केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने किया आदेश जारी
कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने किया प्रबल विरोध
निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने 10 खुफिया व जांच एजेंसियों एवं दिल्ली पुलिस को ‘किसी भी कंप्यूटर’ में तैयार, ट्रांसमिट, प्राप्त या संग्रहित ‘किसी भी सूचना’ पर नजर रखने का अधिकार दे दिया है. इसके तहत अधिकृत जांच एजेंसी को किसी भी कम्पूटर के इंटरसेप्ट करने, इनका निरीक्षण करने और डिक्रिप्ट करने की इजाजत मिल गयी है। देश में इस फैसले का विरोध होने लगा है . कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने सरकार के इस कदम को अलोकतांत्रिक एवं लोगों के निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया है।
क्या है प्रावधान ?
केन्द्रीय गृह सचिव राजीव गौबा की ओर से जारी आदेश के अनुसार, “सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्टेशन के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के नियम 4 के साथ पठित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69 की उपधारा (1) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए उक्त अधिनियम के अंतर्गत संबंधित विभाग, सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर में आदान-प्रदान किए गए, प्राप्त किए गए या संग्रहित सूचनाओं को इंटरसेप्ट, निगरानी और डिक्रिप्ट करने के लिए प्राधिकृत करता है।
10 एजेंसियां को यह अधिकार
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जिन 10 एजेंसियां को यह अधिकार दिया है उनमें खुफिया ब्यूरो, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, राजस्व खुफिया निदेशालय, कैबिनेट सचिव (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटिलिजेंस (केवल जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर और असम के सेवा क्षेत्रों के लिए) और दिल्ली पुलिस आयुक्त शामिल हैं।
गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि किसी भी कंप्यूटर संसाधन के प्रभारी सेवा प्रदाता या सब्सक्राइबर इन प्राधिकृत 10 एजेंसियों को सभी सुविधाएं और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य होंगे। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसमें सजा का भी प्रावधान किया गया है. अगर कोई भी व्यक्ति या संस्थान ऐसा एजेंसी को सहयोग करने से मन करता है तो ‘उसे सात वर्ष की सजा भुगतनी पड़ सकती है ।
कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने किया प्रबल विरोध
केंद्र सरकार की ओर से इस आदेश के जारी होते ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों की भौंहें तन गईं. कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा में उपनेता आनंद शर्मा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि विपक्ष इस कदम को अलोकतांत्रिक ही नहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट किया गए निजता के अधिकार सम्बन्धी प्रावधानों का खुला उल्लंघन है. वे इसका प्रबल विरोध करेंगे.
सपा नेता राम गोपाल यादव ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार जनता के निजी मामले में भी हस्तक्षेप करने की फिराक में है. यह गैरकानूनी है. उन्होंने कहा कि इस सरकार को यहाँ समझना चाहिए कि यह आदेश उनके हाथ में केवल चार माह रहने वाला है क्योंकि चार माह बाद देश में दूसरी सरकार आने वाली है.
विपक्षी नेताओं के सुर में सुर आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी मिलाया. उन्होंने कहा कि यह सरकार इस आदेश के सहारे लोगों के बेडरूम तक प्रवेश करना चाहती है. यह लोकतंत्र के खिलाफ और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है.
इस आदेश के महत्वपूर्ण तथ्य :
- सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना खंगालने, निगरानी करने और जांच करने हेतु प्रक्रिया और सुरक्षा) नियमावली 2009 के नियम 4 में यह प्रावधान है कि ‘सक्षम अधिकारी किसी सरकारी एजेंसी को किसी कम्प्यूटर संसाधन में सृजित, पारेषित, प्राप्त अथवा संरक्षित सूचना को अधिनियम की धारा 69 की उप धारा (1) में उल्लेखित उद्देश्यों के लिए खंगालने, निगरानी करने अथवा जांच करने के लिए अधिकृत कर सकता है’।
- वर्ष 2009 में तैयार की गई नियमावली और तब से लेकर प्रभावी नियमों के अनुसार वैधानिक आदेश, दिनांक 20.12.2018 को जारी किया गया है।
- वैधानिक आदेश दिनांक 20.12.2018 के द्वारा किसी सुरक्षा अथवा कानून का अमल करने वाली एजेंसी को कोई नया अधिकार नहीं दिया गया है।
- मौजूदा आदेशों को कूटबद्ध करने के लिए आईएसपी, टीएसपी, मध्यवर्तियों आदि को अधिसूचित करने के लिए अधिसूचना जारी की गई है।
- खंगाले जाने, निगरानी से जुड़े और जांच से जुड़े प्रत्येक मामले के लिए सक्षम अधिकारी यानि केन्द्रीय गृह सचिव द्वारा मंजूरी प्राप्त करनी होगी। सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना खंगालने, निगरानी करने और जांच करने हेतु प्रक्रिया और सुरक्षा) नियमावली 2009 के अनुसार राज्य सरकारों में भी सक्षम अधिकारी के पास ये शक्तियां उपलब्ध हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना खंगालने, निगरानी करने और जांच करने हेतु प्रक्रिया और सुरक्षा) नियमावली 2009 के नियम 22 के अनुसार, खंगालने अथवा निगरानी करने अथवा जांच करने के ऐसे सभी मामले को मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में समीक्षा समिति में रखना होगा, जिसकी ऐसे मामले की समीक्षा के लिए दो माह में कम से कम एक बार बैठक होगी। राज्य सरकारों के मामले में ऐसे मामले की समीक्षा संबंधित मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा की जाएगी।
- वैधानिक आदेश दिनांक 20.12.2018 से निम्नलिखित रूप में मदद मिलेगीः
- यह सुनिश्चित करना कि किसी कम्प्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी सूचना को खंगाले जाने, निगरानी करने अथवा जांच करने का कार्य यथोचित कानूनी प्रक्रिया के साथ किया गया है।
- इन शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अधिकृत एजेंसियों के बारे में और किसी एजेंसी, व्यक्ति अथवा मध्यवर्ती द्वारा इन शक्तियों का किसी रूप में अनधिकृत इस्तेमाल की रोकथाम के बारे में अधिसूचना जारी करना।
- उपर्युक्त अधिसूचना यह सुनिश्चित करेगी कि कम्प्यूटर संसाधन को कानूनी तरीके से खंगाला गया है अथवा निगरानी की गई है और इस दौरान कानून के प्रावधानों का पालन किया गया है।