फूड इंस्पेक्टर का पिता निकला एक दर्जन लूट के गैंग का सरगना !

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पंचकूला । यह जान कर किसी को भी झटका लग सकता है कि जिसका बेटा फूड इंस्पेक्टर और बेटी रिसर्च स्कॉलर हो उस पिता को आखिर हथियार के बल पर लूट की वारदात को अंजाम देने की लत आखिर क्यों पड़ी ? वह कौन सी मजबूरी है थी जिससे यह एक दर्जन लूट की घटनाओं को अंजाम को देने बाद भी इस काले कारनामे से स्वयं को अलग नहीं कर सका। आश्चर्यजनक बात यह है कि यह व्यक्ति उस गैंग का सरदार था और एक ही कर का नंबर बदल बदल कर लूट को अंजाम देता था। 

जी हां यह सौ फीसदी सच है कि अपने बेटे की गजटेड नौकरी लगने और बेटी के पीएचडी के स्तर तक पहुंचने के बाद भी सतपाल नाम का व्यक्ति अपनी बुरी लत को छोड़ नहीं पाया। इसने फायरिंग कर दहशत फैलाना और लूट को अंजाम देना अपनी नियमित दिनचर्या बना ली थी। 

2006 से पंचकूला पुलिस के लिए सरदर्द बना जैन गैंग का सरगना सतपाल का बेटा पंजाब में फ़ूड इंस्पेक्टर है।इसे लूटने का शौक लग गया था। सबसे बड़ी बात यह थी कि इस गैंग में तीन सदस्य सगे भाई थे। इनमे से सतपाल तो पुलिस के हत्थे चढ़ गया लेकिन इकबाल की 10 माह पूर्व हार्ट अटैक में डेथ हो गयी थी जबकि तीसरे भाई हरजीत ने डेढ़ वर्ष पूर्व आत्महत्या कर ली थी।हरजीत का बेटा ड्रग्स का आदि हो गया था। चौथा सदस्य सुखजीत सतपाल का साथी है उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। 

सेक्टर 26 क्राइम ब्रांच पंचकूला के इंस्पेक्टर सूरज के अनुसार दोनो को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया और दोनों अब पुलिस रिमांड पर हैं। उनसे पूछताछ में पता चला है कि यह गैंग अब तक लूट की 12 वारदातों को अनाम दे चुका है।

पुलिस की जांच जारी है। उम्मीद है कि कुछ और मामलों से पर्दा उठेगा।इनके लूटने के तरीके बेहद चौकाने वाले थे। पुलिस की जांच में पता चला है कि सुखजीत सूट बूट पहन कर बैंक में जाता था । कीमती बैग कंधे पर और मोबाइल कान पर लगा कर बात करने की ढोंग रचता था जबकि मोबाइल बैंड होता था। वह गैंग के लिए भेदिया का काम करता था । उसकी नजर बैंक में उस व्यक्ति पर रहती थी जो सबसे अधिक केश लेकर निकलता था। जैसे ही वह व्यक्ति पैसे लेकर निकलता था सतपाल और अन्य भाई उसके पीछे गाड़ी लगा देता था और मौका पाते ही हथियार के बल पर उसे रोक कर फायरिंग करता था और लूट कर भाग जाता था। 

पुलिस की जांच में उसने बताया है कि घटना के दौरान कई बार व्यक्ति घायल भी हो गया था और एक कि मौत भी हो गयी थी। 

अपनी व गाड़ी की पहचान छुपाने के लिए सतपाल हर बार किसी अन्य गाड़ी का नंबर प्लेट बनवा लेता था। यह काम केवल 300 रु में हो जाता था और हर बार सड़क पर चलती किसी गाड़ी का नंबर याद कर वही नंबर प्लेट बनवा लेता था लेकिन उसके पास गाड़ी केवल एक जैन थी। चकमा देने के लिए वह कई बार स्कूटर और मोटरसीयकल का भी नंबर प्लेट बनव लेता था। कई बार ट्रक का नंबर भी होता था जिसकी पुष्टि जांच में भी हुई। 

गैंग के दूसरे सदस्य दाढ़ी को रुमाल से बांध कर टोपी पकहँ कर आते थे जिससे पहचान नहीं सके। 

इस गैंग ने लूट का माल बाटने के अड्डा मानी माजरा के सरकारी अस्पताल को बना लिया था। हर बार इसी जगह जमा होकर योजना भी बनाता था। 

बताया जाता है कि गैंग का सरगना सतपाल का भाई अमृतसर में रहता था लेकिन खुद यह चंडीगढ़ मेंराहत था जहां उसने एक मकान पर जबरन कब्जा कर लिया था। इनमे सुखजीत ,इकबाल और हरजीत अक्सर अमृतसर चले जाते थे और सतपाल चंडीगढ़ रुक जाता था। 

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