हमारी लड़ाई युवा वकीलों के मान-सम्मान की लड़ाई है : अजय चौधरी ,एडवोकेट

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जिला बार एसोसिएशन गुरुग्राम के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार अजय चौधरी से ख़ास बातचीत 

आगामी 6 अप्रेल को होगा मतदान 

एसोसिएशन की भूमिका को सक्रीय बनाने का किया दावा

युवा वकीलों को काम का माहौल उपलब्ध करवाना प्राथमिकता 

उम्मीदवारों के बीच खुली बहस का हूँ पक्षधर 

8 साल पहले सचिव के रूप में भी संघर्षरत रहता था

हमारी लड़ाई युवा वकीलों के मान-सम्मान की लड़ाई है : अजय चौधरी ,एडवोकेट 2गुरुग्राम । जिला बार एसोसिएशन गुरुग्राम के चुनाव के लिए आगामी 6 अप्रेल को मतदान होगा. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव के लिए कई प्रत्याशी मैदान में हैं और अपने चुनाव प्रचार को पिछले एक माह से जारी रखे हुए हैं. क्योंकि यह चुनाव पूर्व में मार्च में ही होने की संभावना थी इसलिए पोस्टरबाजी और मतदाताओं से मिलने की गतिविधियाँ काफी पहले से शुरू हो गयी थी. मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ ही उम्मीदवारों के समर्थक चुनाव प्रचार में लग गए हैं. उम्मीदवार कर अलग अलग गुट के वकीलों से बैठकें रहे हैं. बार एसोसिएशन में पंजीकृत लगभग 5 हजार वकीलों तक पहुँचने और उन्हें अपने पक्ष में वोट डालने के लिए गोलबंद करने की प्रतिस्पर्धा तेज हो चली है. प्रति वर्ष होने वाले इस महत्वपूर्ण चुनाव में इस बार युवा अधिवक्ताओं को अपनी ओर रिझाने की कोशिश हो रही है. उम्मीदवारों के व्यक्तित्व और ख़ास मुद्दे वकीलों की टेबल पर चर्चा के विषय बने गए हैं. कुछ उम्मीदवार इस चुनाव में जाति व समुदाय के आधार पर वोट मांग रहे हैं जबकि कई वकील, एसोसिएशन की भूमिका को सक्रीय देखना चाहते हैं. 

न्यायिक दुनिया की प्रतिष्ठा से जुड़े इस चुनाव में बहस का विषय बन चुके विभिन्न मुद्दों व परिस्थितियों पर  thepublicworld.com न्यूज पोर्टल के चीफ एडिटर सुभाष चौधरी से ख़ास बातचीत में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष पद के सशक्त उम्मीदवार व वरिष्ठ वकील अजय चौधरी  ने बार से सम्बंधित उन सभी सवालों का बेबाकी से जवाब दिया जो इस चुनाव में हावी रहने वाले हैं . प्रस्तुत है उनसे बातचीत का विस्तृत व्योरा :  

प्रश्न : अजय चौधरी, आपको वकालत करते हुए कितने साल हो गए , वह कौन सी परिस्थितियां रहीं जिन्होंने आपको जिला बार एसोसिएशन गुरुग्राम के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने को प्रेरित किया ?

अजय चौधरी :  मुझे लगभग 19 वर्ष हो चुके हैं , जिला अदालत में आने वाले युवा अधिवक्ताओं को सबसे अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सीनियर लोग तो प्रोफेशन में स्थापित हो चुके हैं और वे अपनी समस्या निपटाने में सक्षम भी हैं। युवाओं को मान सम्मान और बेंच की ओर से अपेक्षित तवज्जो दिलाना मेरी प्राथमिकता है। उन्हें स्वयं को प्रोफेशन में स्थापित होने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन बेंच में सीनियर को तवज्जो दी जाती है और जूनियर को नहीं। ऐसे में जूनियर वकील को किसी भी काम के लिए अपने क्लाइंट के सामने झेंपना पड़ता है। कहीं न कहीं क्लाइंट को यह महसूस होता है कि उनका वकील अपेक्षाकृत मजबूत नहीं है और उनकी लड़ाई ठीक से नहीं लड़ पाएंगे। यह स्थिति उनके प्रोफेशनल फ्यूचर के लिए सही नहीं है. इसके साथ कई और महत्वपूर्ण विषय हैं जिनको लेकर मैं चुनाव लड़ने को प्रेरित हुआ और उम्मीद है कि मुझे युवा साथियों का भरपूर साथ मिलेगा।हमारी लड़ाई युवा वकीलों के मान-सम्मान की लड़ाई है : अजय चौधरी ,एडवोकेट 3

 

प्रश्न : आपकी बातचीत से ऐसा लगता है कि इस मामले में पूर्व में बार एसोसिएशन की भूमिका प्रभावी नहीं रही , क्या युवा वकीलों को सकारात्मक माहौल नहीं मिलता है ?

