मुस्लिम समाज का ममता सरकार से मोह हो रहा भंग !
कोलकाता। आम चुनाव 2019 में अभी वक्त हैं। लेकिन दिल्ली की सत्ता पर अलग अलग दलों के नेताओं की नजर टिकी है। मौजूदा केंद्र सरकार के खिलाफ महागठबंधन बनाने की कवायद चल रही है। इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव गैर कांग्रेस, गैर बीजेपी गठबंधन की संभावनाओं को जमीन पर उतारने की कवायद में जुटे हैं। इस बीच पश्चिम बंगाल में 2000 से ज्यादा मुस्लिम कार्यकर्ताओं ने टीएमसी का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। सियासी तौर पर इसे ममता बनर्जी के लिए झटका माना जा रहा है।
टीएमसी से इस्तीफा देने वाले मुस्लिम कार्यकर्ताओं का कहना है कि ममता बनर्जी सरकार बीजेपी का डर दिखाकर चुनावी अभियान का ध्रूवीकरण कर रही है। मौजूद पश्चिम बंगाल सरकार मुसलमानों के हित की बात तो करती है। लेकिन सच ये है कि जमीन पर सच्चर कमेटी को लागू करने की दिशा में कदम नहीं उठाया गया। इसके साथ ही 10 हजार मदरसों को राजकीय मान्यता देने की घोषणा की गई। ये बात अलग है कि जमीन पर मुसलमानों के लिए कहीं कुछ नहीं दिखता है।
कार्यकर्ताओं का कहना है कि हाल ही में दुर्गा पांडालों के लिए जिस तरह से अनुदान देने की घोषणा की गई उससे साफ है कि ममता बनर्जी सरकार खुद सांप्रदायिक राजनीति में भरोसा करती है। जानकारों का कहना है कि जमीनी स्तर के मुस्लिम कार्यकर्ताओं के टीएमसी छोड़ने से पार्टी के मोराल पर असर पड़ेगा, वहीं कांग्रेस को इस बात की खुशी होगी कि देर से ही सही मुस्लिम समाज का झुकाव अब उनकी तरफ हो रहा है।