सुभाष चौधरी/प्रधान संपादक
नई दिल्ली /नागपुर। आज देश की नजरें नागपुर की और टिकी हैं क्योंकि कुछ घंटे बाद ही पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लेंगे। इसके लिए वो बुधवार शाम को ही नागपुर पहुंच चुके हैं। प्रणब मुखर्जी के इस कदम पर सियासी हलचल तेज है। उनके द्वारा आर एस एस के इस आमन्त्रण को स्वीकार करने के बाद से ही देश दो ध्रुवों में बट गया है. कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के नेताओं की फ़ौज इस दौरे के विरोध में बोल रहे हैं जबकि भाजपा के बड़े नेताओं सहित पार्टी कार्यकर्ताओं की बांछे खिल गयी हैं. बुधवार देर शाम प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी अपने पिता के इस कदम के विरोध में अपना विचार व्यक्त कर यह जता दिया है कि आने वाले समय में भाजपा और संघ के बीच इस घटना को लेकर वाद प्रतिवाद चरम पर होगा. राजनीतिक दृष्टि से बेहद अहम् यह घटना आर एस एस के लिए भी ऐतिहासिक साबित होगी.
संघ के सूत्रों के अनुसार कार्यक्रम के आरम्भ में संघ का भगवा ध्वज फहराया जाएगा। ध्वजारोहण की यह परम्परा आरम्भ से ही चली आ रही है जिसमें पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के भी शामिल होने की संभावना है. अब ध्वजारोहण में संघ को उनका साथ मिलेगा या नहीं इसको लेकर संशय है. संघ के इस अति महत्वपूर्ण दीक्षांत समारोह में प्रणब मुखर्जी समेत 4 लोग मंच पर बैठेंगे। इनमें मोहन भागवत और आरएसएस के दो राष्ट्रीय पदाधिकारी भी शामिल होंगे। संकेत है कि कार्यक्रम के दौरान प्रणब मुखर्जी आधे घंटे का भाषण देंगे जिसे सुनने के लिए आज देश का राजनीतिक धरा ही नहीं बल्कि आम लोगों की निगाहें भी टिकी हैं। क्योंकि आर एस एस का यह कार्यक्रम उनके इतिहास की दृष्टि से उसी तरह बेहद महत्वपूर्ण होगा जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु द्वारा संघ को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का न्योता मिलने की घटना को माना जाता है. एक पूर्व राष्ट्रपति जिनकी पृष्ठभूमि कट्टर कांग्रेसी होने की रही हो उनका संघ के राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल होना अपने आप में देश को चौकाने वाला है. आज तक जिस संगठन को कोसते रहे उसके दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि बनना कांग्रेस पार्टी और उनको करीब से जानने वालों के गले नहीं अतर रहा है.
चर्चा यह है कि प्रणव मुखर्जी इस कार्यक्रम में केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर ही बात करेंगे जबकि राजनीतिक मुद्दों से दूरी बनाए रख सकते हैं. संभव है उनका फोकस देश की सामाजिक व सांस्कृतिक चुनौतियों पर हो क्योंकि संघ के लोग हमेशा अपने को सामाजिक व सांस्कृतिक विषयों के प्रति समर्पित रहने की बात करते हैं. लेकिन विश्लेषक यह मानते हैं कि उनके इस कदम का दूरगामी राजनितिक असर होगा.एक तरफ संघ के प्रति हाल के दशक में बने मिथक भी टूटेंगे जबकि छुआछूत की राजनीति को जबरदस्त झटका लगेगा.
कार्यक्रम की परम्परा के अनुसार पूर्व राष्ट्र पति के बाद आरएसएस के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत का भाषण होगा।
नागपुर के रेशमबाग मैदान में होने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह राष्ट्रीय दीक्षांत समारोह की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है. संघ ने अपनी तैयारी कर ली है. विरोध और समर्थन के बीच प्रणब मुखर्जी का संघ के कार्यक्रम में शामिल होने के सही मायने का पता उनके भाषण के बाद ही लगेगा.