अजय चौधरी :  बार की भूमिका बेंच के साथ सामंजस्य स्थापित करने में अहम रहती है लेकिन इस दिशा में आशा के अनुरूप काम नही हुए हैं। मैं जब बार एसोसिएशन का सचिव था तब अपनी क्षमता के अनुरूप स्थिति में सुधार लाने की कोशिश की। मैं सोचता हूँ कि मैने लगभग दो दशक की वकालत में जिन कठिनाइयों का सामना किया है वह जूनियर्स को फेस नहीं करनी पड़े। हमारी लड़ाई युवा वकीलों के मान-सम्मान की लड़ाई है। मेरी सोच है कि जुडिशियल रूम में बेंच की ओर से एक युवा अधिवक्ता को भी वही तवज्जो मिले जो सीनियर्स को मिलती है। प्रत्येक प्रोफेशन में ऐसी परंपरा देखी जाती है कि सीनियर्स अपने जूनियर्स के लिए सकारात्मक माहौल मुहैया कराते हैं जिसका यहाँ अभाव दिखता है. इस दृष्टि से हम एक उदाहरण सेट करना चाहते हैं .    

 

प्रश्न : जिला अदालत गुडगाँव में वकीलों के बैठने की व्यवस्था को लेकर भी समस्या रहती है, इसके निराकरण की दिशा में आपका क्या कहना है ? समाज के हर वर्ग को व्यवस्था दिलाने वाले प्रोफेशन के लोग क्यों इस अव्यवस्था या असुविधा के शिकार हैं ?

अजय चौधरी : वकीलों के लिए आवश्यक सुविधाए एवं बैठने की पर्याप्त व सुविधजनक व्यवस्था नहीं होना हमारे लिए यह दूसरी सबसे बड़ी चिंता का विषय है . यह समस्या लंबे अर्से से बनी हुई है। आखिर कब तक एक जूनियर साथी सीनियर की सीट पर बैठ कर काम करता रहेगा ? या फिर सीनियर को कब तक इंतजार करना पड़ेगा कि कब यह जूनियर सीट से उठेगा ? अपने सीनियर्स पर बोझ बने रहने की इस मजबूरी से युवा वकीलों को उबारना हमारे प्रयास का अहम् हिस्सा होगा। यह स्थिति ठीक नही। इससे उन्हें काम का माहौल नहीं मिल पाता है। हमने सचिव के रूप में इस मसले पर काम करने की कोशिश की थी जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। इस बार अगर सभी साथियों का साथ मिला तो शतप्रतिशत वकीलों के बैठने की व्यवस्था का खाका तैयार करेंगे और आवश्यक फोरम पर दमदार तरीके से इस मसले को रखेंगे। उन्हें काम का माहौल मुहैया कराना हमारी प्राथमिकता की सूचि में है.  

प्रश्न : यहाँ पंजीकृत अधिवक्ता एवं बैठने की उपलब्ध व्यवस्था के बीच कितना अंतर है ?

हमारी लड़ाई युवा वकीलों के मान-सम्मान की लड़ाई है : अजय चौधरी ,एडवोकेट 4अजय चौधरी : यहां पंजीकृत या प्रैक्टिस में वकीलों की संख्या और बैठने की उपलब्ध सुविधा के बीच काफी बड़ा अंतर है। गुरुग्राम में वर्तमान में बार में पंजीकृत वकीलों की संख्या 5000 के आस पास है जबकि वोटिंग राइट्स 2712 सदस्यों के पास है. अगर बैठने की जगह में चैम्बर्स की बात करें तो लगभग 165 चैम्बर्स सी ब्लोक में , बी और ए ब्लोक्स में भी सौ चैम्बर्स हैं जबकि 300 पोटा केबिन हैं. कुल मिला कर बैठने की जगह केवल 500 के आसपास है जबकि हमारे साथियों की स्ट्रेंथ 5000 है. बाकी लोगों को हाल्स में एडजस्ट किया गया है लेकिन यह स्थिति काम का माहौल नहीं देती. अपने घरों से लोग यहाँ एक ऐसे प्रोफेशन को अंजाम देने के लिए आते हैं जो बेहद महत्वपूर्ण है लेकिन यह काम करने का माहौल नहीं है. अधिकतर अधिवक्ता असुविधा जनक स्थिति में बैठ रहे हैं. कभी कभी उन्हें अपने प्रोफेशन की दृष्टि से क्लाइंट के साथ बातचीत की गोपनीयता बनाए रखने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. भीषण गर्मी के दिन हों या कड़ाके की सर्दी, उन्हें विषम हालात में काम करना पड़ता है. पोटा केबिन बनने से थोडा सुधार आया और इससे वकीलों की फीस के स्टैण्डर्ड में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. हमें क्लाइंट की सुविधाओं का भी खयाल करना पड़ता है जो प्रोफेशनल आवश्यकत भी है. हमारी कोशिश होगी कि लगभग 400 से 500 की संख्या में आये नए साथियों को भी बैठने की समुचित जहग मिले. वे सभी अपनी जगह का नाम दे सकें की मैं यहाँ बैठता हूँ और अपनी जगह से अपना काम आरम्भ कर सकें.

