“करनाल हवाई अड्डा के लिए जमीन डायरेक्ट नहीं बेचूँगा, अधिग्रहण करो “

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करनाल के किसानों ने की चंडीगढ़ में प्रेसवार्ता : 

जमीन की डायरेक्ट खरीद नीति का किसानों ने किया विरोध

पिछले दस वर्षों से केवल कागजों में ही बन रहा है हरियाणा सरकार का यह ड्रीम प्रोजैक्ट

किसानों ने भूमि अधिग्रहण करने व मुआबजा देने की मांग की 

हरियाणा सरकार पर किसानों के साथ धोखा करने का लगाया आरोप 

 
चंडीगढ़। हरियाणा सरकार का ड्रीम प्रोजैक्ट करनाल का हवाई अड्डा पिछले दस वर्षों से केवल कागजों में ही बन रहा है। पूर्व हुड्डा सरकार भी इस योजना को केवल कागजों में ही आगे बढ़ाती रही और अब वर्तमान खट्टर सरकार के कार्यकाल का भी अंतिम वर्ष शुरू होने जा रहा है और करनाल हवाई अड्डे की योजना केवल सरकारी फाइलों में ही विस्तार हो रहा है। प्रस्तावित हवाई अड्डे के लिए जमीन देने वाले किसानों ने प्रदेश सरकार की डायरैक्ट परचेज नीति पर सवाल उठाते हुए भाजपा शासित अन्य राज्यों की तर्ज पर भूमि अधिग्रहण करने तथा मुआवजा प्रदान करने की मांग उठाई है।
 
करनाल जिले के गांव कलवेहड़ी निवासी किसान इंदरप्रीत सिंह, सुभाष खोखर, भवनीत सिंह कल्याणा, कंवलदीप सिंह, बलवान सिंह व मनोज कुमार ने आज यहां पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि शुरू में यह परियोजना जहां केवल 18 एकड़ की थी वहीं इसे वर्ष 2017 में बढ़ाकर 28 एकड़ तथा अब वर्तमान सरकार ने इसे 280 एकड़ का कर दिया है। इस मामले में पूर्व तथा वर्तमान सरकारों द्वारा प्रस्तावित हवाई अड्डा की जमीन वाले किसानों को शुरू से ही गुमराह किया जाता रहा है।
 
उन्होंने बताया कि सबसे पहले वर्ष 2008 में करनाल में हवाई अड्डे के निर्माण का ऐलान किया गया था। तत्कालीन हुड्डा सरकार के आग्रह पर तत्कालीन केंद्र सरकार ने जुलाई 2013 में करनाल हवाई अड्डे की स्टडी रिपोर्ट पर अपनी सहमति व्यक्त की। इस बीच लोकसभा चुनाव आए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करनाल में अपनी पहली जनसभा के दौरान सत्ता में आने पर करनाल में हवाई अड्डे निर्माण का ऐलान किया था। केंद्र में सरकार बदलने पर 21 जुलाई 2014 को भारत सरकार ने उड़ान योजना के तहत करनाल में हवाई अड्डा निर्माण का ऐलान कर दिया। 
 
उन्होंने बताया कि सरकार ने हवाई अड्डा की स्थापना के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तो शुरू की लेकिन किसी भी नियम का पालन नहीं किया।
किसानों ने बताया कि वर्तमान सरकार ने ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से कलवेहड़ी, नेवल व बुढाखेड़ा आदि गावों की जमीन अधिग्रहण के लिए किसानों से स्वैच्छा सहमति पत्र मांगे हैं। उन्होंने बताया कि एक तरफ सरकार हवाई अड्डे की स्थापना की बात कर रही है दूसरी तरफ ई-भूमि पोर्टल पर आज भी इसे आज भी हवाई पट्टी के विस्तार का प्रोजैक्ट दिखाया जा रहा है। अगर सरकार को हवाई पट्टी का विस्तार करना है तो उसके लिए 280 एकड़ भूमि की जरूरत नहीं है।
 
किसानों के अनुसार सरकार ने अभी तक न तो यह साफ किया है कि उसे किस उद्देश्य के लिए जमीन की जरूरत है और न ही यह बताया जा रहा है कि किसानों को उनकी जमीन का कितना मुआवजा प्रदान किया जाएगा। हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 2017 में बनाई गई डायरैक्ट परचेज़ पॉलिसी का विरोध करते हुए करनाल जिला के किसानों ने कहा कि इस योजना के माध्यम से जमीन लेने के लिए सरकार ने एग्रीकेटर तैनात किए हैं। दूसरा अगर किसान इस योजना के तहत अपनी अंडरटेकिंग देता है तो वह सरकार द्वारा तय मुआवजा लेने के लिए न केवल बाध्य होगा बल्कि उसकी कहीं अपील भी नहीं कर सकेगा।
 
