गुरूग्राम। गुरुग्राम के किसान अब राज्य सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं का लाभ उठाते हुए नीली क्रान्ति की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं जिससे कि उन्हें गुरूग्राम की दिल्ली मार्किट से निकटता का फायदा हो और वे परंपरागत खेती की अपेक्षा ज्यादा लाभ कमा सकें। सरकार द्वारा प्रदेश के किसानों को फायदे की खेती करने को प्रोत्साहित करने के लिए गुरूग्राम में एग्री समिट, व्योम की बैठक आदि आयोजित की गई जिनके माध्यम से किसानों को यह समझाने का प्रयास किया गया कि वे खेती पैसा कमाने के लिए करें।
इस दिशा में कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ व अन्य कृषि विशेषज्ञों ने खेती के साथ साथ अन्य संबद्ध व्यवसायो जैसे नीली क्रान्ति अर्थात् मछली पालन, फूलो की खेती, श्वेत क्रान्ति अर्थात् दुग्ध उत्पादन करके हरियाणा से प्रतिदिन दिल्ली में फ्रैश सप्लाई करने का जो सपना दिखाया गया। उस सपने को साकार करने का साहस गुरूग्राम जिला के प्रदीप कुमार ने जुटाया जिन्होंने उत्तर भारत में पहली बार सर्दी के मौसम में झींगा मछली की खेती कर इतिहास रचा है।
ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है कि दिसंबर व जनवरी माह में भी झींगा मछली इतने कम तापमान में भी ना केवल जीवित है बल्कि उसका उत्पादन भी अच्छा है अन्यथा दिसंबर में जनवरी माह में झींगा मछली समुंद्र तटीय क्षेत्रों मे ही सरवाइव कर पाती है। गुरूग्राम के इस किसान ने घरेलू नुस्खे अपनाकर झींगा मछली की ना केवल पैदावार की है बल्कि उसके उत्पादन को कई गुना बढ़ाया भी है।
जिला मत्स्य अधिकारी धर्मेंद्र सिंह के अनुसार प्रदीप कुमार ने बताया कि परियोजना की विशेष बात यह है कि जहां किसान आमतौर पर एक एकड़ भूमि में एक से डेढ़ लाख झींगा की पैदावार करते हैं, वहीं प्रदीप कुमार द्वारा एक एकड़ में लगभग चार लाख झींगा की पैदावार की जा रही है। इस प्रकार का प्रयोग गुरूग्राम जिला में और ना केवल हरियाणा प्रदेश बल्कि उत्तर भारत में पहला है जहां सफेद झींगा पैदावार को दिसंबर में जनवरी माह में करके दिखाई है।
उन्होंने बताया कि गांव झांझरोला खेड़ा के प्रदीप कुमार ने 4 हेक्टेयर यानी 10 एकड़ भूमि में सफेद झींगा पालन किया हुआ है । उसने सरकार की योजनाओं का लाभ उठाते हुए इस परियोजना पर राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 50 प्रतिशत की सब्सिडी प्राप्त की है। श्री सिंह के अनुसार पहले इस मौसम में झींगा मछली तटीय क्षेत्रो से मंगवानी पड़ती थी लेकिन अब एनसीआर में झींगा के उत्पादन से एनसीआर के लोगों को दिसंबर व जनवरी माह में भी फ्रैष झींगा उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति झींगा मछली की खेती करना चाहता है तो वह लघु सचिवालय स्थित जिला मत्स्य अधिकारी के कार्यालय में संपर्क कर सकता है।
प्रदीप कुमार ने सीआईएफई मुंबई, जोकि केंद्र सरकार का मत्स्य ट्रेनिंग संस्थान है, के विशेषज्ञो से रोहतक जिला के गांव लाहली स्थित संस्थान में एक सप्ताह की ट्रेनिंग ली थी। इस दौरान ट्रैनिंग कर रहे किसानों को विभिन्न फार्मो की विजिट करवाई गई और तालाब की खुदाई तथा कंपनियों से मशीनरी आदि की व्यवस्था संबंधी जानकारी दी गई थी। इसके बाद ही प्रदीप कुमार ने सफेद झींगा पालन का मन बनाया।
उन्होंने बताया व्हाइट श्रिंप यानि कि झींगा पालन ज्यादातर मार्च से नवंबर माह तक किया जाता है और किसान चार -चार महीने की 2 फसल लेते हैं, लेकिन प्रदीप कुमार ने अक्टूबर माह के षुरूआत में व्हाइट झींगा की स्टॉकिंग की और 4 हेक्टेयर की भूमि पर 10 पौंड यानी तालाब बनाएं । उसने 4 हजार वर्ग मीटर के प्रत्येक तालाब के हिसाब से 10 तालाबों में 5-5 फीट पानी भरकर व्हाइट झींगा की स्टॉकिंग की।
प्रदीप कुमार ने बताया कि व्हाइट झींगा के बीज को सर्दी से बचाए रखने के लिए उसने पारंपरिक एरिएशन सिस्टम की बजाए बॉटम बेस्ड वेदर कंट्रोल एरिएशन सिस्टम लगाया ताकि मछली के बीज को नीचे तक ऑक्सीजन की सप्लाई हो सके। इसके साथ ही उसने कुछ देसी नुस्खों सहित आयुर्वेदिक तरीकों को भी अपनाया जिसमे लहसुुुन व हल्दी को फीड के साथ मिक्स किया गया जिसने एंटीबायोटिक का काम करते हुए उसके सर्वाइवल में मदद की।
उसने यह भी बताया कि झींगा मछली की ज्यादातर पैदावार समुद्री एरिया में की जाती है क्योंकि इसके सरवाइवल के लिए खारे पानी की जरूरत होती है। खारे पानी का स्तर 5 पीपीटी से लेकर 20 से 25 पीपीटी होना चाहिए। झींगा मछली के उत्पादन से जहां एक ओर खारे पानी की जमीन का सदुपयोग हो जाता है, वहीं दूसरी ओर उत्तर भारत में व्हाइट झींगा की पैदावार हो सकती है।
इसके बीज को विशेष रूप से तटीय क्षेत्रो की हैचरी सेे मंगवाया जाता है। इसके बीज को लानेे का तरीका भी बहुत संवेदनशील होता हैै जिसे बहुत ही कंट्रोल्ड तापमान में 8 से 10 घण्टो तक थर्माकोल के बॉक्सेस में मंगवाया जाता है।
उपायुक्त विनय प्रताप सिंह ने सर्दी के मौसम में झींगा मछली का उत्पादन करने वाले जिला के किसान प्रदीप कुमार को बधाई दी और कहा कि उसने जिला के अन्य किसानों को भी राह दिखाई है। श्री सिंह ने आशा जताई कि जिला के अन्य किसान भी प्रदीप कुमार से प्रेरणा लेकर परंपरागत खेती के अलावा लाभप्रद खेती करने के तरीको के बारे में सोचेंगे।