प्रश्न : आप लोग अधिवक्ताओं की विभिन्न समस्याओं को बार की बैठक में क्यों नहीं उजागर करते हैं ? क्या सीनियर्स भी इस मद में नहीं बोलते हैं ? आठ वर्ष पूर्व आप भी बार के सचिव थे, तब और अब में क्या अंतर है जिसे आप अध्यक्ष बन कर सुधारना चाहते हैं ?

अजय चौधरी : मुझे यह याद नहीं कि पिछले दो वर्षों के दौरान, बार की जनरल बॉडी की कोई बैठक हुई हो. जब बैठक ही नहीं होती फिर चर्चा और निराकरण का सवाल ही कहाँ उठता है ? यह सही है कि अधिवक्ताओं के वेलफेयर के विषय पिछले वर्षों में गौण रहे हैं. 8 साल पहले मैं सचिव के रूप में संघर्षरत रहता था और अब बहुत सारे साथियों की मांग थी कि मैं अध्यक्ष पद का चुनाव लडूं इसलिए मैं उनकी आवाज बनने के लिए सामने आया हूँ. निवर्तमान सचिव ने अच्छा काम किया है. उनकी अपनी सीमा थी, सीटिंग को लेकर उनके कार्यकाल में अच्छे काम हुए हैं.  

प्रश्न : वकीलों के वेलफेयर के विषयों को लेकर सीनियर्स क्यों चुप रहते हैं ?

अजय चौधरी  : देखिये, सीनियर्स के पास इतने काम हैं कि उन्हें इस दिशा में सोचने की न तो फुर्सत है और न ही यह उनकी आवश्यकता है . वे सभी अपनी दुनिया में व्यस्त हैं क्योंकि जूनियर्स की आवश्यकता उनसे अलग हैं.

प्रश्न : अदालत परिसर के ठीक सामने टावर ऑफ़ जस्टिस का निर्माण हो रहा है. क्या इसमें बनने वाले केबिन से वकीलों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जायेगी ? इसमें चैम्बर्स के आवंटन को लेकर क्या स्थिति है?

अजय चौधरी : मुझे यह उम्मीद है कि टावर ऑफ़ जस्टिस में पर्याप्त केबिन की व्यवस्था होगी. लेकिन इस सम्बन्ध में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है. इसमें कितने केबिन बनेंगे इसको लेकर आशंका बरकरार है. बार को इसकी जानकारी नहीं है. संभव है कि बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ बिल्डिंग कमिटी के लोगों की बैठक हुई होगी. बताया गया है कि बिल्डिंग कमिटी की ओर से उसमें 500 चैम्बर्स की जगह हमें देने पर सहमती बनी है लेकिन उसमें केवल एक हजार सदस्य ही बैठ पायेंगे जबकि हमारी आवश्यकता 5000 की है. हालांकि हाई कोर्ट को इसकी पूरी जानकारी है लेकिन बार से हमारी स्ट्रेंथ की जानकारी मांगी गयी है. हमें इसका पूरा खाका तैयार करना होगा कि कितनी आवश्यकता है.

प्रश्न : क्या चैम्बर्स आवंटन को लेकर बार एसोसिएशन के पास कोई सेट फ़ॉर्मूला नहीं है ? यह विवाद क्यों है ?

अजय चौधरी : यह निर्भर करता है कि बार एसोसिएशन इस नीति को सदस्यों के साथ शेयर करने या उनके सुझाव सुनने को कितनी इच्छुक है. जब आप को पता हो कि आपकी आवश्यकता क्या है तभी इसे सिरे चढ़ाना संभव है. रही बात नीति तैयार करने की तो अभी बार के  अध्यक्ष और सचिव तक ही ये सारी बातें सीमित रहती हैं . एग्जीक्यूटिव बॉडी के समक्ष भी इस प्रकार का कोई प्रपोजल डिस्कशन के लिए कभी आया हो ऐसी मेरी जानकारी में नहीं है. हाँ , सचिव की ओर से ऐसा कहा गया था कि चैम्बर्स के आवंटन का प्रस्ताव है उसके लिए सभी अपने सुझाव दें लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि कितने चैम्बर्स हैं और किन लोगों को यह आवंटन किये जाने हैं .

