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खास बडी खबर
: ना बारिश, ना नहरों में पानी और जमीनी पानी है खारी, किसान करे तो क्या करे
: पानी के बगैर किसानों की फसल सूखने के कगार पर पहुंच गई है
यूनुस अलवी
मेवात : इस आधुनिक युग मेंं किसी ने सोचा या सुना भी नहीं होगा कि क्या किसान अपने बच्चों का पेट पालने के लिये अपने खेतों कि सिंचाई पानी के टेंकरों से करते होगें। यह सच है: मेवात जिला के खण्ड नगीना के दो दर्जन गांवों के किसानों को करीब 700-700 रूपये के करीब 15 टेंकर पानी खरीदकर अपने खेतों की सिंचाई करनी पड रही है। किसानों ने नहरी पानी और बरसात की आस में फसल कि बिजाई तो कर दी लेकिन इस बार ना तो बारिश ही हुई और ना ही समय पर नहरी पानी ही आया जिसकी वजह से किसानों की फसल सूखने के कगार पर पहुंच गई है। पैसे वाले किसान तो टेंकरों से खरीदकर अपने खेतों की सिंचाई कर लेते हैं लेकिन गरीब किसान सिंचाई भी नहीं कर सकता। एक एकड खेत पर करीब 20 हजार की लागत आती है जिसमें करीब 12 हजार रूपये तो सिंचाई पर खर्च हो जाते हैं।
किसान शकील उमरी, राशिद खुसपुरी और साहनू खुसपुरी ने बताया कि मेवात जिला के खण्ड नगीना के गांव उमरी, सुखपुरी, खुसपुरी, बदरपुर, सुल्तानपुर, बुखारा, बनारसी, नागल, अकलीमपुर, जेताका, मढ़ी, राजाका, शादीपुर, सहित एक दर्जन गावों में न तो नहर हैं और न ही पीने के पानी यहां के किसान केवल बरसात के पानी पर ही निर्भर रहते हैं। बारिश अच्छी हो जाती है तो फसल भी अच्छी हो जाती है, नहीं तो किसानों कि बिजाई का खर्चा भी निकल नहीं पाता है। अपनेे बच्चों का पेट पालने के लिये किसानों को मजबूर होकर करीब 700 रूपये का पानी का एक टेंकर के हिसाब से एक एकड में करीब 15 से 18 टेंकर खरीद कर खेतों की कि सिंचाई पर खर्च करने पडते हैं।
किसान हलीम, महताब, मुबीन, जमालुदीन, इकबाल, बशीर अहमद, जान मोहम्मद और असगर का कहना है कि उनके गांवों में करीब पांच सौं फीट नीचे तक खारा पानी है, जिसके इस्तेमाल से फसल पैदा होने की बजाये खराब हो जाती है। उनके इलाके में कोई नहर नहीं हैं। खेतों के सिंचाई की बात तो दूर पीने का पानी भी नसीब नहीं हैं। ग्रामीण टेंकरों से खरीद कर पानी-पीते हैं।
किसान शराब खां, सल्लम और तौफीक ने बताया कि गांव उमरी, सुखपुरी, रीठट, नरयाला, खुसपुरी, बनारसी, बदरपुर, उमरा, नांगल सुल्तानपुर आदि गावों में बनारसी डिस्ट्रिीब्यूटरी नाले से सिंचाई होती है। इसमें काफी समय से पानी नहीं आ रहा है जिसकी वजह से उनको भी टेंकरों से सिंचाई करनी पड रही है।