नई दिल्ली : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जलवायु परिवर्तन, समुद्री लूट, आतंकवाद, नशीली दवाओं की तस्करी, अत्यधिक मछली पकड़ना और खुले समुद्र में व्यापार की आजादी जैसी आम समुद्री चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय सहयोगात्मक शमन ढांचे की स्थापना का आह्वान किया है। वह सोमवार 30 अक्टूबर को गोवा समुद्री सम्मेलन ( गोवा मेरीटाइम कॉन्कलेव-जीएमसी) के चौथे संस्करण में मुख्य भाषण दे रहे थे।
29 अक्टूबर, 2023 को शुरू हुए इस तीन दिवसीय सम्मेलन में कोमोरोस के रक्षा प्रभारी प्रतिनिधि श्री मोहम्मद अली यूसुफ़ और हिंद महासागर के 11 अन्य देशों- बांग्लादेश इंडोनेशिया, मेडागास्कर, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, म्यांमार, सेशेल्स, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड के नौसेनाओं के प्रमुख/समुद्री बलों के प्रमुख/अन्य वरिष्ठ प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
रक्षा मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि हिंद समुद्री क्षेत्र को कम सुरक्षित और कम समृद्ध बनाने के जिम्मेदार स्वार्थी हितों से बचते हुए सामान्य समुद्री प्राथमिकताओं को सहयोगात्मक ढंग से पूरा करने की आवश्यकता है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों का सम्मान करने के महत्व को रेखांकित किया, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून कन्वेंशन (यूएनसीएलओएस) 1982 में प्रतिपादित किया गया था।
श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि एक स्वतंत्र, खुली और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था हम सबकी प्राथमिकता है। ऐसी समुद्री व्यवस्था में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ यानि ताकत का जोर के लिए कोई स्थान नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौतों का पालन हमारा आदर्श होना चाहिए। हमारे संकीर्ण तात्कालिक हित हमें स्थापित अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन या अवहेलना करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करने से हमारे सभ्य समुद्री संबंध खराब हो जाएंगे। हम सभी के सहयोग के वैध समुद्री नियमों का सहयोगपूर्वक पालन करने की प्रतिबद्धता के बिना हमारी साझा सुरक्षा और समृद्धि को संरक्षित नहीं किया जा सकता है। आपसी सहयोग को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी देश दूसरों पर आधिपत्य जमाने के तरीके से हावी न हो जाए, नियम कानून का पालन सबके लिए जरूरी है।
रक्षा मंत्री ने जलवायु परिवर्तन पर कहा कि सहयोगात्मक शमन ढांचे में उन देशों को शामिल किया जा सकता है जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने और टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के लिए आपस में मिलकर काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दुनिया इस समस्या से उबर सकती है यदि सभी देश हरित अर्थव्यवस्था में निवेश करके उत्सर्जन में कटौती करने की जिम्मेदारी स्वीकार करें और जरूरतमंद देशों के साथ प्रौद्योगिकी और पूंजी साझा करें।