प्रश्न : अदालत परिसर की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. पिछले वर्षों में कई घटनाएँ भी हुईं . आप अगर अध्यक्ष चुने जाते हैं तो सुरक्षा की दृष्टि से आपके एजेंडे में क्या कदम उठाया जाना ?

अजय चौधरी : वैसे तो निवर्तमान बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व सचिव की ओर से इस दिशा में अहम् कदम उठाये गए हैं. उनकी नियमित तौर पर गुरुग्राम पुलिस आयुक्त के साथ बैठकें होती रहीं है. सुरक्षा के लिहाज से सभी गेट पर पुलिस की व्यवस्था है. साथ ही और आवश्यक कदम उठाये गए हैं. यह सुखद बात है कि काफी समय से ऐसी कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है. यह कहना सही होगा कि सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त है .

प्रश्न : महिला अधिवक्ताओं की चिंता उनकी सुरक्षा को लेकर रही है. क्या उनके लिए कुछ ख़ास दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है ? इस चुनाव में महिला अधिवक्ताओं की भूमिका के बारे में क्या कहना है ?

अजय चौधरी : यहाँ लगभग 500 महिला अधिवक्ता पंजीकृत हैं. लगभग 332 महिला अधिवक्ता इस चुनाव में वोट करने वाली हैं. उन्होंने मेरा काम करने का तरीका देखा है. वे सभी मेरे व्यवहार से परिचित हैं. मुझे उम्मीद है उनका समर्थन हमें मिलेगा. जहाँ तक उनके लिए अलग बार रूम की वयवस्था, अन्य प्रसाधन और सुविधाओं की बात है हमने अपने कार्यकाल में किया था और मेरे बाद कुलभूषण भारद्वाज जब अध्यक्ष बने तो उन्होंने भी इस दिशा में काम किया था. हम हमेशा महिला अधिवक्ताओं द्वारा उठाये गए विषयों में उनके साथ खड़े रहे हैं .

प्रश्न : बार के काम को मॉडर्न फैसिलिटी से लैस करने का मुद्दा भी है , क्या इस मद में काम हुए हैं ?

अजय चौधरी : हाँ इस मामले में हम कह सकते हैं कि पिछले वर्ष में इस पर काम किया गया है. निवर्तमान सचिव ने ऑनलाइन व्यवस्था को सुचारू बनाने और ई लाइब्रेरी की सुविधा को दुरुस्त करने के लिए अच्छा काम किया है. इस मामले में वे हमसे आगे हैं. अगर मौका मिला तो मैं उसी कड़ी को आगे बढ़ाऊंगा .

प्रश्न : अदालत के काम काज को पपेरलेस करने की बात की जाती है. देश की अन्य अदालतों में इस पर काम हो रहे हैं. इस मद में किस स्थिति में है गुरुग्राम ?

अजय चौधरी :  मुझे लगता है कि ऑनलाइन व्यवस्था अभी जुडिसियल ऑफिसर्स तक सीमित है. आर्डर की कापी, केस स्टेटस आदि की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है. उम्मीद है कि इसका और विस्तार जल्द होगा. बार एसोसिएशन के कामकाज पेपर लेस करने के लिए प्रयास  किये गए हैं. अब बार का डेटा ऑनलाइन है. सभी सदस्यों का डेटा भी सॉफ्ट फॉर्म में है. उम्मीदवारों के लिए यह सुखद बात है अन्यथा पेपर पर निर्भर रहना पड़ता था .

प्रश्न : कोर्ट फीस समय पर उपलब्ध नहीं होना और स्टाम्प पेपर की कमी की शिकायतें भी सुनने को मिलतीं हैं. इससे वकीलों के काम पर असर पड़ता है ? क्या कहना है आपका ?

अजय चौधरी : हाँ यह समस्या भी है. इसको लेकर हमने डीसी से मुलाक़ात की थी और एसोसिएशन ने भी बात की थी. डीसी ने कुछ वेंडर्स नियुक्त करने का आश्वासन दिया है. हमारी कोशिश होगी कि यह समस्या जल्द सुलझे. इसके साथ ही हमने यह भी सोचा है कि उसमें वेलफेयर स्टाम्प भी लगाएं. इस फण्ड का उपयोग जूनियर लॉइयर के लिए किया जायेगा.

