- आधुनिकता के दौर में कलाकृतियों की डिमांड बढ़ी
- बोंदवाल वर्ष 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति के हाथों शिल्पगुरू अवार्ड से सुशोभित हो चुके हैं
- नॉर्थ अफ्रीका में आईटीआई छात्रों को सिखाकर आए कला के गुर
नई दिल्ली, 6 फरवरी । हरियाणा के फरीदाबाद में आयोजित किए जा रहे 37वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल की कृतियां पर्यटकों पर अविस्मरणीय छाप छोड़ रही हैं और मेले में अपनी ख़ूबसूरती की छटा बिखेर रही हैं। बहादुरगढ़ हरियाणा का विख्यात हस्त शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल का परिवार कई दशक से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हस्तशिल्प के क्षेत्र में कलात्मक इतिहास रच रहा है। चंदन, कदम और अन्य उम्दा किस्म की लकड़ी पर हस्त कारीगीरी में निपुण बोंदवाल परिवार ने पारंपरिक कला को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। विख्यात शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल इस बार सूरजकुंड मेले में स्टॉल नंबर 1245 पर अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। स्टॉल पर दिनभर कला प्रेमियों की भीड़ लगी रहती है।
बोंदवाल द्वारा बनाए चंदन और लकड़ी के लॉकेट, ब्रेसलेट, मालाएं, खिलौने, जानवरों की कृतियां, देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियां पर्यटकों को खासी पसंद आ रही हैं। सूरजकुंड मेले में दिल्ली से आए अशोक वत्स, ओजस्वी और नेहा ने बताया कि इस स्टॉल पर एक से बढ़कर एक कलाकृतियां उपलब्ध हैं। भारत सरकार द्वारा हरियाणा के आधा दर्जन से अधिक शिल्पियों को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। इनमें चार पुरस्कार बोंदवाल परिवार के नाम रहे हैं। शिल्पकार बोंदवाल ने बताया कि उनके भतीजे चंद्रकांत को साल 2004 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। साल 1979 में भाई महाबीर प्रसाद को, 1996 में पिता जयनारायण बोंदवाल तथा 1984 में राजेंद्र बोंदवाल भी राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत हुए।
राजेंद्र बोंदवाल बताते हैं कि आज आधुनिकता के दौर में कलाकृतियों की मांग सिर्फ भारत में नहीं बल्कि विदेशों में भी बढ़ गई है। सूरजकुंड मेला परिसर में अपनी शिल्प कला का जादू बिखेर रहे प्रसिद्ध शिल्पकार बोंदवाल साल 2015 में तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति से शिल्प गुरू अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं। उन्हें एक लकड़ी के फ्रेम पर बेहद बारीक कला में पक्षी एवं फूल पत्तियां बनाने के लिए शिल्प गुरु अवार्ड से नवाज़ा गया था। राजेंद्र बोंदवाल को भारत सरकार की ओर से आई.टी.आई. में छात्रों को लकड़ी की कारीगरी दिखाने के लिए नॉर्थ अफ्रीका भी भेजा गया। वर्तमान में शिल्पी राजेंद्र बोंदवाल अपनी कृतियों के माध्यम से पर्यटकों को कला की इस विधा से रूबरू करा रहे हैं।