वर्ष 2021-22(अप्रैल-दिसंबर) में खुदरा मुद्रास्फीति 5.2 प्रतिशत

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आर्थिक सर्वेक्षण में खुदरा मुद्रास्फीति मौजूदा वर्ष के दौरान सामान्य रहने का दावा

प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन की वजह से मौजूदा वर्ष में ज्यादातर आवश्यक वस्तुओं की कीमतें नियंत्रण में रहीं

खुदरा और डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति के विचलन में कमी आने की उम्मीद

नई दिल्ली :   केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश करते हुए कहा कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (सीपीआई-सी) के अनुसार खुदरा मुद्रास्फीति वर्ष 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में 5.2 प्रतिशत हो गई, जो 2020-21 की इसी अवधि में 6.6 प्रतिशत थी। समीक्षा में यह भी कहा गया है कि प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन की वजह से इस साल के दौरान अत्यधिक आवश्यक वस्तुओं की कीमतें नियंत्रण में रहीं।

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घरेलू मुद्रास्फीतिः

समीक्षा में पाया गया कि कई उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई) और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (सीपीआई-सी) मुद्रास्फीति हाल के महीनों में, दिसंबर 2021 में 5.2 प्रतिशत तक सीमाबद्ध तरीके से स्थिर रही। ऐसा प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा उठाए गए सक्रिय उपायों की वजह से संभव हो सका।

वैश्विक मुद्रास्फीतिः

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया कि वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति में तेजी आई, क्योंकि अर्थव्यवस्थाओं के खुलने के साथ आर्थिक गतिविधि फिर से शुरू हुई। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति दर वर्ष 2020 में 0.7 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2021 में 3.1 प्रतिशत हो गई। उदाहरण के लिए, दिसंबर 2021 में संयुक्त राज्य अमेरिका में मुद्रास्फीति 7.0 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो 1982 के बाद सबसे अधिक है। ब्रिटेन में मुद्रास्फीति दिसंबर 2021 में लगभग 30 वर्षों के उच्च स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गई। उभरते वैश्विक बाजारों में, ब्राजील में मुद्रास्फीति 10.1 प्रतिशत तक पहुंच गई और तुर्की में मुद्रास्फीति 36.1 प्रतिशत तक पहुंचकर दोहरे अंकों में रही है। अर्जेंटीना में पिछले 6 महीनों के दौरान मुद्रास्फीति दर 50 प्रतिशत से अधिक रही है।

खुदरा मुद्रास्फीति में वर्तमान प्रवृत्तियां

खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल-दिसंबर 2020-21 के दौरान 6.6 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 5.2 प्रतिशत रह गई, जो 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत तक की लक्षित सीमा के भीतर है। समीक्षा में कहा गया कि ऐसा खाद्य मुद्रास्फीति में कमी की वजह से संभव हो पाया है। उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) के अनुसार खाद्य मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में औसतन 2.9 प्रतिशत के निचले स्तर पर रही, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 9.1 प्रतिशत थी।

समीक्षा के अनुसार ‘परिष्कृत’ मूल मुद्रास्फीति की गणना अस्थिर ईंधन वस्तुओं को छोड़कर की गई है। हैडलाइन खुदरा मुद्रास्फीति से ‘खाद्य एवं पेय पदार्थ’ और ‘ईंधन तथा प्रकाश’ के अलावा ‘वाहन के लिए पेट्रोल’ तथा ‘वाहन के लिए डीजल’  और ‘वाहनों के लिए स्नेहक (लुब्रीकंट्स) और अन्य ईंधन’ को हटा दिया गया है। जून 2020 से, परिष्कृत मूल मुद्रास्फीति पारंपरिक परिष्कृत मुद्रास्फीति से काफी नीचे रही है, जो पारंपरिक नई मुद्रास्फीति उपाय में ईंधन वस्तुओं में मुद्रास्फीति के प्रभाव को दर्शाती है।

खुदरा मुद्रास्फीति के कारकः

खुदरा मुद्रास्फीति के प्रमुख कारकों में ‘विविध’ और ‘ईंधन तथा प्रकाश’ समूह रहा है। विविध समूह का योगदान वर्ष 2020-21 (अप्रैल-दिसंबर) में 26.8 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में 35 प्रतिशत हो गया है। समीक्षा के अनुसार विविध समूह के भीतर उप-समूह परिवहन और संचार का सबसे अधिक योगदान रहा, उसके बाद स्वास्थ्य का योगदान पाया गया। दूसरी ओर खाद्य एवं पेय पदार्थों का योगदान 59 प्रतिशत से घटकर 31.9 प्रतिशत रह गया।