प्रश्न : अजय जी, ऐसा देखा जाता है कि अदालत परिसर में बेंच और बार ( वकील ) यही दो ऑलमाइटी होते हैं . तीसरा पक्ष जो सामान्य व्यक्ति है वह गौण होते हैं . अलग अलग पृष्ठभूमि के लोग यहाँ आते हैं. उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो जरूरी नहीं कि आपराधिक मामले में संलिप्त हों, अपने क्लेम या फिर अन्य प्रकार के अपने अधिकार सम्बन्धी मामले के लिए यहाँ आते हैं लेकिन उनके साथ दोयम दर्जे के नागरिक की तरह का व्यवहार यहाँ होता है. ऐसा क्यों ? जिन सामान्य जनों के विना पर ही यहाँ सब कुछ चलता है क्या उनके लिए कुछ आपकी झोली में है ?

अजय चौधरी : आपने बेहद उम्दा सवाल किया है. हमने यह जान कर अच्छा लगा कि उस दिशा में भी लोग अब सोचने लगे हैं. मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि यहाँ अदालत परिसर के निर्माण के दौरान सबसे पहले लिटीगेंट्स हाल बनाए गए जबकि वकीलों के बैठने के लिए कोई व्यवस्था नहीं. ये हाल्स केवल उन सामान्य जनों के लिए ही बनाए गए थे. यहाँ गरीब लोगों के लिए फ्री लीगल सर्विस मुहैया कराने के लिए कई सेल गठित हैं. अलग अलग राजनीतिक दलों के लीगल सेल भी यहाँ कार्यरत हैं. इस मामले पर हम संवेदनशील हैं और किसी भी प्रकार की कठिनाई के लिए बार एसोसिएशन मददगार है. क्लाइंट हामरे लिए सम्माननीय हैं.  

प्रश्न : यह प्रोफेशन समाज के लिए दिशा निर्देशित करने वाला है. यह टॉप इंटेलेक्चुअल क्लास है. इनके चुनाव के लिए अपने एजेंडे पर उम्मीदवारों के बीच खुली बहस की परम्परा क्यों नहीं है ? क्या प्रत्याशी बहस से कतराते हैं ? क्या आप प्रत्याशियों के बीच खुली बहस करने के पक्षधर हैं ?

अजय चौधरी : मैं दिल से चाहता हूँ इस चुनाव में जितने भी प्रत्याशी अलग अलग पदों के लिए लड़ रहे हैं उन्हें  बार के सामने अपने विचार रखने का मौका मिलना चाहिए. उन्हें अपनी बात खुले तौर पर रखनी चाहिये जिससे सदस्यों को उनके व्यक्तित्व व काम काज की शैली का सही अंदाजा लग सके और उनका निर्णय सटीक व मजबूत उम्मीदवार के पक्ष में हो सके. मैं चाहता हूँ कि कोई भी चुनाव जात-पात आधारित नहीं बल्कि मुद्दों व काम करने की दक्षता पर आधारित हो. अगर मैं उनके काबिल हूँ तो हमें वोट करें. मेरा तो वायदा है कि मैं साथियों के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहने वाला हूँ. वैसे तो सभी अधिवक्ता सक्षम हैं लेकिन समस्या के समय उनका लीडर कंधे से कन्धा मिला कर साथ चले यह उम्मीद की जाती है. मेरे पास खुली बहस के लिए सचिव की ओर से प्रस्ताव आया था. मैंने इसका समर्थन करते हुए उनसे कहा था कि अगर ऐसा होता है तो यह एक अच्छी शुरुआत होगी. बार मेम्बर्स को अपने अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी चुनने में आसानी होगी.

प्रश्न : आपने चुनाव में जात-पात के आधार की ओर इशारा किया. क्या गुरुग्राम जिला बार एसोसिएशन के चुनाव में भी जात-पांत का फैक्टर हावी रहता है ?

अजय चौधरी : देखिये मैं जब सचिव का चुनाव लड़ा था तब हमारे सामने प्रतिद्वंद्वी के रूप में एक प्रत्याशी जाट समुदाय से थे जबकि दूसरे यादव समुदाय से लेकिन हमें सभी समुदायों के सदस्यों का जबरदस्त समर्थन मिला था. इसलिए मेरे लिए यह कोई विषय नहीं है क्योंकि मैं इससे ऊपर उठ कर करता रहा हूँ. मुझे उम्मीद है कि बार के सभी सम्मानित सदस्य हमें इस बार अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने में भरपूर सहयोग देंगे.  

   

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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