नई दिल्ली। एवियन इन्फ्लुएंजा (एआई) वायरस सदियों से पूरी दुनिया में मौजूद है। पिछली शताब्दी में इसके चार बड़े प्रकोप दर्ज हुए हैं। भारत में एवियन इन्फ्लुएंजा का पहला प्रकोप 2006 में अधिसूचित किया गया था। भारत में मनुष्यों में अभी तक इसके संक्रमण का पता नहीं चला है, हालांकि यह बीमारी ज़ूनोटिक है। इस बात का ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है कि प्रदूषित पोल्ट्री उत्पादों की खपत के माध्यम से एआई का वायरस मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है। जैव सुरक्षा सिद्धांतों, व्यक्तिगत स्वच्छता और साफ-सफाई तथा कीटाणुशोधन प्रोटोकॉल को शामिल करते हुए प्रबंधन प्रक्रियाओं को लागू करने के साथ-साथ खाना पकाने और प्रसंस्करण मानकों को अपनाना एआई वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के प्रभावी साधन हैं।
भारत में, यह बीमारी मुख्य रूप से प्रवासी पक्षियों द्वारा फैलती है, जो सर्दियों के महीनों यानी सितंबर-अक्टूबर से फरवरी से मार्च तक भारत में आते हैं। इसके द्वितीयक प्रसार में मानव रखरखाव (फोमाइट्स के माध्यम से) के योगदान को भी खारिज नहीं किया जा सकता है।
एआई के वैश्विक प्रसार की चुनौती को देखते हुए भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) ने 2005 में एक कार्य योजना तैयार की थी, जिसे देश में एवियन इन्फ्लुएंजा की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राज्य सरकारों के मार्गदर्शन हेतु वर्ष 2006, 2012, 2015 और 2021 में संशोधित (देखें डीएएचडी वेबसाइट https://dahd.nic.in/sites/default/filess/Action%20Plan%20-%20as%20on23.3.15.docx-final.pdf10.pdf) किया गया था।
वर्ष 2020 में एवियन इन्फ्लुएंजा के प्रकोप पर नियंत्रण पूरा होने के बाद पोस्ट ऑपरेशन सर्विलांस प्लान (पीओएसपी) का अनुपालन करते हुए 30 सितम्बर, 2020 से देश को एआई से मुक्त होने की घोषणा की गई थी।
सर्दियों के मौसम में इस बीमारी की रिपोर्टों के संबंध में पिछले अनुभव को देखते हुए सर्दी शुरू होने से पहले ही सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों को समय-समय पर सलाह जारी की गई है, ताकि आवश्यक सतर्कता बरतने, निगरानी बढ़ाने, आपूर्तियों के रणनीतिक भंडार (पीपीई किट, आदि) बनाने, आकस्मिकताओं से निपटने की तैयारी करने तथा जनता को जागरूक करने के लिए आईईसी जैसे आवश्यक कदम उठाये जा सकें। विभाग द्वारा राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों को उपलब्ध कराई जाने वाली अन्य सहायता इस प्रकार हैं-
· रेफरल लैब यानी आईसीएआर-एनआईएचएसएडी, भोपाल से तकनीकी सहायता
· कुल्लिंग और क्षतिपूर्ति करने के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करना
· एएससीएडी योजना के तहत राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करना
· पशु चिकित्सा कार्य बल का प्रशिक्षण
· आरडीडीएल/सीडीडीएल को मजबूत बनाने के लिए सहायता प्रदान करना
सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को तैयारी के संबंध में पिछला परामर्श/संदेश 22.10.2020 को जारी किया गया था।
वर्तमान प्रकोप
आईसीएआर-एनआईएचएसएडी से संक्रमित नमूनों की पुष्टि के बाद, एआई का निम्नलिखित राज्यों (12 महामारी केंद्रों) में पता चला है –
· राजस्थान (कौवा) – बारां, कोटा, झालावाड़
· मध्य प्रदेश (कौवा) – मंदसौर, इंदौर, मालवा
· हिमाचल प्रदेश (प्रवासी पक्षी) – कांगड़ा
· केरल (पोल्ट्री-बतख) – कोट्टायम, अल्लपुझा (4 महामारी केन्द्र)
इसे देखते हुए, 01 जनवरी 2021 को राजस्थान और मध्यप्रदेश राज्यों को एक-एक सलाह जारी की गई है, ताकि संक्रमण के प्रसार को रोका जा सके। मध्य प्रदेश और राजस्थान राज्यों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, एवियन इन्फ्लुएंजा की राष्ट्रीय कार्य योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार नियंत्रण उपाय शुरू किए गए हैं। दूसरा परामर्श 5 जनवरी, 2021 को हिमाचल प्रदेश को जारी किया गया। इसमें राज्य को पोल्ट्री की बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने की सलाह दी गई है। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, केरल ने पहले ही महामारी केन्द्रों पर 05 जनवरी 2012 से नियंत्रण और रोकथाम अभियान शुरू कर दिये हैं। कुल्लिंग प्रक्रिया चल रही है।
पशुपालन और डेयरी विभाग, भारत सरकार ने भी नई दिल्ली में एक नियंत्रण कक्ष स्थापित किया है, ताकि स्थिति पर नजर रखी जा सकें और राज्य अधिकारियों द्वारा किए गए निवारक और नियंत्रण उपायों के आधार पर दैनिक स्थिति का पता लगाया जा सके।
एवियन इन्फ्लुएंजा के बारे में कार्य योजना के अनुसार प्रभावित राज्यों को इस बीमारी पर नियंत्रण और इसके प्रसार को रोकने के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में सुझाव दिए गए है। इस सुझावों में पोल्ट्री फार्मों की जैव सुरक्षा को मजबूत बनाना, प्रभावित क्षेत्रों का कीटाणुशोधन करना, मृत पक्षियों के शवों का उचित निपटान, बीमारी की पुष्टि और आगे निगरानी के लिए समय पर नमूने लेना और उन्हें परीक्षण के लिए भेजना। संक्रमित पक्षियों से पोल्ट्री और मनुष्यों में बीमारी के प्रसार की रोकथाम के लिए सामान्य दिशा-निर्देशों के साथ-साथ निगरानी योजनाओं को सघन रूप से लागू करना शामिल है। राज्यों को यह भी सलाह दी गई है कि वे पक्षियों की असामान्य मौत के बारे में रिपोर्ट के लिए वन विभाग के साथ समन्वय स्थापित करें। अन्य राज्यों से भी पक्षियों की असामान्य मौत के बारे में सतर्कता बरतने और आवश्यक उपाय करने के लिए तुरंत रिपोर्ट करने की सलाह दी गई है।