असंगठित मजदूर भारतीय अर्थ व्यवस्था की रीढ़

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यूनुस अलवी

मेवात 

जिला विधिक सेवाएँ प्राधिकरण द्वारा मेवात कारवां के सहयोग से पुन्हाना के टेड गाँव में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए क़ानूनी जागरूकता एवं सहायता कार्यक्रम का आयोजन किया गया! कार्यक्रम का उद्घाटन जिला विधिक सेवाएँ प्राधिकरण के सचिव सह मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी श्री नरेन्द्र सिंह द्वारा किया गया! कार्यक्रममें मुख्य अतिथि जिला सत्र न्यायधीश सर्वश्री अरुण कुमार सिंघल ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगो को देश में मजदूरों कि स्थिति तथा संविधान द्वारा पप्रदान किये गये अधिकारों की व्याख्या करते हुए मजदूरों के कल्याण के लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।

    सिंघल ने कहा “भारतीय अर्थ व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता यह है कि कामगारों की एक बहुत बड़ी संख्या असंगठित क्षेत्र  में काम कर रही है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2007-2008 एवं 2009-2010 के नेशनल सैंपल सर्वे अनओर्गेनाइज्ड सेक्टर ने अनुमान लगाया है कि कुल कामगारों का 93-94% असंगठित क्षेत्र  में कार्य कर रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भागीदारी 50% से अधिक  है। असंगठित कामगारों की अधिक संख्या  (लगभग 52 प्रतिशत) कृषि क्षेत्र  में कार्य कर रही है, दूसरे बड़े क्षेत्र  में निर्माण, लघु उद्योग, ठेकेदारों द्वारा बड़े उद्योगों में नियोजित कामगार,घरेलू कामगार, ऐसे कामगार जो जंगलों की पैदावार पर निर्भर हैं, मछली पालन एवं स्वतः रोजगार जैसे रिक्शा खींचना, आटो चलाना, कुली आदि शामिल हैं।

असंगठित क्षेत्र की खास बात यह है कि वहां ज्यादातर श्रम कानून लागू नहीं होते है। इसमें काम करने वालों की दशा दयनीय है। न वे सुनिश्चित रोजगार पाते हैं, न उनको सही वेतन मिलता है और न ही उन्हें कोई कल्याणकारी सुविधाएँ  उपलब्ध  होती हैं। इस क्षेत्र  में रोजगार हमेशा नहीं होता एवं इसलिए काम की कोई गारंटी नहीं होती।

वह एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं क्योंकि काम की स्थिरता नहीं होती एवं अक्सर उनके बच्चों की पढाई भी छूट जाती है। शहरों में वह झुग्गी में रहते हैं जहां घर एवं शौच का प्रबंध  नहीं होता है। स्वास्थ्य सेवा एवं प्रसूति लाभ जो संगठित क्षेत्र  में उपलब्ध  हैं उनके लिए नहीं हैं। कर्मकार प्रतिकर अधिनियम 1923, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948, प्रसूति प्रसुविधा  अधिनियम 1961, औद्योगिक उपवाद अधिनियम 1947, उपदानसंदाय अधिनियम  1972, कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952 आदि में अधिनियमित  विधियाँ वृद्धावस्था, स्वास्थ्य सेवा एवं सहायता, मृत्यु विवाह तथा दुर्घटना आदि की दशा में भी इन पर लागू नहीं होतीं। इन सारे तथ्यों का मतलब है कि आम तौर से शोषित जीवन जीने के लिए ये मजबूर हो जाते है।“ 

 

श्री नरेन्द्र सिंह ने कहा कि नालसा द्वारा मजदूरों के हित और उनकी भूमिका का सम्मान करते हुए विशेष तौर पर श्रमिकों के लिए विधिक सेवाऐं योजना, 2015 शुरू कि ताकि अगर मजदूर अपने हक कि लडाई में स्वय को ज़रा भी कमज़ोर पायें तो अविलम्ब जिले में स्थित विधिक सेवाएँ प्राधिकरण अथवा उनके स्वय्सेवाको से संपर्क करके अपने अधिकारों को सुनिश्चित करें! 

उन्होंने कहा कि असंगठित कामगारों के सभी वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार ने प्रभावशाली कानून असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के नाम से लागू किया है। भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 तथा असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अंतर्गत कर्मकारों के हितों के लिए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के समुचित प्रचार की आवश्यकता है। श्री सिंह ने कि मजदूरों के जीवन में आवश्यक सुधार के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं युवाओं से आह्वान किया! कार्यक्रम में १५० मजदूरों को लेबर कार्ड देकर उन्हें योजनाओ के उपयोग कि विधियाँ भी बताई गयी! 

कार्यकर्म में मेवात कारवां के ज़फ्रुद्दीन बगोडीया रफ़ीक हथोडी, अब्बास चेयरमैन, लुकमान, आज़ाद बगोडीया, डाक्टर अशफाक आलम, मुबीन टेड, अहमद अब्बास रहीश पल्ला एवं इम्पावर पिपुल के सलीम खां मौजूद रहे

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