नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आयुष मंत्रालय के अंतर्गत अधीनस्थ कार्यालय के रूप में भारतीय औषध और होम्योपैथी (पीसीआईएमऔरएच) के लिए औषध कोष (फार्माकपीआ) आयोग की पुर्नस्थापना को अपनी मंजूरी दे दी है। इसमें गाजियाबाद में 1975 से स्थापित दो केन्द्रीय प्रयोगशालाओं- फार्माकपीआ लेबोरेट्री फॉर इंडियन मेडिसिन (पीएलआईएम) और होम्योपैथिक फार्माकपीआ लेबोरेट्री (एचपीएल) का विलय कर दिया गया है।
वर्तमान में 2010 से स्थापित आयुष मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय औषध और होम्योपैथी (पीसीआईएमऔरएच) के लिए औषध कोष आयोग एक स्वयत्तशासी संगठन है। विलय का उद्देश्य तीनों संगठनों की बुनियादी ढांचा सुविधाओं, तकनीकी मानव श्रम और वित्तीय संस्थानों का अधिकतम इस्तेमाल करना है ताकि आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी दवाओं के नतीजों के मानकीकरण में वृद्धि की जा सके जिससे प्रभावी नियंत्रण और गुणवत्ता नियंत्रण की दिशा में बढ़ा जा सकेगा।
विलय से औषधकोश और लिखे गए नुस्खे के विवरण का प्रकाशन और आयुष दवाओं के मानकों का केन्द्रित और सशक्त विकास को बढ़ावा मिलेगा। इससे पीसीआईएम और एच की मिली हुई अवसंरचना और इसकी प्रयोगशालाओं में आवश्यक संशोधन कर और औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के प्रावधानों को अधिकार देकर कानूनी दर्जा प्रदान किया जा सकेगा।
इस संबंध में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, औषध महानियंत्रक और आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी औषध तकनीकी सलाहकार बोर्ड (एएसयूडीटीएबी) के साथ सलाह-मशविरा किया जा चुका है जो औषधि और प्रसाधन सामग्री कानून 1940 के अंतर्गत एक वैधानिक संगठन है जो एएसएलटी औषधियों के नियंत्रण से जुड़े मामलों में केन्द्र और राज्य सरकारों को सलाह देता है। वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने विलय किए गए संगठनों के पद और पदानुक्रम ढांचे को फिर से तैयार करने की सहमति दे दी है।
पीएलआईएम और एचपीएल पीसीआईएमऔरएच के अधीनस्थ कार्यालय होने के कारण- आयुष मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त्शासी संगठन है जिसका पीसीआईएमऔरएच की स्थापना के लिए, एक साझा प्रशासनिक नियंत्रण के साथ मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय के रूप में विलय होना है।
विलय के बाद पीसीआईएमऔरएच के पास मंत्रालय के अंतर्गत पर्याप्त प्रशासनिक ढांचा होगा जिससे औषधकोष कार्य की क्षमता और परिणामों में वृद्धि और आयुर्वेद, सिद्ध,यूनानी और होम्योपैथी औषधियों के औषधकोष मानकों के परस्पर हितों को हासिल करने का प्रयास किया जाएगा जिससे औषधियों के मानकीकरण कार्य का दोहराव और ओवरलेपिंग रोकी जा सकेगी और संसाधनों का प्रभावी तरीके से अधिकतम इस्तेमाल हो सकेगा।