ईंधन तथा प्रकाश और परिवहन एवं संचारः

समीक्षा में बताया गया है कि उपरोक्त दोनों समूहों में 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) की अवधि में मुद्रास्फीति अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल, पेट्रोलियम उत्पादों की उच्च कीमतों और उच्च करों के कारण रही।

विविधः

समीक्षा के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान परिवहन तथा संचार के अलावा ‘कपड़े और जूते’ की मुद्रास्फीति में उछाल देखा गया, जो संभवतः अधिक उत्पादन और इनपुट लागत (आयातित इनपुट सहित) के साथ-साथ उपभोक्ता मांग में फिर से बढ़ोतरी की वजह से है।

खाद्य एवं पेयः

समीक्षा के अनुसार खाद्य एवं पेय समूह में केवल 7.8 प्रतिशत हिस्सा होने के वाबजूद ‘तेल एवं वसा’ ने खाद्य एवं पेय पदार्थ मुद्रास्फीति में 60 प्रतिशत का योगदान दिया। खाद्य तेल की मांग ज्यादातर आयातों (60 प्रतिशत) के जरिए पूरी की गई और इसकी अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव इस उप-समूह की उच्च मुद्रास्फीति के लिए जिम्मेदार है। हालांकि भारत में खाद्य तेलों का आयात पिछले 6 वर्ष के दौरान सबसे कम रहा है, लेकिन कीमत के मामले में 2019-20 की तुलना में 2020-21 में यह 63.5 प्रतिशत बढ़ गई।

समीक्षा में बताया गया कि दाल की मुद्रास्फीति 2020-21 में 16.4 प्रतिशत से घटकर दिसंबर 2021 में 2.4 प्रतिशत पर आ गई। खरीफ दलहनों के लिए बुआई क्षेत्र में 142.4 लाख हेक्टेयर (1 अक्टूबर 2021 तक) के एक नए उच्च स्तर की वृद्धि के साथ दालों की मुद्रास्फीति घटने की प्रवृत्ति पर है।

ग्रामीण, शहरी मुद्रास्फीति अंतरः

समीक्षा में बताया गया है कि जुलाई 2018 से दिसंबर 2019 तक ग्रामीण और शहरी सीपीआई मुद्रास्फीति के बीच बड़े अंतर की तुलना में वर्ष 2020 में यह घटा है। इसका मुख्य कारण खाद्य एवं पेय पदार्थों का समूह रहा है।

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में रुझानः

थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी का रुझान देखा गया है और यह मौजूदा वित्त वर्ष में 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) के दौरान 12.5 प्रतिशत तक पहुंच कर उच्च स्तर पर बनी हुई है। समीक्षा में बताया गया है कि उच्च मुद्रास्फीति पिछले वर्ष के निम्न आधार की वजह से है, क्योंकि वर्ष 2020-21 के दौरान डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति अधिक रही है।

समीक्षा के अनुसार कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस उप-समूह में बहुत अधिक मुद्रास्फीति देखी गई और दिसंबर 2021 में यह 55.7 प्रतिशत पर थी। विनिर्मित खाद्य उत्पादों में खाद्य तेलों का बहुत बड़ा योगदान था।

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डब्ल्यूपीआई और सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति दरों के बीच विचलनः

समीक्षा में दोनों सूचकांकों के बीच विचलन के लिए कई कारणों को जिम्मेदार बताया गया है। इनमें आधार प्रभाव की वजह से बदलाव, उनके उद्देश्य और डिजाइन में अंतर, दोनों सूचकांकों के विभिन्न तत्वों के मूल्य व्यवहार और मांग में बढ़ोतरी शामिल हैं। समीक्षा में बताया गया है कि डब्ल्यूपीआई में आधार प्रभाव में धीरे-धीरे कमी के साथ डब्ल्यूपीआई और सीपीआई मुद्रास्फीति के विचलन में कमी आने की उम्मीद है।

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लंबी अवधि की संभावनाः

समीक्षा में बताया गया है कि भारत में मुद्रास्फीति के निर्धारण में आपूर्ति कारकों को महत्व दिया गया है, जिससे लगता है कि लंबी अवधि की कुछ नीतियां इसमें मदद कर सकती हैं। इसमें उत्पादन के तरीकों में बदलाव शामिल है। इससे फसलों के उत्पादन में विविधिकरण, अनिश्चितता को दूर करने के लिए स्व-व्यवस्थित आयात नीति और बर्बाद होने वाली वस्तुओं के लिए परिवहन एवं भंडारण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

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