मोदी सरकार की सिन्धु संधि मामले में पहली नाकामी ?

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विश्व बैंक ने नहीं मानी भारत की बात !

पंचाट गठन पर भारत का विरोध 

नई दिल्ली : नरेन्द्र मोदी सरकार को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ पहली नाकामी हाथ लगी है. खबर है कि सिन्धु समझौते के मामले में विश्व बैंक ने भारत की केवल निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग नहीं मानी है. उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और राटले पनबिजली परियाजनाओं को लेकर पाकिस्तान द्वारा विश्व बैंक से शिकायत की गयी थी और इस पर ध्यान देने के लिए एक पंचाट का गठन करने की मांग की थी जबकि भारत ने निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने को कहा था. हालाँकि पंचाट व निष्पक्ष विशेषज्ञ दोनों की नियुक्ति के इस अस्पष्ट फैसले पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है.

निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्ति की मांग की थी

गौरतलब है कि इस मामले में भारत ने विश्व बैंक से एक निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग की थी, जबकि पाकिस्तान ने पंचाट के गठन की मांग की थी. निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने व पंचाट गठन करने के विश्व बैंक के फैसले से हैरान भारत ने कहा कि दोनों पर एक साथ आगे बढ़ना कानूनी रूप से असमर्थनीय है.

दो समानांतर तंत्रों से परेशानी 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि विश्व बैंक ने अस्पष्ट तरीके से एक साथ दो समानांतर तंत्रों पर आगे बढ़ने का फैसला किया है. भारत उन कार्रवाइयों का हिस्सा नहीं हो सकता जो सिंधु जल संधि के अनुरूप नहीं हैं. उन्होंने दावा किया है सरकार अन्य विकल्पों पर विचार करेगी और इसी के अनुरूप कदम उठाए जाएंगे.

1960 में सिंधु जल संधि समझौता

याद रहे कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि का समझौता हुआ था. विश्व बैंक भी इसका हिस्सा है. इस संधि में दोनों के बीच मतभेदों एवं विवादों के हल की प्रक्रिया में विश्व बैंक की विशिष्ट भूमिका है.

तकनीकी विशेषज्ञ का अधिकार क्षेत्र 

विदेश विभाग के प्रवक्ता ने सिंधु जल संधि के तहत किशनगंगा और राटले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों के मुद्दे पर कहा कि भारत ने तकनीकी प्रकृति के मतभेदों के हल के लिए विश्व बैंक से एक निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने को कहा था. हमारा मानना है कि ये मतभेद एक निष्पक्ष तकनीकी विशेषज्ञ के अधिकार क्षेत्र में आते हैं.

 

पनबिजली परियोजना पर पाकिस्तान को आपत्ति

दूसरी तरफ पाकिस्तान ने पंचाट अदालत के गठन की मांग की थी जो आम तौर पर संधि से संबंधित विवादों के हल की प्रक्रिया में उठाया जाने वाला अगला तार्किक कदम होता है. पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में पनबिजली परियोजना की संरचना को लेकर आपत्तियां जतायी हैं. उसका कहना है कि यह दोनों देशों के बीच हुई सिंधु जल संधि के तहत तय किए गए मानदंड के अनुरूप नहीं है.

कानूनी रूप से अतार्किक

इस पर स्वरूप ने कहा कि निष्पक्ष विशेषज्ञ इस बात का भी निर्धारण कर सकते हैं कि तकनीकी मतभेदों के अलावा भी समस्याएं हैं. उन्होंने कहा कि विश्व बैंक ने एक साथ दोनों तंत्रों पर आगे बढ़ने का फैसला किया है. सरकार ने विश्व बैंक से कह दिया था कि मतभेद-विवाद के हल के लिए दो समानांतर तंत्र ,एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति और पंचाट का गठन दोनों पर आगे बढ़ना कानूनी रूप से अतार्किक है.

व्यावहारिकता एवं स्वीकार्यता पर सवाल

स्वरूप ने कहा कि दोनों पर एक साथ आगे नहीं बढ़ने की भारत की सलाह के बावजूद विश्व बैंक ने इसके उलट फैसला किया जिससे 56 साल पहले हुई संधि की व्यवहारिकता एवं स्वीकार्यता पर सवाल उठ रहे हैं.

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