किसानों के अनुसार उनके बार-बार पूछने पर भी विभागीय अधिकारियों द्वारा यह साफ नहीं किया जा रहा है कि जिस प्रोजैक्ट के लिए वह लगातार जमीन का दायरा बढ़ा रहे हैं उसका मुआवजा किस आधार पर दिया जाएगा। किसानों ने आशंका व्यक्त की कि यहां सरकार द्वारा केवल हवाई पट्टी का विस्तार किया जाएगा जबकि हवाई अड्डे के नाम पर भूमि अधिग्रहण करके इसका इस्तेमाल किसी और कार्य के लिए किया जाएगा।
 
किसानों ने एक देश, एक कर योजना तथा ग्रुरुग्राम व पलवल आदि की तरह  भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत जमीन अधिगृहित किए जाने मांग करते हुए कहा कि किसानों को जमीन देने में कोई आपत्ति नहीं है लेकिन सरकार ने आज तक सही मायने में प्रोजैक्ट का खुलासा नहीं किया। दूसरा मुआवजे की राशि के मुद्दे पर भी सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है। एक्ट की धारा 26 के अनुसार साथ लगते गावों में तीन साल के जमीन भाव की औसत निकाली जाती है। कलवेहड़ी से सटे गांव बुढाखेड़ा, छपराखेड़ा, फूसगढ़ आदि इस समय नगर निगम के अधीन हैं और इनका कलैक्टर रेट एक से डेढ करोड़ है। किसानों के अनुसार प्रदेश सरकार अगर गोवा, महाराष्ट्र व गुजरात आदि भाजपा शासित राज्यों की तर्ज पर उन्हें मुआवजा नहीं देगी तो वह इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह व गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाकात करेंगे।   
 

डायरैक्ट परचेज पॉलिसी की खामियां

 
–जिस उद्देश्य के लिए भूमि का अधिग्रहण हो और वह पूरा न हो तो भी जमीन वापस नहीं मिलती।
–भूमि देने वाले किसान परिवार के लिए एक नौकरी का प्रावधान नहीं है।
–सरकार द्वारा तय मुआवजा राशि को किसान कहीं चुनौती नहीं दे सकता।
 

क्यों जरूरी है करनाल में हवाई अड्डा ? 

 
करनाल जिले के किसानों ने बताया कि यहां पर लैदर इंडस्ट्री, कृषि उद्योग, बासमति चावल की पैदावार के अलावा भारत सरकार के एनडीआरआई, सीएसएसआरआई, डीडब्ल्यूआर, आईएआरआई जैसे राष्ट्रीय संस्थानों के अलावा करनाल तथा आसपास के इलाके के लिए बहुत से लोग विदेशों में बसे हुए हैं और उनका अक्सर अपने गावों में आना-जाना लगा रहता है। ऐसे में यहां हवाई अड्डा बनाया जाना बेहद जरूरी है। 
 

क्या है भूमि अधिग्रहण की धारा 26

 
किसानों ने बताया कि भूमि अधिग्रहण की धारा 26 के अनुसार सरकार द्वारा जब भी किसी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण किया जाता है तो किसानों को कलैक्टर रेट दिया जाता है। इसके अलावा साथ लगते गांवों की तीन साल की भूमि रेट की औसत निकाली जाती है और पड़ोसी गावों को दिए गए मुआवजे को आधार बनाया जाता है। इन तीनों में से जो भी अधिक होता है उसके आधार पर किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर लिया जाता है लेकिन करनाल हवाई अड्डा परियोजना में इनमें से किसी भी नियम का पालन नहीं किया जा रहा है।
 

हुड्डा सरकार में ही किसानों के काट दिए थे हाथ :

 
प्रभावित किसानों ने बताया कि पूर्व सरकार के समय से ही उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। हुड्डा सरकार के समय ही इस पूरे क्षेत्र को कंट्रोलड एरिया घोषित कर दिया गया था। जिसके चलते आजतक वह न तो इस जमीन को किसी और बेच सके हैं और न ही इसका कोई और इस्तेमाल नहीं कर सके हैं।
 

Suvash Chandra Choudhary

Editor-in-Chief

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