सरकार से मित्रता को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया
जूडिशयरी के कामकाज में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से जुड़े मामलों पर सुनवाई की मांग
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज जस्टिस जे चेलामेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पत्र लिखकर कहा है कि सरकार और न्यायपालिका के बीच आवश्यकता से अधिक मित्रता लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. वरिष्ठ न्यायाधीश ने केंद्र सरकार की उसके अनुचित व्यवहार और हठपूर्ण रवैये के लिए आलोचना की है.
मिडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि उक्त पत्र में जस्टिज चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा से जूडिशयरी के कामकाज में केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से जुड़े मामलों में जजों का पक्ष सुनने के लिए फुल कोर्ट बनाने की मांग की है. साथ ही उन्होंने कहा है कि कुछ जजों द्वारा रिटायरमेंट के बाद लाभ के पद पाने की कोशिश जैसे मामलों की भी सुनवाई होनी चाहिए .
खबर है कि सीजेआई को लिखे जस्टिज चेलमेश्वर के इस पत्र की प्रति सुप्रीम कोर्ट के 22 अन्य जजों को भी भेजी गई है. पिछले दिनों जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम के रिकमेंडेशन को लेकर कॉलेजियम से संपर्क करने की बजाए कानून मंत्रालय ने सीधे कर्नाटक हाईकोर्ट से संपर्क किया था. इसी को आधार बनाते हुए जस्टिस चेलामेश्वर ने लिखा कि संबंधित जुडिशियल अधिकारी को हाईकोर्ट जज के रूप में प्रमोट करने या असहमति की स्थिति में कॉलेजियम से संपर्क करने की बजाए कानून मंत्रालय ने सीधे कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस दिनेश माहेश्वरी को पत्र लिखकर उस अधिकारी के खिलाफ जांच फिर से शुरू करने के लिए कहा और जज ने उनकी बात मान भी ली.
उन्होंने लिखा है कि यह फैसला न केवल पिछली जांच के नतीजों को खारिज करता है जिसमें आधिकारी को क्लीन चिट दे दी गई थी बल्कि यह कॉलेजियम के रिकमेंडेशन को भी दरकिनार करता है. उन्होंने न्याय मंत्रालय के इशारे पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कृष्ण भट के खिलाफ शुरू की गई जांच पर भी सवाल उठाए हैं. गौरतलब है कि कालेजियम ने दो बार पदोन्नति के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी.
जस्टिस चेलामेश्वर ने लिखा है कि मुझे ऐसी कोई और घटना याद नहीं आती जिसमें सुप्रीम कोर्ट को बाइपास कर हाईकोर्ट से उन आरोपों की जांच के लिए कहा गया हो जो सुप्रीम कोर्ट की जांच में पहले ही गलत साबित हो गए हैं. ऐसा लग रहा है जैसे यह कोई अंतरविभागीय मसला हो.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जस्टिस चेलामेश्वर ने अपनी चिट्ठी में लिखा कि यदि सरकार को उक्त अधिकारी की पदोन्नति को लेकर कोई संशय या असहमति थी तो वह कॉलेजियम से रिकंसिडरेशन के लिए कह सकती थी. उन्होंने लिखा है कि हमारा दुखद अनुभव यह है कि ऐसा बहुत कम होता है जब सरकार हमारे सुझाव मानती है.
संकेत है कि इस मामले में सीजेआई दीपक मिश्रा ने कोई जवाब नहीं दिया है.
हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति के अलावा सुप्रीम कोर्ट के लिये सुझाए गए दो जजों के नामों पर केंद्र सरकार ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. इनमें से एक जस्टिस के एम जोसेफ हैं. उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन की निंदा की थी और केंद्र सरकार के हिसाब से शासन चलाने को लेकर राज्यपाल की आलोचना की थी.