नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार किए गए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओ को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि डिसेन्ट या असहमति होना लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है. अगर आप इसे प्रेशर कूकर की तरह दाबाएंगें तो यह फट जाएगा. यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपियो को उनके घर में ही हाउस अरेस्ट रखा जाए. साथ ही महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करके इस मामले में 5 सितंबर तक जवाब मांगा है. इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद पुणे कोर्ट में दोबारा सुनवाई हुई और उसने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक आरोपियों को उनके घर पहुंचाने को कहा है.
उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र पुलिस ने इन सभी को पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में भड़की हिंसा के मामले में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार किया था. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने भीमा-कोरेगांव घटना के करीब 9 महीने बाद इन व्यक्तियों को गिरफ्तार करने पर महाराष्ट्र पुलिस से कई गंभीर सवाल किए।
पीठ ने खचाखच भरे कक्ष में कहा कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है और अगर आप इन सेफ्टी वॉल्व की इजाजत नहीं देंगे तो यह फट जाएगा.’ राज्य सरकार की दलीलों पर कड़ा संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, ‘यह वृहद मुद्दा है. उनकी (याचिकाकर्ताओं की) समस्या असहमति को दबाना है.’ पीठ ने सवाल किया, ‘भीमा-कोरेगांव के नौ महीने बाद, आप गए और इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया.’