अदालत की गलती से कई निर्दोष लोगों को हो जाती है सजा
अनुचित तरीके से मुकदमे के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने की सिफारिश
सुभाष चौधरी /प्रधान सम्पादक
नई दिल्ली : भारत के विधि आयोग ने ‘’अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने (अदालत की गलती): कानूनी उपायों’’ शीर्षक से रिपोर्ट संख्या 277 आज केंद्र सरकार को सौंप दी है।अदालत ने अनुचित तरीके से मुकदमे के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास प्रदान करने के लिए एक कानूनी रूपरेखा तैयार करने की तत्काल आवश्यकता बताई थी और विधि आयोग से कहा था कि वह इस मुद्दे की विस्तृत जांच का काम हाथ में ले और सरकार को अपनी सिफारिशें दें।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने बबलू चौहान@डबलू बनाम दिल्ली सरकार, 247 (2018) डीएलटी 31, के मामले में 30 मई, 2017 के अपने आदेश में निर्दोष व्यक्तियों पर अनुचित मुकदमा चलाने, ऐसे अपराधों में कैद जो उन्होंने नहीं किए हैं, जैसी स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने, कैद और निर्दोष व्यक्तियों को दोषी ठहराने के मुद्दे की ‘अदालत की गलती’ के रूप में पहचान की गई है, जो व्यक्ति को अनुचित तरीके से दोषी ठहराने के बाद होता है लेकिन बाद में उसे नए तथ्यों/प्रमाणों के आधार पर तथ्यात्मक रूप से निर्दोष पाया जाता है। नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम (आईसीसीपीआर), भारत द्वारा पुष्टि) में भी अदालत की गलती के शिकार लोगों को मुआवजा देने के लिए एक कानून बनाने के लिए कहा गया था।
यह रिपोर्ट भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली के संदर्भ से इस मुद्दे को देखती है और सिफारिश करती है कि ‘अनुचित तरीके से मुकदमा चलाना’ और गलत तरीके से कैद करना, ‘गलत तरीके से दोष साबित करना अदालत की गलती के मानकों में शामिल होंगे जहां आरोपी और अपराध का दोष साबित नहीं होने वाले व्यक्ति, पुलिस तथा/ अथवा अभियोजक जांच में और/ अथवा व्यक्ति पर मुकदमा चलाने में किसी तरह के दुर्व्यवहार में शामिल है। इसमें दोनों तरह के मामले शामिल होंगे, जहां व्यक्ति ने जेल में समय बिताया है और नहीं बिताया है ; और जहां आरोपी को निचली अदालत द्वारा दोषी नहीं पाया गया अथवा जहां आरोपी को एक या अधिक अदालतों द्वारा दोषी पाया गया लेकिन अंतत: उच्च अदालत द्वारा दोषी नहीं पाया गया।
रिपोर्ट में वर्तमान कारणों के अंतर्गत उपलब्ध उपायों की जानकारी दी गई है और उनकी अपर्याप्तता पर विचार किया गया है। आयोग ने अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने के मामलों के निपटारे के लिए विशेष कानून, प्रावधान लागू करने की सिफारिश की है, ताकि अनुचित तरीके से मुकदमें के शिकार लोगों को मौद्रिक और गैर-मौद्रिक मुआवजे (जैसे परामर्श, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, व्यावसायिक/रोजगार, कौशल विकास आदि) के मामले में वैधानिक दायरे के भीतर राहत प्रदान की जा सके। रिपोर्ट में अनुशंसित रूपरेखा के प्रमुख सिद्धांतों – ‘अनुचित तरीके से मुकदमा चलाने’ की परिभाषा यानी जिन मामलों में मुआवजे का दावा दायर किया गया है, मुआवजे के इन दावों के फैसले के लिए विशेष अदालतें बनाने, कार्यवाही की प्रकृति – दावों के फैसले के लिए सामयिकता आदि, मुआवजा निर्धारित करते समय वित्तीय और अन्य कारक, कुछ मामलों में अंतरिम मुआवजे का प्रावधान, गलत तरीके से मुकदमा चलाने/दोषी ठहराने आदि को देखते हुए अयोग्यता हटाने जैसी बातों को एक-एक करके बताया गया हैं। इस विधेयक का मसौदा रिपोर्ट के साथ आपराधिक दंड प्रक्रिया (संशोधन) विधेयक के रूप में संलग्न है।