निजता का अधिकार संविधान प्रदत्त एक मौलिक अधिकार : उच्चतम न्यायालय

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नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने दिया ऐतिहासिक फैसला 

नई दिल्ली : मीडिया की खबरों के अनुसार  देश के उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को दिए अपना फैसले में निजता के अधिकार को भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया. प्रधान न्यायाधीश जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों के अंतर्गत ही निजता का अधिकार प्राकृतिक रूप से समाहित है. प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस गंभीर विषय पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी. पीठ के समक्ष विषय था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान में प्रदत्त एक मौलिक अधिकार माना जा सकता है ? इसकी सुनवाई गत दो अगस्त को पूरी हुई थी और देश को सर्वोच्च अदालत के अहम् फैसले का इन्तजार था.

 

उल्लेखनीय है कि संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आर के अग्रवाल, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति ए एम सप्रे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. सभी न्यायाधीशों की इस मामले में एक राय थी और सभी ने एक समान विचार व्यक्त किए.

 

छह दिन चली सुनवाई के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विपक्ष दोनीं में जबरदस्त बहस चली. दोनों ही प्रकार की दलीलें कोर्ट के समक्ष आईं और गुरुवार को सविधान पीठ ने अपना फैसला सुना दिया.

 

मीडिया की खबरों के अनुसार सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार, कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमणियम, श्याम दीवान, आनंद ग्रोवर, सी ए सुंदरम और राकेश द्विवेदी ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने के पक्ष और विपक्ष में अपनी अपनी दलीलें दीं.

सुनवाई के आरम्भ में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही निर्णय करना चाहिए और प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिए कदम उठाएंगे. इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश के समक्ष यह विषय आने पर उन्होंने मामले की सुनवाई के लिये पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया था.

 

फिर पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने के लिये नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी. इसके बाद अदालत ने छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा खडक सिंह और एम पी शर्मा प्रकरण में दिए गए निर्णयों की विवेचना के लिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का निर्णय किया था. गौरतलब है कि इन फैसलों में कहा गया था कि यह मौलिक अधिकार नहीं है. खडक सिंह प्रकरण में न्यायालय ने 1960 में और एम पी शर्मा प्रकरण में 1950 में अपना फैसला सुनाया था.

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अगस्त को फैसला सुरक्षित रखा था.  

अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल का कोर्ट के समक्ष कहाँ था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आ सकता. उन्होंने तर्क दिया था कि वृहद पीठ के फैसले हैं कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है. केंद्र ने भी निजता को एक अनिश्चित और अविकसित अधिकार बताया था. तर्क था कि  गरीब लोगों को जिसे जीवन, भोजन और आवास के उनके अधिकार से वंचित करने के लिये प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है.

 

इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुड़े अनेक सवाल पूछे. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है. उनका तर्क था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार भी शामिल है.

 

गौरतलब है कि संविधान की धारा 21 नागरिकों के जीने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है. किसी भी नागरिक को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है. ऐसा केवल कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से ही किया जा सकता है.

 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसने क्या कहा ?

 

वरिष्ठ वकील प्रशान्त भूषण ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का आजा का यह फैसला एक ऐतिहासिक फैसला है.  निजता एक मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने आधार के बारे में  कुछ नहीं कहा हैः

 

वरिष्ठ वकील और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि 1947 में जो आजादी मिली थी आज उसे और समृद्ध किया गया है. निजता व्यक्तिगत आजादी का मूल है. सर्वोच्च न्यायालय के आज के फैसले से सविधान के आर्टिकल 21 को नया आयाम मिला है.

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