संघ के फेसबुक पर समर्थक एवं विरोधी भिड़े :
इसको लेकर संघ के फेसबुक पर संघ समर्थकों और विरोधियों के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया है. संघ समर्थक राहुल सूर्यवंशी कहते हैं कि प्रणव दा सबसे पहले हिन्दू है कांग्रेस के कार्यकर्ता बाद में लेकिन जब तक कांग्रेस में थे उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ पार्टी को आगे बढाया जब वो राष्ट्रपति बने तब उन्होंने पार्टी से ऊपर उठकर देश हित मे कार्य किये अब ना वो राष्ट्रपति है और ना कांग्रेस के कार्यकर्ता तो काँग्रेसयो से अनुरोध है कि अब तो जिश धर्म मे पैदा हुए उसको आगे बढ़ाने में क्यो रोक रहे हो प्रणव दा एक महान सख्सियत है । उनको रोकने की कोसिस मत करो नही तो 44 से 4 सीटे भी नही बचेगी ।
दूसरी तरफ चिन्मय नारायण भरद्वाज कहते हैं कि शर्मनाक बात यह है, कि रामायण में लिखा है कि राम वन वन फिरते रहे, लक्ष्मण मेघनाद के वाण से मूर्छित हो गये, मेघनाद ने ही राम लक्ष्मण दोनों भाईयों को नागपाश से बाँध दिया था। परन्तु आधुनिक भारत में मरता केवल गरीब निरीह सैनिक है। राम रावण तो नागपुर के संघ मुख्यालय में बैठ एक दूसरों की प्रशंसा करते दिखते है। प्रणव मुखर्जी जैसों दोहरे चरित्र के लोगों को बस सभा में कुर्सी की दरकार रहती है। संघ कार्यालय में इनके लिए संघीयों की जय जयकार और बंगाल पहुँचने पर हम जैसे बीजेपी और संघ कार्यकर्ता के हत्यारों की जय जयकार।
उनका कहना है कि लोगों ने मोदी की सरकार इसलिए नहीं लाया था , कि आज हम संघ कार्यालय से प्रणव का भाषण सुने कौन जाने कल कुर्सी के लोभ में येचुरी, पेणयारी विजयन जैसों का भी इमान डोल जाए, और वे भी सोच लें कि भाँड़ में जाओ कुन्नुर में संघ के विचारों का प्रतिपादन करते मरने वाले स्वयंसेवक, अब तुम्हारी व्यथा कहानी ही बनकर रह जाएगी। अब काफी हो चुका संघ का प्रचार, तुमने इसी विचारधारा के लिए हमसे लड़ प्राण गवाये। मैं चला तुम्हारे संघ मुख्यालय तुम्हारे परम पूजनीय संघ संचालक के साथ तुम्हारा मार्गदर्शन करने। संघ, बीजेपी सब सत्ता के नशा में चूर हैं, इन्होंने उन सभी को भूला दिया जिन्होंने प्रणब जैसों से दिन रात वैचारिक संघर्ष कर संघ जैसी संस्थाओं को इतना विकट रूप प्रदान किया। नागपूर में बैठे लोग ये सोच संरचित कर लिया कि बस हमीं दस बीस लोग हैं जो पूरे संगठन पूरे देश को चला रहे।
इस मामले पर डी एन पाण्डेय कहते हैं श्रीमान प्रणव मुखर्जी! यह एक ऐसा व्यक्तित्व है जो पूछ पकड़ कर चलने में विश्वास नही रखते। प्रणव दा एक स्वतंत्र विचार रखने वाले ईमानदार व्यक्ति है और यही बात कोंग्रेस को पसंद नहीं थी इसीलिए कॉन्ग्रेस ने उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया जब की श्री बालासाहेब ठाकरे जी कॉन्ग्रेस विरोधी होने के बावजूद राष्ट्रपति बनने के लिए प्रणव दा को मदत की और इसी वजह से कॉन्ग्रेस पार्टी का पतन होना शुरू हुआ है. विचारों से भी ऊपर उठ कर हम सब भारतीय और माॅ भारती केे सपूत हैं। साथ बैठ कर विचार विनिमय और देश हित मे
कार्य करें। हम संघ के साथ हैं।
