हैं. शादी विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे सभी शुभ कार्य इस दिन से ही आरम्भ हो जाते हैं।
पंडित शास्त्री बताते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की शालीग्राम रूप मे तुलसी से विवाह करते हैं. इस बार यह एकादशी आठ नवम्बर यानी शुक्रवार को है. इस दिन दोपहर 12 बजकर 15 मिनट के बाद विवाह के नक्षत्र उतराभाद्रपद में तुलसी विवाह करना शुभ रहेगा.
उनका कहना है कि आज के दिन विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करना चाहिए. भगवान के चरणों की आकृति घर आँगन में बनायें. शाम के समय दीपक जलाकर तुलसी पूजा करनी चाहिए. ” ॐ नमो नारायण ” का जाप करना चाहिए. देव गुरु बृहस्पति के धनु राशि में होने से हरिप्रबोधोत्सव का विषेश महत्व रहेगा.
पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने एक बार शंखासुर नामक भयंकर राक्षस का वध किया था. फिर भगवान विष्णु ने आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर शयन किया. इसके बाद चार महीने की योग निद्रा त्यागने के बाद भगवान जागे. कहा जाता है कि देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है. भगवान् जागने के बाद सबसे पहले उन्हें तुलसी अर्पित की जाती है.
पंडित शास्त्री के अनुसार इस दिन देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनने से 100 गायों के दान का पुण्य मिलता है. इस एकादशी का व्रत करना बेहद शुभ और मंगलकारी होता है.
मान्यता है कि भगवान विष्णु जब चार महीने की निद्रा के बाद जागते हैं तो सबसे पहले तुलसी की ही प्रार्थना सुनते हैं. तुलसी विवाह का अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान विष्णु को योग निद्रा से जगाना.