श्री राजनाथ सिंह ने अवैध, असूचित और अनियमित (आईयूयू) मछली पकड़ने का भी उल्लेख किया, यह ऐसी चुनौती है जो संसाधनों के अत्यधिक दोहन से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि इस तरह मछली पकड़ने से समुद्री इकोसिस्टम और टिकाऊ मत्स्य पालन को खतरा होता है। यह हमारी आर्थिक सुरक्षा और क्षेत्रीय एवं वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी ख़तरा है। निगरानी डेटा के संकलन और साझाकरण के लिए बहुराष्ट्रीय सहयोगात्मक प्रयास समय की मांग है। रक्षा मंत्री ने कहा कि इससे अनियमित या धमकी भरे व्यवहार वाले देशों या लोगों की पहचान करने में मदद मिलेगी, जिसका दृढ़ता से मुकाबला करना होगा।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इन शमन ढांचों को स्थापित करने के लिए देशों के बीच सहयोग बढ़ाने और संसाधनों तथा विशेषज्ञता को साझा करने का आह्वान किया। उन्होंने संकीर्ण राष्ट्रीय स्वार्थ और सभी देशों के प्रबुद्ध स्वार्थ पर आधारित पारस्परिक लाभ के बीच अंतर को समझाते हुए इसे और विस्तृत किया। उन्होंने कहा कि सर्वोत्तम परिणाम में अक्सर राष्ट्रों के बीच सहयोग और विश्वास का निर्माण शामिल होता है, लेकिन शत्रुतापूर्ण दुनिया में फायदा उठाने या अकेले कार्य करने के डर से इष्टतम निर्णय नहीं हो सकते हैं। चुनौती ऐसे समाधान खोजने की है जो सहयोग को बढ़ावा दें, विश्वास पैदा करें और जोखिमों को कम करें। उन्होंने कहा कि हम जीएमसी, संयुक्त अभ्यास, औद्योगिक सहयोग, संसाधनों का साझाकरण, अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करना आदि के माध्यम से विश्वास का निर्माण कर सकते हैं। रक्षामंत्री ने कहा कि सहयोगी देशों के बीच विश्वास से आम समुद्री प्राथमिकताओं के संबंध में इष्टतम परिणाम मिलेंगे।
इस अवसर पर अपने संबोधन में विदेश राज्य मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने क्षेत्र में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए आईओआर देशों के बीच सहयोग की वकालत की। आईओआर के महत्ता को बताते हुए, उन्होंने देश के समुद्री हितों की रक्षा करने और संकट के समय क्षेत्र में मदद के लिए सबसे पहले पहुंचने वाली भारतीय नौसेना की सराहना की।
अपने संबोधन में, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक और समुद्र से उत्पन्न होने वाले खतरों की बदलती प्रकृति को लेकर सचेत किया। उन्होंने कहा कि जीएमसी ऐसे खतरों के खिलाफ प्रभावी शमन रणनीति विकसित करने की दिशा में एक मूल्यवान अवसर प्रदान करता है, जिससे आईओआर में शांति बनी रहती है और विकास सुरक्षित तरीके से जारी रहता है।
सम्मेलन में मुख्य भाषण के बाद रक्षा मंत्री ने ‘मेक इन इंडिया’ स्टालों का दौरा किया, जो आयोजन स्थल पर लगाए गए हैं। इसका उद्देश्य सम्मेलन में 12 देशों से आए प्रतिनिधिमंडलों को अत्याधुनिक हथियारों, उपकरणों और प्लेटफार्मों के स्वदेशी विनिर्माण में भारत के रक्षा उद्योग की बढ़ती क्षमताओं से रूबरू कराना है।
इस चौथे संस्करण का विषय ‘हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा: सामान्य समुद्री प्राथमिकताओं को सहयोगात्मक शमन ढांचे में बदलना’ है। नेवल वॉर कॉलेज, गोवा के तत्वावधान में सम्मेलन के दौरान कई सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। इस दौरान निम्नलिखित विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्रख्यात वक्ताओं और विषय विशेषज्ञों के साथ बातचीत आयोजित की जा रही है:
- आईओआर में समुद्री सुरक्षा हासिल करने के लिए नियामक और कानूनी ढांचे में अंतराल की पहचान करना।
- समुद्री खतरों और चुनौतियों से निपटने के लिए जीएमसी राष्ट्रों के लिए एक सामान्य बहुपक्षीय समुद्री रणनीति और संचालन प्रोटोकॉल का निर्माण।
- संपूर्ण आईओआर में उत्कृष्टता केंद्र के साथ सहयोगात्मक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पहचान और स्थापना।
- सामूहिक समुद्री दक्षताओं को उत्पन्न करने की दिशा में आईओआर में मौजूदा बहुपक्षीय संगठनों के माध्यम से की जाने वाली गतिविधियों का लाभ उठाना।