देव बामोला ने कहा है कि हिन्दुओं के देश में हिन्दुओं की अनदेखी कारण एकता की कमी हिन्दुओं के दम पे जो आगे पहुंचे वही हिंदुओं को भूले।तुस्टिकरण भी एकजुट लोगों का ही होता है सायद। हम किसी धर्म के बिरोधी नही लेकिन खुद के धर्म की अपेक्षा भी बर्दाश्त नही। सिर्फ आपस में लड़ाने से क्या हासिल कर लोगे कुछ हिंदुओं के लिए भी करोगे तो इतिहास में याद आओगे। कश्मीर का हिन्दू धारा 370 दूर हटने का इंतजार कर रहा है देश का हिन्दू राम मन्दिर का इन्तजार।
रजनीश मिश्र कहते है कि प्रणव दा सबसे पहले हिन्दू है कांग्रेस के कार्यकर्ता बाद में लेकिन जब तक कांग्रेस में थे उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ पार्टी को आगे बढाया जब वो राष्ट्रपति बने तब उन्होंने पार्टी से ऊपर उठकर देश हित मे कार्य किये अब ना वो राष्ट्रपति है और ना कांग्रेस के कार्यकर्ता तो काँग्रेसयो से अनुरोध है कि अब तो जिश धर्म मे पैदा हुए उसको आगे बढ़ाने में क्यो रोक रहे हो प्रणव दा एक महान सख्सियत है । उनको रोकने की कोसिस मत करो नही तो 44 से 4 सीटे भी नही बचेगी ।
कृष्णा कुमार सोनी ने कहा है कि प्रणव मुखर्जी यहाँ आएंगे तो उन्हें संघ की वास्तविकता दिखेगी,यही बात कांग्रेस को पच नही रही है, उन्होंने तो संघ के बारे में भ्रमजाल फैला रखा है।
अशोक परिहार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि कतिपय कुछ लोगो की मानना है कि बीजेपी को हराना आसान है और संघ बीजेपी के कारण है, मै उन भोले लोगो पर हंसता हू कि बीजेपी संघ से है,संघ बीजेपी से नही आज संघ का कार्य संपूर्ण संसार मे छा गया,लाखो करोडो लोग संघ को मानने वाले है. जो शाखा तो नही जाते किंतु संघ का कार्य करते है. यह कारवां तो अब बढता ही जा रहा है. एक दिन भारत पुन: विश्व गुरू बन हिंदु राष्ट्र के रूप मे प्रतिष्ठित होगा.
विनोद राय अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं कि विरोधियों की नज़र में काँग्रेसी होने के नाते पूर्व राष्ट्रपति को “काँग्रेस की राष्ट्र-माता” का आदेश लेना चाहिए था संघ का निमंत्रण स्वीकार करने से पहले।
दिगंबर पाण्डेय का कहना है कि कतिपय कुछ लोगो की मानना है कि बीजेपी को हराना आसान है और संघ बीजेपी के कारण है, मै उन भोले लोगो पर हंसता हू कि बीजेपी संघ से है,संघ बीजेपी से नही. आज संघ का कार्य संपुर्ण संसार मे छा गया,लाखो करोडो लोग संघ को मानने वाले है,जो शाखा तो नही जाते किंतु संघ का कार्य करते है, यह कारवां तो अब बढता ही जा रहा है, एक दिन भारत पुन: विश्व गुरू बन हिंदु राष्ट्र के रूप मे प्रतिष्ठित होगा.
जय विलास ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि सर !आपके द्वारा व्यक्त संघ के उपरोक्त विचारों से कोई भी भारतीय असहमत नही हो सकता । भारत भूमि सदैव से विभिन्न यहां तक कि विपरीत विचार धाराओं के आदान प्रदान का राष्ट्र रहा है । भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव दा और संघ ने अपनी इस गौरवशाली राष्ट्रीय परंपरा का निर्वहन किया है। साधुवाद के पात्र हैं।